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5 राज्यों में चुनाव
अजय झा।
कांग्रेस पार्टी की बेचैनी जरूर बढ़ गयी होगी, स्वाभाविक भी है. पांच राज्यों में अगले वर्ष की शुरुआत में विधानसभा चुनाव निर्धारित है. चुनाव पूर्व का एक सर्वे आया है जिसके अनुसार बीजेपी उन सभी राज्यों में जहां उसकी अभी सरकार है, चुनाव जीतने जा रही है. कांग्रेस पार्टी पंजाब में चुनाव हारने के कगार पर है.
ओपिनियन पोल यदा कदा ही सही साबित होता है और वह भी तब जबकि एक सर्वे चुनाव के लगभग छः महीने पहले हुआ हो. पर ओपिनियन पोल से कुछ हद तक वोटर के मूड की झलक मिल जाती है.
यह सर्वे सी-वोटर नाम की कंपनी ने एक निजी टीवी चैनल के लिए की है, जिसके अनुसार पंजाब में त्रिशंकु विधानसभा चुनी जाएगी जिसमें आम आदमी पार्टी को बहुमत के लिए कुछ सीटें कम रह जाएंगी . सर्वे के अनुसार आप जो पिछले चुनाव में 20 सीटों के साथ प्रमुख विपक्षी पार्टी बनी थी को 70 सदस्यों वाली विधानसभा में 51 से 57 सीटों पर जीत की सम्भावना है, जबकि राज्य की सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी 38 से 46 सीट जीत कर दूसरे स्थान पर होगी. कांग्रेस पार्टी को 2017 को पिछले चुनाव में 77 सीटों पर सफलता मिली थी. शिरोमणि अकाली दल को 16 से 24 सीटें तथा बीजेपी का या तो खाता नहीं खुलेगा या सिर्फ एक सीट पर ही जीत नसीब होगी.
चार राज्यों में बीजेपी की सरकार बनने की उम्मीद
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बीजेपी को एक बार फिर से स्पष्ट बहुमत मिलने की बात की गयी है. बीजेपी के लिए शुभ संकेत गोवा और मणिपुर में है जहां 2017 में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था. यहां कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी चुन कर आई थी, पर सरकार बनाने में बीजेपी सफल रही थी.
सी-वोटर का अनुमान है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी 312 सीटों की जगह इस बार 259 से 277 सीटें ही जीत पाएगी. जो 403 सदस्यों वाली विधानसभा में स्पष्ट बहुमत होगा. वहीँ इस सर्वे में समाजवादी पार्टी को 109 से 117 सीटें, बहुजन समाज पार्टी को 12 से 16 सीटें तथा कांग्रेस पार्टी को 3 से 7 सीटें मिलने की सम्भावना व्यक्त की गयी है. फिलहाल हम नज़र डालते हैं पंजाब और उत्तर प्रदेश पर.
पंजाब में विजय कांग्रेस पार्टी के लिए अत्यंत जरूरी है. पंजाब उन तीन राज्यों में से एक है जहां कांग्रेस पार्टी की अपने दम पर सरकार है. पंजाब में चुनाव हारने और किसी अन्य राज्य में सत्ता हासिल करने की विफलता कांग्रेस पार्टी की 2024 लोकसभा चुनाव जीतने और राहुल गांधी के अगला प्रधानमंत्री बनने के सपने को चकनाचूर कर सकती है. वहीं उत्तर प्रदेश में विजय बीजेपी के लिए काफी अहम है. ना सिर्फ उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक 80 लोकसभा के सांसद चुने जाते हैं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी उत्तर प्रदेश ही से सांसद हैं. उत्तर प्रदेश पंजाब और हरियाणा के साथ उन तीन प्रदेशों में शामिल है जहां पिछले 9 महीनों से भी अधिक समय से कृषि कानूनों के विरुद्ध किसान आंदोलन से आम जनजीवन प्रभावित है. उत्तर प्रदेश में लगातार दूसरी बार जीत से बीजेपी के लिए ना सिर्फ अगला लोकसभा चुनाव जीतने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा बल्कि यह भी साबित हो जाएगा कि किसान आंदोलन राजनीति से प्रेरित है, जैसा कि बीजेपी का दावा है, और किसान आंदोलन को जनता का समर्थन नहीं है.
