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प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अगले दो महीनों में हिमाचल प्रदेश के दो हजार गरीब लोगों को नए मकान मिलेंगे। राज्य में कुल दस हजार लोगों को नए मकान बनाकर दिए जाने की स्वीकृति मिली थी
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अगले दो महीनों में हिमाचल प्रदेश के दो हजार गरीब लोगों को नए मकान मिलेंगे। राज्य में कुल दस हजार लोगों को नए मकान बनाकर दिए जाने की स्वीकृति मिली थी। 5600 लोगों को अभी तक नए पक्के मकान मिल चुके हैं और 876 का प्रस्ताव अभी केंद्र सरकार को भेजा जा चुका है। केंद्र सरकार से मकान बनाने के लिए 133 करोड़ रुपए प्रदेश सरकार को भेजे गए और अभी तक 125 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गरीब लोगों को नए मकान बनाने की शुरुआत सन् 2015 को हुई जिसमें लाखों लोगों को नया आशियाना प्राप्त करने का सौभाग्य मिला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच है कि प्रत्येक गरीब व्यक्ति को अब पक्का मकान बनाकर दिया जाए। हिमाचल प्रदेश में कुछेक पंचायत प्रतिनिधियों ने बोट बैंक की खातिर नियमों को ताक पर रखकर कई अपात्र लोगों का नाम चयन करके ऐसे आवेदन आगे केंद्र सरकार को भेज दिए थे। हिमाचल प्रदेश के हजारों लोगों को आस जगी थी कि उन्हें पक्का मकान बनाए जाने के लिए केंद्र सरकार से आर्थिक मदद मिलेगी। केंद्र सरकार ने शर्तें कुछ इस कदर सख्त कर दी जिसके चलते आए दिन लोगों के नाम ऐसी सूचियों से काटे जाने की प्रक्रिया भी चल पड़ी थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आह्वान किया था कि सन 2022 तक गरीब लोगों को पक्के मकान बनाकर दिए जाएंगे। हालांकि अब इसकी अवधि सन 2024 बताई गई है। केंद्र सरकार की शर्त के अनुसार पात्र व्यक्ति के पास पक्का मकान, वाहन, टीवी, फ्रिज आदि नहीं होना चाहिए। कहने को पंचायतों में बीपीएल परिवारों की भरमार है, मगर मकान बनाने के लिए उन्हें भी अपात्र समझना फिर क्या माना जाए? पंचायत प्रतिनिधियों ने इस योजना का लाभ उठाने की सोचकर कई अपात्र लोगों की गलत जियो टेगिंग की रिपोर्ट आगे केंद्र सरकार को भेजी थी। पशुशाला तक को कच्चा मकान साबित करके उसकी जगह केंद्र सरकार से नया मकान बनाने के लिए आर्थिक सहायता लेने की लोगों में होड़ सी मच गई थी। अब ऐसे आवेदनों की गहराई से जांच की जा रही है तो अधिकतर लोगों को अपात्र करार दिया जा रहा है। पंचायत प्रतिनिधियों की साख भी खतरे में है। पंचायती राज विभाग और कुछेक पंचायत प्रतिनिधियों ने अन्य लोगों के कच्चे घरों तक की वीडियोग्राफी केंद्र सरकार को भेजकर उसकी आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की थी। यही नहीं ऐसे आवेदन कर्ताओं के घरों में वाहन, टीवी, फ्रिज भी मौजूद हैं, मगर उनका नाम पक्के मकान मिलने की सूची में डाला गया है। एक पंचायत में सैंकड़ों ऐसे आवेदन केंद्र सरकार को भेजे जा चुके हैं।
ब्लाक स्तर पर ऐसे आवेदनों की संख्या दस हजार के आसपास भी बताई जा रही है। ऐसे में पात्र गरीब लोगों के आवेदन भी लटकते जा रहे हैं। अगर किसी ने बैंक से कर्जा ले रखा है तो उसे भी बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। चाहे वह बेशक बीपीएल की सूची में ही क्यों न शामिल हो। अन्य आवेदन कर्ताओं पर भी उल्टी-सीधी शर्तें लगाकर ऐसी किसी सुविधा मिलने की कोई उम्मीद नजर नहीं आती है। लोकतंत्र की परिचायक अधिकतर पंचायतें आजकल भ्रष्टाचार का अड्डा बनकर उभरी हैंष। यह बात सभी भली-भांति जानते हैं। पंचायत