सम्पादकीय

बिजली भी हुई मुहाल

Triveni
10 Jun 2021 4:47 AM GMT
बिजली भी हुई मुहाल
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कोरोना महामारी की मार दुनिया में जिंदगी के किन-किन पहलुओं पर पड़ी है,

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| कोरोना महामारी की मार दुनिया में जिंदगी के किन-किन पहलुओं पर पड़ी है, अभी इसका अंदाजा सबको नहीं है। हर गुजरते दिन के साथ कोई नया पहलू उभर कर सामने आता है। मसलन, अब ये खबर आई है कि कोविड-19 महामारी के कारण हुए आर्थिक नुकसान ने एशिया और अफ्रीका में ढाई करोड़ लोगों को बिजली खरीदने में असमर्थ बना दिया है। इससे 2030 तक सभी को बिजली देने का वैश्विक लक्ष्य खतरे में पड़ता दिख रहा है। अक्षय ऊर्जा स्रोतों का अध्ययन करने वाली एक वैश्विक संस्था ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि प्रभावित लोगों में से दो-तिहाई सब-सहारा अफ्रीका में हैं। 2020 में कोविड-19 संकट ने नौकरियों और आय को प्रभावित किया है, जिससे पंखे चलाने, बत्ती जलाने, टीवी और मोबाइल फोन को चार्ज करने के लिए आवश्यक बिजली सेवाओं का भुगतान करने में लाखों लोगों ने दिक्कतों का सामना किया है। इससे पिछले दशक में हुई प्रगति खतरे में पड़ गई है। गौरतलब है कि 2010 से करीब एक अरब लोगों तक बिजली पहुंचाया गया था।

2019 में दुनिया की 90 फीसदी आबादी तक बिजली पहुंची। रिपोर्ट के मुताबिक बिजली उपलब्धता के मामले में संयुक्त राष्ट्र के तय लक्ष्य को महामारी ने प्रभावित किया है। लक्ष्य सभी के पास 2030 तक बिजली पहुंचने का है। दुनिया के तमाम विशेषज्ञ मानते हैं कि बिजली की उपलब्धता विकास के लिए महत्वपूर्ण है। ये दुखद है कि दुनिया में अभी भी करीब 75.9 करोड़ लोग बिना बिजली के रहते हैं। उनमें से आधे गरीब देशों में हैं। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, अंतरराष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी, संयुक्त राष्ट्र संघ आर्थिक और सामाजिक विभाग, विश्व बैंक और विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान और नियोजित नीतियों के तहत अनुमानित 66 करोड़ लोगों को 2030 तक अब बिजली उपलब्ध नहीं हो सकेगी। दुनिया की आबादी का लगभग एक तिहाई यानी 2.6 अरब लोगों को 2019 में खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध नहीं थी। एशिया के बड़े हिस्से में प्रगति के बावजूद ये सूरत बनी हुई है। सब-सहारा अफ्रीका में समस्या सबसे गंभीर है, जहां अब भी लोग खाना पकाने के लिए मिट्टी का तेल, कोयला और लकड़ी जैसी चीजों का इस्तेमाल करते हैं, जो प्रदूषण फैलाने के साथ-साथ सेहत के लिए भी खतरनाक हैं। ऐसी रिपोर्टें समस्याएं बताती हैं। समाधान क्या है, ये ढूंढना सरकारों का काम है।


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