सम्पादकीय

चुटकी में चुनावी आपूर्ति

Rani Sahu
3 Jun 2022 7:16 PM GMT
चुटकी में चुनावी आपूर्ति
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पांचवें वर्ष की अहमियत में सत्ता पक्ष की बहारें और चांद सितारे तोड़ लाने की कवायद का शुक्रिया अदा करने का माहौल इस समय हिमाचल में व्याप्त है

पांचवें वर्ष की अहमियत में सत्ता पक्ष की बहारें और चांद सितारे तोड़ लाने की कवायद का शुक्रिया अदा करने का माहौल इस समय हिमाचल में व्याप्त है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने पूरे हाथ खोल दिए हैं और इस तरह प्रदेश जो कल तक सोच नहीं पा रहा था, आज होने लगा है। ऐसे में हम न बजट की बात करेंगे, न जीएसटी मुआवजे के 35 सौ करोड़ पर छाई अनिश्चितता और न ही केंद्र से किसी विशेष आर्थिक पैकेज की अपेक्षा करेंगे, लेकिन इन बहारों में उन कसीदों को सुनेंगे, जिन्हंे राजनीति हर बार गढ़ लेती है। अंतिम चरण के फैसले पवित्र जरूर हैं, लेकिन सत्ता का अंतिम वर्ष ही क्यों इतना नजदीक सुन पाता है। वर्षों से पंजाब की सीमा से सटे नूरपुर क्षेत्र के लिए अलग से पुलिस अधीक्षक की मांग हो रही थी, जिसे चुनाव की चुटकियों ने पूरा कर दिया। इसकी सराहना होनी चाहिए, लेकिन क्या एक एसपी की नियुक्ति से सीमा से सटे इलाके आपराधिक तंत्र, नशे की तस्करी और रेत माफिया के चुंगल से पूरे राज्य को बचा पाएंगे। शायद कोई निर्णय लेना आसान होता है, लेकिन नीति-नियम बना कर उन के ऊपर कार्यान्वयन करना उतना ही कठिन। होना तो यह चाहिए कि पांवटा साहिब से शुरू करके मैहतपुर और जसूर तक की पट्टी के लिए एक अलग तरह की पुलिस व्यवस्था चाहिए और इसके लिए अधिकार क्षेत्र, प्रशिक्षण तथा नियंत्रण की अलग से मानिटरिंग भी चाहिए।

यानी बीबीएन के बाद अगर नूरपुर को पुलिस जिला बनाया जा रहा है, तो इसी क्रम में पड़ोसी राज्यों की सीमा छूते समस्त जिलों के लिए भी अलग से पुलिस जिला चाहिए और बार्डर एरिया के लिए विशेष टॉस्क फोर्स बनाते हुए, इसका मुख्यालय किसी आईजी रेंज के तहत बीबीएन या ऊना में स्थापित किया जा सकता है। पुलिस व्यवस्था में सुधार की दृष्टि से अब शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अलग-अलग विंग तैयार करने पड़ेंगे। शिमला, धर्मशाला के साथ-साथ मंडी व सोलन नगर निगम क्षेत्रों के जुड़ने से पुलिस आयुक्तालयों और ग्रामीण पुलिस व्यवस्था की अलग से संभावना बढ़ जाती है। इसी के साथ प्रदेश की आर्थिकी तथा मानवीय प्रवृत्ति में आ रहे बदलावों को देखते हुए ट्रैफिक पुलिस का आचरण तथा बदोबस्त बदलने के साथ-साथ पर्यटन पुलिस की अलग से अवधारणा व संचालन जोड़ने की आवश्यकता पैदा हो चुकी है। बहरहाल अंतिम वर्ष की समीक्षा में बेहतर साबित होने की पूंजी सत्ता पक्ष के पास है और इसका बेहतर इस्तेमाल आंकड़ों में वृद्धि और पोस्टरों में उन्नति कर सकता है। पांचवें साल में लाभार्थी बढ़ जाते हैं। नए क्षेत्र पनप जाते हैं या सरकार के पैमाने बदल जाते हैं।
वीरभद्र सिंह इसी तरह चुनावी वर्ष की पूर्व रिहर्सल में बहुत कुछ बांटते रहे हैं, लेकिन कई फैसले आज तक अमल में नहीं आए। मसलन धर्मशाला को दूसरी राजधानी की घोषणा करना तो उनके लिए आसान रहा होगा, लेकिन हाई कोर्ट की बैंच की स्थापना पर सारी ड्रिल मौन रही। यहां भी पालमपुर अस्पताल का उदाहरण सामने है, जहां शिशुरोग विशेषज्ञ तब पहुंचता है, जब जनता गुस्से में आती है। यह स्थिति हर छोटे-बड़े अस्पताल की हो सकती है, लेकिन हम गिन सकते हैं कि राजनीतिक मुआयने में कितने नए सीएचसी, पीएचसी, सिविल अस्पताल बन गए या अस्पतालों की बिस्तर क्षमता में इजाफा हो गया। जनता भी अपनी श्रेणियों में विभक्त है। वह महिला होकर आधे किराए पर पूरा सफर करना चाहती है। वह सरकारी कर्मचारी बन कर हर सत्ता को धूल चटाना चाहती है। वह कभी सामान्य वर्ग बन कर आयोग की मांग कर सकती है, तो हर तरह के आरक्षण की पक्षधर बन कर निरंतर आगे बढ़ना चाहती है। जनता खुश होती है जब परिवहन मंत्री नए डिपो खोलते हैं, जब मुख्यमंत्री नए दफ्तर खोलते हैं या ऐसी फरमाइश पूरी कर देते हैं, जो औचित्यहीन ही क्यों न हो। चुनावी वर्ष पर डंके की चोट करने के लिए फिर कुछ यूनिट बिजली मुफ्त ही क्यों न दी जाए, यही तो उपलब्धि है जो हमें 'लो वोल्टेज', पावर कट या अनियमित आपूर्ति के खिलाफ आवाज उठाने से रोक देती है।

सोर्स- divyahimachal

Rani Sahu

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