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2022 में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं
विवेक त्रिपाठी 2022 में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं. वादों के अंबार लगने लगे हैं. कई राज्यो में तो पहले धर्म फिर जाति के नाम पर राजनीतिक गोटियां सेट की जा रही हैं. वोटर्स को लुभाने के लिए तमाम तरह के लोकलुभावन वादे किए जा रहे हैं. नेताओं की सियासी चाल ऐसा होती है कि मतदाता की बुद्धि इतनी भ्रमित हो जाती है कि वह सोच ही नहीं पाता कि वो किसे चुने नेता या राजनीतिज्ञ.
चुनावी मौसम में मतदाता के सामने असमंजस की स्थिति तो तब होती है, जब प्रत्याशी चुनाव से पहले एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे होते हैं, और साथ मिलकर सरकार बना चुके होते हैं फिर चुनाव आने पर एक दूसरे के विरोधी बन जाते हैं और वोट मांगने आ जाते हैं. ज्यादातर मामलों में ये भी देखने को मिलता है कि दबंग करप्ट नेता धन बल के दम पर जीत दर्ज करता है. कोई भी चुनाव हो, प्रत्याशी से अधिक एक आम नागरिक के लिए सबसे कठिन परीक्षा है. चुनौती इस बात की कि वो सही नेता को चुनाव जिताए ताकि आगे चलकर हाथ मलते हुए अफसोस ना करना पड़े.
मतदाता का ये समझना बहुत जरूरी
सबसे पहले एक मतदाता को ये समझना होगा कि उसे नेतृत्व की क्षमता रखने वाला नेता चाहिए या एक राजनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ तो वो है जिसका लक्ष्य ही सत्ता पाने का हो. यानि कि वोटर को सबसे पहले नेता और राजनीतिज्ञ का भेद समझना होगा. मतलब परस्त नेता की पहचान करके उसे छांटना होगा और सादगी-सेवाभाव वाले नेता को सत्ता की बागडोर सौंपनी होगी, नहीं तो पीढ़ी दर पीढ़ी लोकतंत्र के मंदिर में चुनाव एक पेशा बनकर रह जाएगा और हम पीड़ित.
एक अच्छा नेता कैसे चुनें
जब आपके इलाके का प्रत्याशी आपसे वोट मांगने आए तो उससे कुछ सवाल जरूर पूछें और उसकी मानसिकता की पहचान करें. सबसे पहले अपने-अपने इलाके के प्रत्याशी से उसका विजन जानने की कोशिश करें. फिर आपके बच्चों के भविष्य के बारे में वो क्या सोचता है ये भी पूछ लें. अगर आपका प्रत्याशी राजनीतिज्ञ होगा तो वो सड़क, पूजा स्थल, भवन, मुफ्त बिजली-पानी-रोटी का वादा करेगा. तब समझ लीजिएगा कि वो सिर्फ करप्शन करेगा और आपको पांच साल और पीछे कर देगा. अगर जो प्रत्याशी वास्तविक लीडर होगा वो ऐसी योजनाएं आपके सामने रखेगा जिसमें आपके बच्चों का भविष्य जुड़ा हो, शिक्षा, रोजगार की योजनाओं का खाका आपके सामने रखेगा. तब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वो आपके भविष्य के बारे में कुछ अच्छा सोचता है.
एक उदाहरण से समझें
अब आज के दौर की बात करते हैं. उत्तर प्रदेश चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 300 यूनिट मुफ्त बिजली का वादा किया, इस रेस में अखिलेश और प्रियंका भी आ गए, इन दोनों ने भी मुफ्त बिजली का वादा कर दिया, जबकि उत्तर प्रदेश का विद्युत विभाग 90 हजार करोड़ रुपये के घाटे में है. प्रदेश के बिजली मंत्री श्रीकांत शर्मा खुद इसे स्वीकार कर चुके हैं. ऐसा नहीं है कि ये घाटा बीजेपी सरकार के कार्यकाल में हुआ है. पिछली सरकार में यानि जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे तब भी उत्तर प्रदेश का विद्युत विभाग 73 हजार करोड़ रुपये घाटे में था. अब जरा सोचिए उत्तर प्रदेश का बिजली विभाग घाटे में है और यह नेता वोट के लिए मुफ्त बिजली का प्रलोभन दे रहे हैं. वहीं योगी सरकार का दावा है यूपी में बिजली सप्लाई की व्यवस्था पहले से बेहतर है. 2017 से अब तक बिजली की दरों में 25 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है. 2019 में आखिरी बार बिजली 12 से 15 फीसदी महंगी हुई थी इन सबके बावजूद विभाग का घाटा भी सवालों के घेरे में है.
बाद में पछतावा ना हो
बिजली की बात करके सिर्फ आपको उदाहरण के तौर पर समझाने की कोशिश की गई है कि नेता और राजनीतिज्ञ के फर्क को आप कैसे समझें. इसे देश का दुर्भाग्य ही कहें कि भारत में नेता कम पॉलिटिशियन ज्यादा पैदा होने लगे हैं. आज को दौर में ज्यादातर नेताओं का पेशा चुनाव बन गया है. वो पहले सत्ता की चाबी पाता है और फिर कुर्सी पर बैठते ही सत्ता के नशे में चूर हो जाता है. बस इस परिस्थिति के आने से पहले ही वोटर को समझदारी दिखानी होगी. एक समझदार वोटर को किसी वाद-विवाद में पड़े बिना अपना फोकस इसपर करना चाहिए कि चाहे कोई भी चुनाव हो आप लीडर को चुनें ना कि पॉलिटिशियन को, क्योंकि इसके बाद भविष्य में आपको अपना वोट खराब होता ना दिखे और कोई अफसोस ना हो कि हमने गलत नेता चुन लिया
Rani Sahu
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