ओपिनियन अपना भरोसा खो चुके हैं
वैसे ओपिनियन पोल पूर्णतया सटीक कभी नहीं होता है. अगर सी-वोटर की ही बात करें तो पंजाब में 2017 में 4 फरवरी को मतदान हुआ था और ठीक इसके पहले सी-वोटर का सर्वे आया था जिसमे कंपनी ने आप के जीत की भविष्यवाणी की थी. सर्वे के अनुसार आप को 63, कांग्रेस पार्टी को 43 और अकाली दल-बीजेपी गठबंधन को 11 सीटों पर जीत की बात की गयी थी. पर परिणाम ठीक इसके उल्टा निकला. कांग्रेस पार्टी 77 सीटों के साथ एकतरफा जीत हासिल करने में सफल रही थी और आप का विजय रथ 20 सीटों पर ही रुक गया था. ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ सी-वोटर का सर्वे ही पंजाब में गलत साबित हुआ. सी-वोटर के अलावा आठ और कंपनियों ने भी 2017 के जनवरी-फरवरी के बीच सर्वे किया था और सिर्फ एक सर्वे में ही कांग्रेस पार्टी को बहुमत मिलते दिखाया गया था. आम आदमी पार्टी कम से कम तीन सर्वे में बहुमत के साथ सरकार बनाती दिख रही थी, पर आप बहुमत से 39 सीटें दूर रह गयी.
उत्तर प्रदेश में 11 सर्वे हुआ था और सिर्फ एक ही में बीजेपी को 202 जो बहुमत का न्यूनतम आंकड़ा है, सीटों पर जीतने की बात की गयी थी. बाकी सभी में खंडित जनादेश की भविष्यवाणी की गयी थी और अधिकतर में समाजवादी पार्टी-कांग्रेस पार्टी गठबंधन को आगे दिखाया गया था. पंजाब की ही तरह कोई भी ओपिनियन पोल करने वाली कंपनी उत्तर प्रदेश की जनता के मूड को भांपने में सफल नहीं रही थी और किसी को अनुमान नहीं था कि बीजेपी को दो तिहाई से भी अधिक सीट मिलने वाला है. बीजेपी सिर्फ 384 सीटों पर ही चुनाव लड़ी थी और बांकी के 19 सीट उसने एनडीए के अन्य घटक दलों के लिए छोड़ दिया था. बीजेपी के 384 में से 312 प्रत्याशी सफल रहे थे, और उत्तर प्रदेश का चुनाव पूर्णतया एकतरफा रहा था.
आने वाली दिनों में और भी सर्वे होगा और अलग अलग आंकड़े सामने आएंगे जिसके कारण चुनाव में दिलचस्पी बनी रहेगी. ओपिनियन पोल का सही साबित नहीं होने का एक बड़ा कारण होता था सर्वे का सैम्पल साइज़. पंजाब में लगभग 2 करोड़ मतदाता हैं और सी-वोटर ने लगभग 13,000 लोगों की ही नब्ज़ टटोली, जिसके कारण गलती होने की संभावना रहती ही है. कई बार या तो मतदाता चुनाव के ठीक पहले ऐन वक्त पर फैसला करते हैं कि किसे वोट देना है या कई बार सर्वे करनेवाली टीम को जानबूझ कर भी गलत जानकारी दी जाती है.
5 से 6 महीने में वोटर्स का मूड बदल जाता है
एक सर्वे का आकड़ा तो फ़िलहाल आ गया है, पर यह समय बीजेपी के लिए जश्न मानाने का या कांग्रेस पार्टी के लिए मातम मानाने का नहीं है, क्योकि चुनाव अभी भी 5-6 महीने दूर है और वोटर्स का मूड इस बीच में बदल भी सकता है. पर कांग्रेस पार्टी के लिए संकेत अशुभ जरूर है. किसान आंदोलन की शुरुआत पिछले वर्ष पंजाब से ही हुयी थी और कांग्रेस पार्टी आन्दोलनकारी किसानों का शुरू से खुल कर साथ दे रही है. ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेस आलाकमान को इस बात का अंदेशा नहीं हो कि पार्टी की समय रहते पंजाब में अंदरूनी कलह को ख़त्म करने में बरती गयी सुस्ती और अभी भी लगातार जारी घमासान से पार्टी को क्या नुकसान होने वाला है. यह कांग्रेस पार्टी पर निर्भर करता है कि या तो पार्टी अभी से हथियार डाल दे या फिर आपसी मतभेद भूल कर एकजुट हो जाए और जनता का विश्वास जीतने की कोशिश करे. सभी दल जानते हैं कि चुनाव संभावनाओं का ही खेल होता है और जब तक वोटों की गिनती नहीं हो जाती जीत की संभावना बनी रहती है. वैसे सर्वे का परिणाम है कि कांग्रेस पार्टी धीरे धीरे जनता का विश्वास खोती जा रही है. यह गलत भी नहीं लगता क्योंकि कांग्रेस पार्टी फटे पर पैबंद लगाने की कोशिश करती भी नहीं दिख रही है.
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