सम्पादकीय

आपातकाल बनाम इंकलाब

Rani Sahu
14 July 2022 7:01 PM GMT
आपातकाल बनाम इंकलाब
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पड़ोसी देश श्रीलंका में एक बार फिर आपातकाल और कर्फ्यू के हालात हैं

सोर्स- divyahimachal

पड़ोसी देश श्रीलंका में एक बार फिर आपातकाल और कर्फ्यू के हालात हैं। देश पहले ही 'दिवालिया' घोषित किया जा चुका है। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने गुरुवार सुबह तक अपना इस्तीफा नहीं सौंपा था, जबकि उन्होंने बुधवार को इस्तीफा देने का आश्वासन दिया था। राष्ट्रपति का लबादा ओढ़े वह देश-दर-देश शरण के लिए गुहार लगा रहे हैं, लेकिन भारत, अमरीका, ब्रिटेन, दुबई, अबू धाबी ने साफ इंकार कर दिया है। फिलहाल गोटबाया सिंगापुर में बताए गए हैं। मालदीव में विपक्ष ने उन्हें शरण देने के निर्णय का विरोध किया है, क्योंकि माले में श्रीलंकाई नागरिक भी काफी बसे हुए हैं। जिस शख्स को श्रीलंका के बहुसंख्यकों ने 'मसीहा' कहा था और बौद्धवादी सिंहलियों ने 'फरिश्ता' करार देते हुए राष्ट्रपति पद का ऐतिहासिक जनादेश दिया था, आज उस राष्ट्रपति को रात के अंधेरे में, वायुसेना के विमान से, देश छोड़ कर भागने को विवश होना पड़ा है। गोटबाया राजपक्षे आज श्रीलंका का सबसे 'घृणित खलनायक' है। उन्हें एहसास है कि यदि उन्हें श्रीलंका ही लौटना पड़ा और विद्रोही जनता से आमना-सामना हो गया, तो कुछ भी घोर अनिष्ट हो सकता है! हजारों की भीड़ सड़कों पर उद्वेलित है। उसने 'राष्ट्रपति महल' के बाद प्रधानमंत्री दफ्तर, कई सरकारी प्रतिष्ठानों पर कब्जा कर रखा है और संसद भवन भी घेराव के दायरे में है। प्रदर्शनकारियों ने सरकारी टीवी चैनल पर भी कब्जा कर लिया था और अपनी बात का प्रसारण भी कराया। हालांकि बाद में चैनल को मुक्त कर दिया गया।
सेना या स्पेशल टास्क फोर्स ने हवाई फायरिंग तक की, आंसू गैस के गोले दगादग छोड़े गए, नतीजतन कई विद्रोही घायल हुए और एक की मौत भी हो गई। हालांकि सैनिक और पुलिसकर्मी अपने ही देश के नागरिकों का दमन नहीं करना चाहते। सीधी गोलीबारी से लाशें बिछाने को वे बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं, लेकिन श्रीलंका की राजधानी कोलंबो की सड़कों पर जो विद्रोह, आक्रोश और आक्रामकता दिख रहे हैं, वे किसी 'इंक़लाब' या 'क्रांति' से कम नहीं हैं। इसका अंतिम समाधान क्या होगा, विशेषज्ञ भी यह आकलन करने में असमर्थ हैं। भीड़ को न तो गोटबाया चाहिए और न ही उसकी परछाईं के तौर पर कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की सत्ता चाहिए। भीड़ ने विक्रमसिंघे का आवास भी घेर रखा है। अभी 'क्रांतिकारी' भी अस्पष्ट हैं कि अंततः वे किस राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की सत्ता को स्वीकार करेंगे? लोकतांत्रिक देश में एक निश्चित सरकार और प्रशासनिक व्यवस्था जरूर चाहिए, क्योंकि उसके बाद ही अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व बैंक या किसी अन्य देश की सरकार श्रीलंका से बात करेंगे और कर्ज़ को स्वीकृति देंगे। श्रीलंका की फिलहाल यही बुनियादी जरूरत है कि उसे 5-6 अरब डॉलर की आर्थिक मदद तत्काल मिले। आर्थिक मदद के बिना कोई शासक या आपातकाल अथवा इंक़लाब भी श्रीलंका को उबार नहीं सकता। फिलहाल औसतन 10 में से 9 लोगों को भरपेट भोजन नसीब नहीं है।
Rani Sahu

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