सम्पादकीय

रोजगार के दावे सवालिया

Rani Sahu
26 Nov 2021 6:48 PM GMT
रोजगार के दावे सवालिया
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प्रधानमंत्री मोदी ने 2016 में कपड़ा उद्योग को 6000 करोड़ रुपए के पैकेज की घोषणा की थी

प्रधानमंत्री मोदी ने 2016 में कपड़ा उद्योग को 6000 करोड़ रुपए के पैकेज की घोषणा की थी। यह दावा भी किया था कि एक करोड़ रोज़गार के अवसर पैदा होंगे। गुजरात में 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' का नाम देते हुए लौहपुरुष सरदार पटेल की सबसे ऊंची प्रतिमा स्थापित करते हुए यकीन दिलाया गया था कि इससे आसपास के इलाकों में 15 अरब रुपए का कारोबार विकसित होगा, नतीजतन लोगों को रोज़गार भी मिलेगा। रेलमंत्री के तौर पर पीयूष गोयल ने 10 लाख नौकरियों और रोज़गारपरक अवसरों का ऐलान किया था। इसी तरह नोएडा अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट, जेवर का प्रधानमंत्री मोदी ने शिलान्यास किया है, तो कई स्तरों पर एक लाख से ज्यादा लोगों को रोज़गार की संभावनाओं का दावा किया गया है। एक अख़बार ने तो यह संख्या 5.50 लाख तक प्रकाशित की है। इसी तरह लाखों किलोमीटर के राजमार्गों, सड़कों और एक्सप्रेस-वे सरीखे आधारभूत ढांचे का शिलान्यास और लोकार्पण के मौकों पर भी रोज़गार के दावे किए जाते रहे हैं। अधिकतर दावे खोखले साबित होते रहे हैं या अधूरे रहे हैं अथवा सवालिया माने जाते रहे हैं।

शक सरकारों की नीयत पर नहीं है। दरअसल परियोजनाओं को लागू करने में कोताही, गलती या विरोधाभास सामने आते रहे हैं, लेकिन जवाबदेही तो सरकारों की बनती है। नतीजतन बेरोज़गारी का आक्रोश, कुंठा, विद्रोह आदि सड़कों पर उतर आते हैं। ऐसा भी नहीं है कि ऐसी परियोजनाओं ने रोज़गार या नौकरियां अथवा स्वरोज़गार पैदा नहीं किए, लेकिन वे देश की आबादी की तुलना में अपर्याप्त रहे हैं। दरअसल रोज़गार और एक अदद नौकरी में फर्क क्या है, यह कमोबेश हमें तो स्पष्ट नहीं है, क्योंकि सरकारों ने आज तक परिभाषित नहीं किया है। यदि दिहाड़ीदार मज़दूर के तौर पर साल में कुछ माह रोज़गार मिलता है, तो वह मनरेगा की परिधि में आता है। सरकार उसका श्रेय मत ले। उच्च स्तर के विकास-कार्यों में कितना स्थायी रोज़गार पैदा किया गया है, यह सरकार को स्पष्ट करना चाहिए। यकीनन देश में विकास किया जा रहा है। परियोजनाओं पर निरंतर काम दिखाई दे रहा है। देश के 30 शहरों को नदियों के साथ गठबंधन कर विकसित किया जा रहा है। यह अनूठा प्रयास है। देश का चेहरा बदल कर सम्पन्न बनाया जा रहा है। भारत अंतरराष्ट्रीय होड़ में भी शामिल है। जेवर हवाई अड्डा दुनिया का चौथा सबसे बड़ा होगा और एशिया में नंबर एक पर रहेगा। करीब 35,000 करोड़ का निवेश भी आएगा, क्योंकि हवाई अड्डे का परिचालन निजी कंपनी को 40 साल के लिए दिया जाना तय हुआ है। आर्थिक उदारीकरण के इस दौर में बुनियादी ढांचे का विकास और आधुनिकीकरण बेहद अनिवार्य है। उसी से विदेशी निवेश बढ़ सकता है और अंतरराष्टीय कंपनियां भारत में व्यापार करने आ सकती हैं। प्रधानमंत्री मोदी की विकास-दृष्टि और सोच भी सवालिया नहीं है। उन्होंने कई प्रयास किए हैं। वह देश की सूरत और सीरत बदलने के पक्षधर रहे हैं।
बेशक इधर देश की औसत बेरोज़गारी दर 17 फीसदी से घटकर 4.5 फीसदी तक लुढ़की है। यह सरकारी आंकड़ा है। किसी पेशेवर एजेंसी का विश्लेषण इन दिनों सामने नहीं आया है, लेकिन जेवर एयरपोर्ट विकास और रोज़गार का नया उदाहरण बनकर नए प्रतिमान स्थापित कर सकता है। पहली बार यह प्रयोग किया जा रहा है कि यात्रियों के लिए एयरपोर्ट के साथ-साथ मल्टी मॉडल कार्गो हब भी बनाया जा रहा है। चूंकि नोएडा औद्योगिक गतिविधियों और खासकर विदेशी कंपनियों का भी गढ़ है, लिहाजा हब बनेगा, तो कंपनियों के उत्पाद दुनिया भर में भेजे जा सकेंगे। रोज़गार का भी विस्तार होना चाहिए। हमारी अर्थव्यवस्था का भी विस्तार होगा। जेवर के आसपास ग्रामीण इलाके हैं। यदि हवाई अड्डे के जरिए वहां के युवाओं को स्थायी रोज़गार मिलता है, तो गांवों से पलायन भी रुकेगा और बाज़ार में उपभोक्ता मांग भी बढ़ेगी, लेकिन रोज़गार के दावे लगभग ठोस किए जाने चाहिए। एयरपोर्ट के लिए जिन किसान परिवारों की ज़मीन अधिगृहीत की गई है, उसके भी कुछ विवाद अब भी अनसुलझे हैं। उनका निपटारा यथाशीघ्र किया जाए और परिवार में कमोबेश एक सरकारी नौकरी की व्यवस्था की जाए। सरकार और प्रधानमंत्री को इन सवालों का एहसास होता है, फिर भी सवाल यथावत बने रहते हैं।

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