सम्पादकीय

रोजगार की सूरत

Subhi
10 Aug 2021 2:54 AM GMT
रोजगार की सूरत
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पिछले करीब डेढ़ साल से देश में वैश्विक महामारी की वजह से लगाई गई पूर्णबंदी के हालात में सबसे ज्यादा मार रोजगार पर ही पड़ी है।

पिछले करीब डेढ़ साल से देश में वैश्विक महामारी की वजह से लगाई गई पूर्णबंदी के हालात में सबसे ज्यादा मार रोजगार पर ही पड़ी है। कई अध्ययनों में यह बताया गया है कि खासतौर पर शहरों में बेरोजगारी के आंकड़ों में चिंताजनक बढ़ोतरी हुई। लेकिन बहुत सारी गतिविधियां ठप रहने के बीच शायद इसकी सही तस्वीर अब तक सामने नहीं आ सकी है और इसके नुकसानों का आकलन नहीं हो सका है। इसी के मद्देनजर संसद की एक समिति ने श्रम एवं रोजगार मंत्रालय से कहा है कि वह कोरोना विषाणु से उपजी महामारी और उससे पैदा हालात के बीच रोजगार के नुकसान की सही तस्वीर पेश करे। समिति ने मंत्रालय को विश्वसनीय एजेंसियों के आंकड़ों और अध्ययन का मिलान कर्मचारी भविष्य निधि संगठन यानी ईपीएफओ के आंकड़ों से करने की सलाह दी, ताकि देश भर में नौकरियों के नुकसान की वास्तविक स्थिति सामने आ सके। समिति की राय इसलिए भी अहम है कि जब तक नुकसान की वास्तविक तस्वीर सामने नहीं आएगी, तब तक उससे निपटने के लिए ठोस योजना पर भी काम करना भी मुश्किल होगा।

यह छिपा नहीं है कि महामारी के चलते समूचे देश में केंद्र और राज्यों की ओर से लगाए गए अंकुशों के बीच आर्थिक गतिविधियां कई मौकों पर बिल्कुल ठप रहीं और संक्रमण की रफ्तार में कमी के साथ कुछ राहत मिलने के बावजूद अब तक यह सामान्य नहीं हो सकी हैं। ऐसे में देश भर में रोजगार पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ा है। एक ओर महामारी से जूझते लोग इसकी वजह से सेहत और जीवन को लेकर फिक्रमंद रहे और दूसरी ओर संक्रमण रोकने के लिए लगाई गई पूर्णबंदी और अन्य उपायों के बीच बाजार, उद्योग और संस्थानों के सामने सहजता से काम करना संभव नहीं रहा। जिस क्षेत्र में इंटरनेट के जरिए कामकाज चल सकता है, उसमें तो घर से काम जैसे विकल्प अपनाए गए, लेकिन प्रत्यक्ष भागीदारी से चलने वाली गतिविधियां पूरी तरह ठप पड़ गर्इं। इस क्रम में संगठित क्षेत्रों में भी कामकाज और रोजगार का संतुलन बुरी तरह बिगड़ा। अंदाजा लगाया जा सकता है कि असंगठित क्षेत्र में काम करके गुजर-बसर करने वाली कितनी बड़ी आबादी के सामने कैसी चुनौती खड़ी हो गई होगी। सच्चाई यह है कि बंदी में राहत के बावजूद अब भी आर्थिक गतिविधियां संभलने के क्रम में हैं, लेकिन तीसरी लहर की चेतावनियों के मद्देनजर फिर से बंदी की आशंका भी लगातार बनी हुई है।

एक आकलन यह जरूर है कि संगठित क्षेत्रों से बेरोजगार हुए बहुत सारे लोगों ने असंगठित क्षेत्रों में काम या फिर स्वरोजगार के नए विकल्प ढूंढ़े। लेकिन सवाल है कि अगर सभी क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियां अभी सीमित दायरे में ही कई चुनौतियों से जूझ रही हैं तो यह विकल्प भी कितनी दूर का सहारा बन सकता है! यह जगजाहिर तथ्य है कि जब तक लोगों की आमदनी सामान्य रहती है, क्रय शक्ति मजबूत रहती है,

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