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कोरोना की तीसरी लहर का अंदेशा अब बीती बात लग रही है। इसलिए कि कुछ प्रदेशों में चुनावी लहर चल पड़ी है
नवनीत गुर्जर। कोरोना की तीसरी लहर का अंदेशा अब बीती बात लग रही है। इसलिए कि कुछ प्रदेशों में चुनावी लहर चल पड़ी है। सब जानते हैं- चुनाव और कोरोना साथ नहीं रह सकते। कोरोना आता है तो चुनाव नहीं होते। चुनाव आते हैं तो कोरोना भाग जाता है। चुनाव होता ही ऐसा है। इसकी गलियां बहुत तंग और भीड़ बहुत चौड़ी होती है। शोर तो इतना कि धर्मग्रंथों में उल्लिखित आकाशवाणी भी फीकी पड़ जाए।
अपने-पराए का अंतर लोप हो जाता है। आस-पास और दूर दराज की हवा रोमांचक अफवाहों से तल्ख होने लगती है। ठीक है- कोरोना की तीसरी लहर दरवाजे पर खामोश खड़ी है, लेकिन चुनाव उसे अंदर आने नहीं देंगे और वह दरवाजे पर ही खड़ी-खड़ी पत्थर हो जाएगी। चुनावी शोर उसके कानों में लोहे की तरह पिघला दिया जाएगा। …और हम कोरोना से सुरक्षा के मुकम्मल आश्वासन के साथ वोट डालेंगे। सबसे बड़े प्रदेश- उत्तर प्रदेश में। हो सकता है सबसे महत्वपूर्ण प्रदेश- गुजरात में भी।
इतने महत्वपूर्ण चुनाव हों तो बात ही अलग होती है। उत्तर प्रदेश में तो एक तरह से प्रचार शुरू भी हो गया है। वो दिन दूर नहीं जब दूर-दूर से नेता आम जनता की आरती उतारने लगेंगे। नेता, जो हमें चौराहे पर घंटों खड़ा रखकर लाल बत्ती की गाड़ी में फुर्र से निकल जाते हैं, घर-घर आने लगेंगे। दरअसल, चुनावों का सच यह है कि इसमें प्रत्याशी छोटे नेता होते हैं, लेकिन दांव पर प्रतिष्ठा बड़े नेताओं की होती है। वैसे ही, जैसे कुछ कहानियों में तोते की गर्दन मरोड़ो तो कहानी का मुख्य पात्र तिलमिला उठता है। वजह कई हैं- किसी बड़े नेता ने उस प्रत्याशी को पात्र न होते हुए भी टिकट दिलवाया होता है या कोई प्रत्याशी उस बड़े नेता का नाते-रिश्तेदार होता है।
खैर, फिलहाल कोरोना की तीसरी लहर की कोई आशंका दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही है। क्योंकि वैक्सीनेशन ने गजब की रफ्तार पकड़ ली है। लोगों में चेतना भी आई है और वे सावधानी भी बरत रहे हैं। हर कदम पर। हर मुकाम पर। हर गली और चौराहे पर भी। यही सावधानी है, जिसने कोरोना को हराया है और आगे भी हराती रहेगी।
उधर, जाते-जाते बारिश ने भी बहुत कुछ धो डाला है। कहीं फसलें बर्बाद हो गई हैं। कहीं तीन महीने की कमी की पूर्ति हुई है। गुजरात के सौराष्ट्र में तो जैसे कहर बनकर टूटा है पानी। क्या राजकोट, क्या जूनागढ़, क्या गिर, क्या सोमनाथ। घर, गली, खेत, गांव, शहर, सब पर पानी फिर गया। लगता है सब एकाकार हो गया। कारें, सड़कों पर बह रही हैं। लोग नावों में बैठे इधर-उधर हो रहे हैं, पर बारिश थमने का नाम नहीं लेती। बड़ी संख्या में लोग छतों पर हैं और उनके घरों में पानी पसरा है। न खाने का ठिकाना, न कपड़े-लत्तों की परवाह। सबकुछ पानी-पानी हो गया है।
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