प्रतिनिधियों का अधिकतर सरकारों से मिलने वाली फंडिंग पर अत्यधिक फोकस रहता है। समाज के प्रति उनका क्या सरोकार है, बहुत कम पंचायत प्रतिनिधि इस बात से जागरूक हैं। पंचायत प्रतिनिधियों की गलत कार्यप्रणाली का खामियाजा पात्र गरीब लोगों को भुगतना पड़ा जो नए मकान मिलने की आस लगाए बैठे हैं। पंचायती राज विभाग का सशक्तिकरण किए जाने का राग सरकारें अलापती जा रही हैं। आजादी के सात दशक गुजर जाने के बावजूद न तो विकास कार्य खत्म होने का नाम लेते हैं और न गरीबी। ऐसे में फिर कैसे पंचायतों का सशक्तिकरण हो, यह बड़ा सवाल है। केंद्र और राज्य सरकारें पंचायतों में विकास की गंगा बहाने के लिए प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपए देती हैं।
सरकारों के बजट का जमकर दुरुपयोग कुछेक पंचायत प्रतिनिधि करके अपना पेट भरने में मशगूल हैं। प्रत्येक वर्ष पंचायतों का लेखा-जोखा भी हो रहा है, मगर फिर भी भ्रष्टाचार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। पंचायत के विकास कार्यों की गुणवत्ता सही न होने के कारण कई बार एक विकास कार्य पर ही बजट खर्च करना पड़ रहा है। गांवों में अब लोग संयुक्त परिवारों में रहना पसंद नहीं कर रहे हैं। नतीजतन ऐसे लोग अपना पक्का मकान बनाने का सपना संजो लेते हैं। बढ़ती महंगाई के कारण आजकल पक्का मकान तैयार किया जाना कोई आसान काम नहीं रह गया है। ऐसे लोग सरकारों से मकान बनाने के लिए मिलने वाली आर्थिक मदद की आस में बैठे रहते हैं। पंचायतों की सरदारी भी अब एक ही परिवार के जिम्मे रह रही है। कभी घर का मुखिया प्रधान तो कभी उसकी धर्म पत्नी। ऐसे में आम आदमी चुनाव में खड़ा होने की सोच भी नहीं सकता है। पंचायत प्रतिनिधियों की यही कोशिश रहती है कि वे अपना अधिक वोट बैंक बनाए रखने के लिए जनता को सहूलियतें पहुंचाएं, चाहे वह अपात्र ही क्यों न हो। सरकारों द्वारा मकान बनाने के लिए किसी गरीब को दी जाने वाली धनराशि नकाफी होती है। ऊपर से गरीब लोगों को यह धन राशि कई किस्तों में दी जाती है। वह भी उन्हें पूरी नहीं मिलती है। ऊपर से लेकर नीचे तक सिस्टम दलदल में संलिप्त है।
हिमाचल प्रदेश की अधिकतर पंचायतें भ्रष्टाचार का अड्डा बनकर रह गई हैं, ऐसा कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। पंचायत प्रतिनिधियों को पंचायती राज एक्ट के बारे में जागरूकता न होने के कारण वे अपने अधिकारों का सही उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियां सही ढंग से निभाने में वे नाकाम हैं। पंचायतों में सरेआम अवैध शराब सहित दूसरे कई नशे बेचे जा रहे हैं, मगर ऐसे माफिया के खिलाफ आवाज कौन उठाए, यह बड़ी समस्या है। अधिकतर लोगों के आपसी विवाद पंचायतें स्वयं निपटाने की बजाय सीधे पुलिस थानों में भेज देती हैं। नतीजतन पुलिस के ऊपर काम का बोझ बढ़ता ही जा रहा है। पंचायतें न तो विकास कार्य सही करवाने में सफल हो पा रही हैं और न ही समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियां। ऐसे में पंचायती राज विभाग का सशक्तिकरण होना केवलमात्र सपना बनकर रह गया है। पंचायत प्रतिनिधियों ने बोट बैंक की राजनीति के चलते हजारों अपात्र आवेदन केंद्र सरकार को भेजे थे। केंद्र सरकार ने जब आवेदनों की गहराई से जांच करवाई तो अधिकतर फर्जी निकले जिसकी वजह से इस प्रक्रिया में अभी तक देरी हुई थी। अब अगले दो महीनों में पात्र गरीब लोगों को नए मकान मिलने वाले हैं जो कि सुखद बात है।
सुखदेव सिंह
लेखक नूरपुर से हैं
By: divyahimachal
Rani Sahu
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