सम्पादकीय

चुनावी गहमागहमी : महिलाओं की कम क्यों है हिस्सेदारी, पांच राज्यों की राजनीति में हाशिये पर

Neha Dani
4 March 2022 1:46 AM GMT
चुनावी गहमागहमी : महिलाओं की कम क्यों है हिस्सेदारी, पांच राज्यों की राजनीति में हाशिये पर
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समय बेहद ही संकुचित और संकीर्ण गलियारों में तब्दील हो जाते हैं।

पांच राज्यों की चुनावी गहमागहमी के बीच एक प्रश्न अपना उत्तर ढूंढ रहा है कि महिलाओं के हिस्से राजनीतिक नेतृत्व क्यों नहीं? राजनीति में महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व न मिलने से महिला सशक्तीकरण की संभावनाएं हाशिये पर चली जाती हैं और यह स्थिति विश्व भर की है। 'ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2021' के मुताबिक विश्व भर में 35,500 संसदीय सीटों (156 देशों) में महिलाओं की उपस्थिति मात्र 26.1 प्रतिशत है।

यह रिपोर्ट बताती है कि 156 देशों में से 81 देशों में उच्च राजनीतिक पदों पर महिलाएं नहीं रही हैं। स्वीडन, स्पेन, नीदरलैंड और अमेरिका जैसे लिंग समानता के मामले में अपेक्षाकृत प्रगतिशील माने जाने वाले देश इनमें शामिल हैं। 2018 के आर्थिक सर्वे के मुताबिक, अपने देश के सभी राज्यों की विधानसभाओं में सिर्फ नौ फीसदी महिला विधायक थीं।
विश्व की तमाम संस्थाएं स्वीकार करती हैं कि महिलाओं की पूर्ण और प्रभावी राजनीतिक भागीदारी मानवाधिकार, समावेशी विकास और सतत विकास का मामला है। निर्णय लेने और राजनीतिक भागीदारी के सभी स्तरों पर पुरुषों के साथ समान शर्तों पर महिलाओं की सक्रिय भागीदारी समानता, शांति और लोकतंत्र की उपलब्धि है और निर्णय प्रक्रिया में उनके दृष्टिकोण और अनुभवों को शामिल करने के लिए आवश्यक है।
इसके बावजूद क्यों महिलाओं को राजनीति से दूर रखने के लिए पितृसत्तात्मक व्यवस्था अनवरत प्रयास करती आ रही है? यह स्थिति उन देशों में भी है, जो महिला सशक्तीकरण की उज्ज्वल छवि वैश्विक मंच पर प्रदर्शित करते आए हैं। 'रेक्यिवेक इंडेक्स 20-21' के 'सत्ता में पदों के लिए उपयुक्तता-पुरुष और स्त्री के संबंध में दृष्टिकोण' अध्ययन में सम्मिलित जी-7 देशों के बीस हजार वयस्कों की, महिलाओं के राजनीति में नेतृत्व को लेकर जो विचार हैं, वे अचंभित करते हैं।
हैरान करने वाला तथ्य तो यह है कि जिस युवा पीढ़ी (18-34 वर्ष) को आधुनिक विचारों का पैरोकार समझा जाता है, वह पीढ़ी महिलाओं के राजनीति में प्रभावशील नेतृत्व को लेकर संकुचित विचारधारा रखती है, बनिस्बत अपनी पुरानी पीढ़ी के। हिलेरी क्लिंटन ने अपनी किताब व्हाट हैपेंड में लिखा 'यह पारंपरिक सोच नहीं है कि महिलाएं नेतृत्व करें या राजनीति के दांव-पेच में शामिल हों। यह न तो पहले सामान्य था और न ही आज।'
अक्तबूर, 2018 में प्रकाशित अध्ययन सेक्सिज्म हरैस्मेंट ऐंड वायलेंस अगेंस्ट विमेन इन पार्लियामेंट 45 यूरोपीय देशों की 123 संसदीय महिलाओं के साथ साक्षात्कार पर आधारित है। यह अध्ययन बताता है कि यूरोप की संसदों में महिलाओं के खिलाफ यौनवाद, दुर्व्यवहार और हिंसा के कृत्य पाए जाते हैं। अध्ययन में सम्मिलित 85.9 प्रतिशत महिला सांसदों ने कहा कि उन्हें अपने कार्यकाल के दौरान मनोवैज्ञानिक हिंसा का सामना करना पड़ता है।
यूरोप की महिला सांसदों पर हुआ अध्ययन यह बताने के लिए पर्याप्त है कि चाहे मातृसत्तात्मक समाज हो या विकसित समाज, महिलाओं की समानता के तमाम दावे उनको राजनीतिक भागीदारी देते समय बेहद ही संकुचित और संकीर्ण गलियारों में तब्दील हो जाते हैं।

सोर्स: अमर उजाला

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