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- बढ़ने से ज्यादा घटे हैं...
पी. चिदंबरम; मुझे खुशी है कि सरकार ने 20 फरवरी, 2022 को जनसत्ता में मेरा यह स्तंभ पढ़ा। आखिरकार बढ़ती बेरोजगारी की हकीकत को लेकर वह जागी और एलान किया कि केंद्र सरकार के खाली पड़े पदों पर दस लाख लोगों की भर्ती की जाएगी। कुछ को छोड़ दें तो नौकरियों की 'कमी' से हर परिवार प्रभावित है। इसमें उन्हें भी शामिल कर लें, जिनका रोजगार 'चला' गया। खासतौर से महामारी वाले साल (2020-21) और सुधार के लिहाज से बेपरवाह वर्ष (2021-22) के बाद भारत ने जिस सबसे बड़ी आर्थिक चुनौती का सामना किया है, वह बेरोजगारी है।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने यह शानदार वादा किया था कि वे 'हर साल' दो करोड़ रोजगार पैदा करेंगे। इसे लेकर संदेह थे, लेकिन ऐसी आवाजें 'भक्तों' के शोरशराबे में दब गई थीं। 'भक्त' ऐसे हर वादे पर आंख मूद कर विश्वास कर रहे थे, जिसमें 'बाहर से कालाधन वापस लाया जाएगा' और 'हर भारतीय के खाते में पंद्रह लाख रुपए जमा किए जाएंगे' जैसे दिमाग को चकरा देने वाले वादे भी शामिल थे। मुझे लगता नहीं कि किसी ने भी इसका हिसाब लगाया होगा।
नई सरकार के सत्ता संभालने के बाद हर साल दो करोड़ रोजगार सृजित करने या हर भारतीय के खाते में पंद्रह लाख रुपए जमा कराने को लेकर सारी बातें बंद हो गर्इं। लोग आमतौर पर असाधारण रूप से माफ करने वाले निकले। सरकार यूपीए की योजनाओं को ही नया रूप और नाम देने और उन्हें उन योजनाओं को अपना बताने का दावा करने में व्यस्त हो चली। मनरेगा योजना, जिसने गरीबों को अंतिम उपाय के रूप में रोजगार मुहैया करवाया था और जिसका मोदी ने मखौल उड़ाया था, इसलिए जारी रखी गई, क्योंकि सरकार इस योजना का कोई विकल्प तैयार कर ही नहीं पाई।
बेरोजगारी की स्थिति केवल बदतर हुई है। इसे मापने के लिए दुनिया भर में प्रचलित दो तरीके हैं। पहला तो कुल श्रम बल है और दूसरा श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) है। श्रम बल भागीदारी दर कुल श्रम बल का वह अनुपात होता है, जिसमें मौजूदा रोजगारशुदा या रोजगार की तलाश में लगे लोग शामिल होते हैं। मई 2022 में यह अनुपात 42.13 फीसद था (स्रोत सीएमआइई)। यह दुनिया भर में सबसे बदतरों में से है (अमेरिका में यह आंकड़ा तिरसठ फीसद है)। सीएमआइई ने निष्कर्ष निकाला है कि लाखों लोगों ने श्रम बाजारों को छोड़ दिया है और यहां तक कि रोजगार की तलाश भी बंद कर दी है, संभवतया इसीलिए कि नौकरी नहीं मिलने से लोग बेहद हताश हो चुके हैं और मान चुके हैं कि कहीं नौकरियां उपलब्ध नहीं हैं।