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By: divyahimachal
जीवन आगे बढऩे का नाम है और इसी को चरितार्थ करते हुए मुख्यमंत्रीू सुखविंदर सिंह सुक्खू ने आपदा के कोहराम के बीच सरकारी प्राथमिकताओं की अनुगूंज बरकरार रखी है। सरकार के सामने अपनी वचनबद्धता, राज्य की चुनौतियां, आपदा से निपटने का संकल्प और भविष्य को पलटने का एक अवसर है। बेशक हिमाचल में पहाड़ नहीं गिरे, बल्कि मुसीबतों के पहाड़ आकर खड़े भी हुए हैं, लिहाजा एक साथ कई समाधान-कई रास्ते निकालने होंगे। इस संदर्भ में हिमाचल के मुख्यमंत्री ने बैठक करके राहत कार्यों की व्यस्तता के बीच प्रदेश की सामान्य गतिविधियों, सरकार की घोषणाओं, बजटीय प्रावधानों, विशिष्ट योजनाओं तथा परियोजनाओं को वरीयता देने के लिए एक सक्रिय मैकेनिज्म स्थापित किया है। अब हर हफ्ते मंडे मीटिंग में प्रदेश अपनी प्रोग्रेस रिपोर्ट की समीक्षा करेगा, ताकि पता चले कि व्यवस्था परिवर्तन के दावे और इरादे क्या हैं। जाहिर है आपदा अपने साथ कड़वे सबक, समय की चुनौती और आवश्यक बदलाव की मोहलत लेकर आई है और इसके लिए विभागीय कार्यशैली, प्रणाली और प्रस्तुति में परिवर्तन अभिलषित रहेगा। सडक़ों के निर्माण को अव्वल बनाने के लिए डे्रनेज प्रणाली पर जोर दिया जा रहा है। हमारा मानना है कि डे्रनेज सिस्टम के लिए पीडब्ल्यूडी, जलशक्ति, विद्युत जैसे विभागों के अलावा वन विभाग की जिम्मेदारी कहीं अधिक है। आश्चर्य यह है कि जिस समय प्रदेश सदी की भीषणतम आपदा के दौर से गुजर रहा है, उस समय भी राहत की बिसात पर राजनीति हो रही है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है। करीब दस हजार करोड़ के नुक्सान को भरने के लिए केंद्र की ओर से एकमुश्त ऐलान चाहिए। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राहत के हाथ में केंद्र या राज्य सरकारें नहीं, दो पार्टियां अपना मकसद पूरा कर रही हैं। जिस राहत को केंद्र के आंकड़े गिन रहे हैं, वह ईमानदार है या हिमाचल की चीखें जो सुना रही हैं, वे सही हंै। क्या केंद्र के कदमों में हिमाचल पहुंच कर राष्ट्रीय आपदा का अहसास संभव हो पाएगा या हम केवल कुछ राहत भुगतान की रसीद बन कर रह जाएंगे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने एसडीआरएफ के तहत रविवार को दो सौ करोड़ की किस्त जारी करके आवश्वासन दिया है कि जख्म भरेंगे, लेकिन बतौर मुख्यमंत्री ये पैमाने केंद्र से मांगे गए कुल 6700 करोड़ के क्लेम को कब तक भरेंगे। पैसे जिस तरह चल रहे हैं या राहत की फाइल जिस तरह अपनी तर्क विद्या में पारंगत है, उस हिसाब से मांगी गई, बताई गई या हासिल की गई राशि में अंतर आएगा। बहरहाल यह तो स्पष्ट है कि हिमाचल सरकार को वक्त के बंद दरवाजे खोलकर ही सारे समाधान खोजने पड़ेंगे, फिर भी वरिष्ठ भाजपा नेता शांता कुमार की केंद्र से हिमाचल की फौरी मदद की अपील का मर्म तो जानना चाहिए। जाहिर है हाथ पर हाथ धरे बैठा नहीं जा सकता, इसलिए राज्य सरकार आपदा के बीच राज्य की प्राथमिकताओं को जिंदा रखकर जनता को बताना चाहती है कि संकल्प अभी बाकी है। यह चाहे डे बोर्डिंग स्कूलों के निर्माण की प्रगति रिपोर्ट हो या रोबोटिक सर्जरी का प्रोजेक्ट हो, सरकार अपने तौर पर इन्हें आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। इसी तरह कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार तथा पर्यटन राजधानी की परियोजनाओं का शृंगार जारी रखने का ऐलान हो रहा है। ग्रामीण स्तर के 36 स्वास्थ्य संस्थानों में छह-छह विशेषज्ञों की नियुक्ति करने की उपलब्धि को सरकार आम जन तक पहुंचाना चाहती है। इसी तरह हेलिपोर्ट, ड्रग पार्क तथा मेडिकल डिवाइस पार्क जैसी परियोजनाओं के साथ-साथ ग्रीन कोरिडोर में इलेक्ट्रिक बसों के संचालन को सरकार सुनिश्चित करना चाहती है। देखना यह होगा कि आपदा के बाद केंद्र की राहत जीत जाती है या सरकार की प्राथमिकताएं सुरक्षित आगे निकल जाती हैं।

Rani Sahu
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