सम्पादकीय

ऐलनाबाद उपचुनाव के लिए बिछी चुनावी बिसात, एक बिखरे हुए कुनबे के बीच होगी महाभारत

Gulabi
17 March 2021 9:49 AM GMT
ऐलनाबाद उपचुनाव के लिए बिछी चुनावी बिसात, एक बिखरे हुए कुनबे के बीच होगी महाभारत
x
2019 में बिखरा हुआ था परिवार

चुनावों के मौजूदा दौर में जब सबकी नज़रें पांच प्रदेशों में हो रहे विधानसभा चुनाव पर टिकी है, हरियाणा के ऐलनाबाद में अभी से चुनावी बिसात बिछती दिख रही है. हो भी क्यों न, जब ऐलनाबाद में होने वाला चुनाव महज विधानसभा का उपचुनाव नहीं होगा, बल्कि वहां एक बिखरे हुए कुनबे के बीच विरासत की महाभारत जो होने वाली है. मजेदार बात यह है कि चुनाव आयोग ने अभी ऐलनाबाद में उपचुनाव की घोषणा नहीं की है. संभावना है कि ऐलनाबाद विधानसभा चुनाव मई के दूसरे पखवाड़े में हो सकता है.

ऐलनाबाद सीट पर उपचुनाव इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) के इकलौते विधायक अभय सिंह चौटाला के किसान आंदोलन के समर्थन में जनवरी में दिए इस्तीफे से खाली हुई सीट की भरपाई के लिए होगा. जहां अभय सिंह चौटाला फिर से एक बार चुनावी मैदान में ताल ठोकते दिखेंगे. इस बार उनका सामना अपने भतीजे दिग्विजय सिंह चौटाला से हो सकता है. दिग्विजय हरियाणा के मौजूदा उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के छोटे भाई हैं और अभय सिंह के बड़े भाई अजय सिंह चौटाला के छोटे बेटे.

2019 में बिखरा हुआ था परिवार

2019 के विधानसभा चुनाव में भी चौटाला परिवार बिखरा हुआ था, पर परिवार के सदस्य एक दूसरे के खिलाफ चुनाव नहीं लड़े थे. ऐलनाबाद में अभय सिंह ने बीजेपी प्रत्याशी पवन बेनीवाल को लगभग 12,000 मतों दे हरा कर लगातार तीसरी बार विधायक चुने गए थे. तीसरे नंबर पर कांग्रेस पार्टी रही थी और INLD से अलग हो कर अजय सिंह चौटाला परिवार द्वारा बनाई गई जननायक जनता पार्टी के प्रत्याशी ओपी सिहाग की जमानत जब्त हो गयी थी. अक्टूबर 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद हरियाणा की राजनीति में काफी बदलाव आया है. जेजेपी अब बीजेपी की सहयोगी दल है और राज्य में दोनों दलों की मिली जुली सरकार है. अब बीजेपी और जेजेपी एक दूसरे के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ेगी. पिछले साल हुए बरौदा विधानसभा उपचुनाव में भी ऐसा देखा गया था. बीजेपी इस सीट पर चुनाव लड़ी थी और जेजेपी ने बीजेपी का समर्थन किया था.
बीजेपी नहीं करेगी दावा
अगर 2019 विधानसभा चुनाव परिणाम को देखा जाए तो इस सीट पर बीजेपी का दावा बनता है, पर संभावना यही है कि बीजेपी इस सीट पर अपना दावा नहीं करेगी और जेजेपी को समर्थन देगी. कारण साफ़ है अभय सिंह चौटाला को हराना. वैसे भी बीजेपी पिछले दो चुनावों से ऐलनाबाद में दूसरे नंबर पर ही रही थी और बीजेपी के चुनाव लड़ने की स्थिति में शायद अभय सिंह के पुनर्निर्वाचन का रास्ता आसान बन सकता है, जो न तो बीजेपी चाहेगी न ही जेजेपी.
चौटाला को चौटाला ही हरा सकता है
बीजेपी को पता है कि लोहा ही लोहे को काटता है. लंबे समय से ऐलनाबाद सीट पर चौटाला परिवार की जीत होती रही है. अभय सिंह को अगर कोई हरा सकता है तो वह कोई और नहीं बल्कि उनके परिवार का ही कोई सदस्य, ये उनके सगे भतीजे दिग्विजय हो सकते हैं. दिग्विजय की राजनीति में जनवरी 2019 में धमाकेदार शुरुआत हई थी. जींद में विधानसभा उपचुनाव हुआ था, जिसमे जीत तो बीजेपी की हुई पर पहली बार चुनाव लड़ते हुए जेजेपी दूसरे नंबर पर आ गई थी. जेजेपी की तरफ से चुनाव दिग्विजय ने लड़ा था. कांग्रेस पार्टी के बड़े केंद्रीय नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला तीसरे स्पॉट पर सरक गए थे और अभय सिंह की अथक मेहनत के बाद भी INLD अपनी जमानत बचाने में असफल रही थी.
अभय सिंह चौटाला बनाम दिग्विजय सिंह चौटाला की टक्कर जोरदार होगी. INLD और जेजेपी दोनों चौधरी देवीलाल की विरासत की लड़ाई लड़ रहे हैं. पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर अभय सिंह को चुनाव लड़ना ही था तो उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा ही क्यों दिया?
जेजेपी का बढ़ा प्रभाव
पिछले डेढ़ सालों में जेजेपी का प्रभाव हरियाणा की राजनीति में बढ़ा है. सरकार में होने का काफी फायदा होता है और जेजेपी अपने एक बड़ा चुनावी वादा, प्रदेश के निजी क्षेत्र में 75 प्रतिशत रोजगार हरियाणा के युवा के लिए आरक्षित करने संबंधित वादे को कार्यान्वित करने में सफल रही है, जिससे दुष्यंत सिंह और अजय सिंह चौटाला का राजनीतिक कद बढ़ गया है. जब टक्कर चौटाला परिवार के दो सदस्यों के बीच होगी तो जिसके हाथ सत्ता है, उसे उपचुनावों का फायदा मिल सकता है.
क्या INLD की कब्र खोद दी
अभय सिंह की राजनीतिक परिपक्वता हमेशा से संदेह में रही है. उन्होंने सोचा था कि किसान आन्दोलन के नाम पर इस्तीफा देने से वह किसानों के बड़े नेता बन जाएंगे. अन्य दलों के विधायकों पर दबाब बनेगा और बड़ी संख्या में हरियाणा के विधायक इस्तीफा देंगे. INLD की एक बार फिर से हरियाणा की राजनीति में एक बड़ी शक्ति बन कर वापसी होगी. ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. किसान आंदोनल अभी जारी है और किसी अन्य विधायक ने इस्तीफा नहीं दिया. उल्टे इस्तीफे की राजनीति अभय सिंह के गले की घंटी बन गयी है. अगर अभय सिंह अपनी सीट बचाने में सफल भी रहते हैं तो इससे खास प्रभाव नहीं पड़ने वाला है और अगर हार गए तो अभय सिंह INLD की कब्र खोदने का ही काम करेंगे.


Next Story