सम्पादकीय

रोजगार की परीक्षा या जीवन की परीक्षा

Rani Sahu
9 May 2022 6:58 PM GMT
रोजगार की परीक्षा या जीवन की परीक्षा
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मैं एक परीक्षार्थी युवा बोल रहा हूं। मैंने अभी हाल ही में हुई पुलिस कॉन्स्टेबल भर्ती की परीक्षा दी थी

मैं एक परीक्षार्थी युवा बोल रहा हूं। मैंने अभी हाल ही में हुई पुलिस कॉन्स्टेबल भर्ती की परीक्षा दी थी, लेकिन कल पता चला वो तो स्थगित हो गई है। मैं सोच रहा था अब क्या करूंगा क्योंकि परीक्षाओं के स्थगित होने का दौर तो यह निरंतर चलता ही जा रहा है। हिमाचल प्रदेश एक ऐसा प्रदेश जिसे देश के शिक्षित व सबसे अधिक साक्षर राज्यों की सूची में एक अच्छे स्थान पर सुसज्जित होने का सौभाग्य प्राप्त है, लेकिन वर्तमान दौर में न जाने इस राज्य के लोगों में ऐसी क्या मनोवृत्ति आन पड़ी है कि युवा परीक्षाओं में नकल और अक्ल के बीच नकल का सहारा ले रहे हैं। नकल से कहीं आगे बढ़ते हुए यहां तक कि लाखों में प्रश्न पत्र ही खरीद किए जा रहे हैं जिससे प्रतीत होता है कि लोगों की मनोस्थिति किस प्रकार की है। हिमाचल प्रदेश में पिछले लगभग दो-तीन वर्षों से जो भी रोजगार भर्ती परीक्षाएं हुई हैं, वे सब केस में फंस कर स्थगन की बलि चढ़ी हैं। चाहे जेओए की भर्ती हो, इससे पहले कई अन्य भर्तियां हों या अब पुलिस भर्ती हो, इन सब परीक्षाओं को पास कर कई युवाओं ने नौकरी के सपने देखे थे, लेकिन इन सपनों पर मानो ग्रहण सा लग गया हो। कुछ एक की वजह या कहें तो प्रशासन के ढिलमुल रवैये से सभी भर्तियां ऐसे ही केस के फेर में फंसती नजर आती हैं जिस पर सरकार को कडे़ निर्णय लेकर जो ऐसे कृत्य करते पकड़े जाते हैं, उन्हें अगली बार किसी भी परीक्षा में बैठने से वंचित कर देना चाहिए ताकि कोई ऐसी मंशा भी रखता है कि जुगाड़ तंत्र से परीक्षा पास हो जाएगी, वो ऐसा सोचने से पूर्व सौ दफा सोचेगा। हिमाचल प्रदेश में अभी मंडी जिला के सुंदरनगर में हुई जूनियर ऑफिस असिस्टेंट परीक्षा के पेपर लीक होने की जांच चल ही रही थी कि हाल ही में हिमाचल प्रदेश में हुई पुलिस की लिखित परीक्षा भी रद्द कर दी गई है जिससे लाखों युवाओं की आशाओं पर निराशा का विराम प्रतीत होता है।

अनेक युवाओं ने इतना कठिन परिश्रम करके इन परीक्षाओं की सारी औपचारिकताएं पूरी की थी जो पुलिस भर्ती के स्थगित होने से सपने धुंधले से प्रतीत होते हैं। इस परीक्षा के लिए युवाओं ने हजारों रुपए देकर कोचिंग भी ली थी, लेकिन युवाओं के हाथ निराशा ही लगी है। सरकार अपनी ओर से बेरोजगारी समाप्त करने के लिए बहुत से व्यापक कदम उठा रही है, लेकिन बीच में जो ऐसी घिनौनी हरकतें करते हैं और पेपर लीक करते हैं, पैसों के चक्कर में, उनको कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि युवाओं को किसी प्रकार का परेशानी का सामना न करना पड़े। जो लोग अपने चेहतों को लाभ पहुंचाने के लिए पेपर लीक करते हैं या कोई और अन्य हेराफेरी करते हैं, उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। सरकार व प्रशासन को भी इन मामलों में झुकना पड़ता है और परीक्षाओं को दोबारा करवाने के लिए कई लाखों रुपए खर्च होते हैं। दूसरी तरफ अभिभावकों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार के मामलों में लोग सरकार और प्रशासन को कोसते हैं। परंतु इसमें इनका दोष भी नहीं है। दोष तो इसमें उन लोगों का है जो पेपर लीक करते हैं या इन धांधलियों में शामिल होते हैं। सरकार को आवश्यकता है कि वह कड़े कदम उठाए ताकि आगे से भविष्य में ऐसे ही परीक्षाएं रद्द न होती रहें, बल्कि परीक्षाएं देकर युवा नौकरी व रोजगार भी प्राप्त कर सकें जिसके लिए युवाओं ने कई बलिदान कई वर्षों तक मेहनत करके दिए होते हैं। इन बलिदान देने वालों पर क्या बीतती होगी जब किसी परीक्षा दिए युवा को सुनने को मिलता है कि परीक्षा रद्द हो गई है। सरकार को ऐसे कृत्य करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा देनी चाहिए। तभी व्यवस्था में सुधार हो सकता है अन्यथा लोगों का विश्वास दिन-प्रतिदिन व्यवस्था व सिस्टम से उठ रहा है।
अगर ऐसे ही सब कुछ चलता रहा तो एक दिन ऐसा आ जाएगा कि विश्वास का नामोनिशान नहीं रहेगा। सरकार को प्रयास करने होंगे कि आखिर कहां गलतियां हो रही हैं तथा उन्हें कैसे सुधार सकते हैं। हर बार पेपर लीक और परीक्षा स्थगित सुन-सुन कर प्रदेश के परीक्षार्थी युवाओं के कान अब दोबारा इन शब्दों को सुनना नहीं चाहते। इसलिए सरकार को सिस्टम को सुधारना होगा तथा भर्ती परीक्षाओं के लिए विशेष तंत्र की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि गलती की गुंजाइश न रहे और कहीं फिर भी चूक हुई तो उसे बख्शा भी नहीं जाना चाहिए। ऐसी व्यवस्था जब व्यवहार में होगी, तभी सुधार हो सकता है अन्यथा रोजगार की परीक्षा युवाओं के लिए जीवन परीक्षा बन चुकी है जिसे पार कर पाना मानों कड़ा संघर्ष लगता है। इस प्रकरण के बाद कुछ छात्रों ने यह मांग भी की है कि जहां पर पेपर लीक हुआ है, केवल वहीं पर दोबारा परीक्षा ली जाए, पूरी परीक्षा को ही रद न किया जाए। इस मांग में छात्रों की लाचारी नजर आती है। इन छात्रों ने कड़ा परिश्रम करके व कोचिंग पर काफी पैसे खर्च करके यह परीक्षा दी थी। अब परीक्षा रद होने से वे आहत हैं। तभी वे ऐसी मांग कर रहे हैं। सरकार को इस मांग पर सहानुभूति के साथ विचार करना चाहिए। इस तरह के अपराध पर अंकुश लगाने के लिए विभिन्न विभागों में आपसी समन्वय स्थापित किया जाना बेहद जरूरी है।
प्रो. मनोज डोगरा
लेखक हमीरपुर से हैं


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