सम्पादकीय

चुनावी खिलौने टूटने लगे

Rani Sahu
4 May 2022 7:14 PM GMT
चुनावी खिलौने टूटने लगे
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सियासत का गठिया रोग ऐन चुनाव के वक्त सामने आता है

सियासत का गठिया रोग ऐन चुनाव के वक्त सामने आता है और इसके कारण पार्टियों के समीकरण आंतरिक दर्द से चिल्ला उठते हैं। देहरा के निर्दलीय विधायक होशियार सिंह फिर चर्चाओं में हैं और पूरे घटनाक्रम में कहीं गठिया तंग कर रहा है। गुलेर उप सब्जी मंडी का उद्घाटन अपने समारोह को दुर्ग बना लेता है और विधायक की भाषा बाहर निकलकर पूर्व मंत्री रविंद्र सिंह रवि को कुछ बोलने को उकसाती है। भाषा के अमर्यादित अध्याय वर्तमान सरकार की कार्यप्रणाली में कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री को भी उलझा देते हैं। यहां विषय केवल भाषा की मर्यादा का होता, तो इसे काबू में पाया जा सकता था, लेकिन आगामी चुनाव के खिलौने टूटने की आवाज आ रही है। ऐसी हरारत से सियासी मौसम को शिकायत हो सकती है। यह अकेला भाजपा का रोग नहीं, कांगे्रस से 'आप तक की बेचैनी है।

अस्तित्व की जंग में उतरी 'आप का मुआयना करंे तो चुनावी मौसम की हरारत में यह पार्टी त्रस्त है। संगठन की आमदनी में हर दिन कोई न कोई नेता आता हुआ दिखाई देता है, लेकिन एक त्वरित सूची इसके बिखरने की भी है। दूसरी ओर कांग्रेस ने जिस जिद्दत से अपनी कार्यकारिणी के गठन का रंग जमाया, उसकी कलई खुलने की आशंका शुरू हो गई। पदों का शक्ति प्रदर्शन पार्टी के लक्ष्यों पर भारी पडऩे लगा, तो सीमाएं तय होने लगीं। प्रचार समिति के अध्यक्ष सुखविंद्र सुक्खू का पदभार ग्रहण समारोह अब भले ही पांच मई को होगा, लेकिन इसकी अपनी एक फिजा रही है और इसका वर्णन हो रहा है। बहरहाल चुनाव खुद चलता नहीं, लेकिन चलती हुई राजनीति को बदल सकता है। ऐसे में एकजुटता के नारे पर कांग्रेस को पांच मई का प्रदर्शन दुरुस्त करना है, लेकिन सवाल तो देहरा के निर्दलीय व भाजपा समर्थक विधायक के प्रदर्शन का लटका रहेगा। ऐसा प्रतीत होता है कि देहरा की जनता ने 'निर्दलीय इबारत में खुद को कोसा या भाजपा के प्रत्याशी पूर्व मंत्री रविंद्र सिंह रवि की राजनीतिक मचान ढह गई। जो भी हो देहरा के सामने दो आदर्श और दो ही विरासत आमने सामने हैं। जब जयराम सरकार जनता को अपना रिपोर्ट कार्ड दिखा रही है, तो यह वर्तमान विधायक होशियार सिंह के काम आ रहा है, जबकि देहरा में ही केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के चंद मुद्दे रविंद्र सिंह रवि की वकालत करते हुए दिखाई देते हैं। इनमें से केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना को लेकर अनुराग ठाकुर ने रविंद्र सिंह रवि के अस्तित्व को प्रश्रय दिया है।
इसी परिप्रेक्ष्य में गुलेर सब्जी मंडी की औपचारिकताओं से अगर मंत्री वीरेंद्र सिंह कंवर के विभाग ने हाथ पीछे खींच लिए, तो यहां माजरा बड़ा हो जाता है। सुक्खू अगर कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह के पदभार से पहले अपना जलवा दिखा देते, तो माजरा वहां भी बड़ा हो जाता। चुनावी वर्ष में सभी के अपने-अपने माजरे रहेंगे, लेकिन जिसका जलवा चल गया, वही सिकंदर होगा। अभी हाल ही में राज्यसभा पहुंचे डा. सिकंदर कुमार, कुछ समय पूर्व तक शिमला विश्वविद्यालय के कुलपति थे, लेकिन उनका व्यक्तित्व राजनीति में आगे बढ़ गया। सारे देश की तरह हिमाचल में भी एक लहर हमारे सरकारी तंत्र के भीतर चलती रहती है और इसी तरह आज हम जिसे छात्रों के भविष्य पर कहते हुए सुनते हैं, कल राजनीति में अपना भविष्य तराश रहा होता है। यही हिमाचल की राजनीति का सत्य रहा है। पिछले कुछ सालों का राजनीतिक इतिहास इतना खुरदरा है कि हर बार जनता के सामने चुनावी विस्फोट होते हैं। धु्रव बनते हैं और कहीं पार्टियों के भीतर अपने ही लंगड़ी मार देते हैं। हिमाचल की जनता दुस्साहसी हो सकती है, क्रूर नहीं। इसलिए जब कभी कोई बड़ा नेता हारता है, तो पहली वजह खुद में ढूंढें और दूसरा यह कि राजनीति को क्रूर होने से बचाएं। देहरा में राजनीति अपनी क्रूरता से एक-दूसरे को पस्त करना चाहती है, लेकिन क्या जनता को भी यह स्वीकार होगा कि सारे मंच, सारे संबोधन अपनी-अपनी भाषा की मर्यादा खो दें। क्या नेता निपुण हैं या जनता इतनी कमजोर है कि उसके सामने चुनावी सर्कस केवल एक मनोरंजन या पहलवानी का दांव है। राजनीतिक फार्मूलों से हटकर जनता के पास ऐसी ईमानदारी जरूर है, जो जहां साबित हो जाए-बड़े से बड़े फन्नेखां नेता दफन हो जाते हैं। अतीत देख लें।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली

Rani Sahu

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