सम्पादकीय

चुनाव परिणाम और यूपी-पंजाब में किसान आंदोलन: क्या भाजपा के लिए बेअसर रहा सबकुछ?

Gulabi
11 March 2022 9:17 AM GMT
चुनाव परिणाम और यूपी-पंजाब में किसान आंदोलन: क्या भाजपा के लिए बेअसर रहा सबकुछ?
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नतीजों ने साफ कर दिया कि पांच राज्यों के चुनावों से पहले कृषि कानूनों की वापसी का फैसला पीएम नरेंद्र मोदी का मास्टर स्ट्रोक था
हरि वर्मा।
नतीजों ने साफ कर दिया कि पांच राज्यों के चुनावों से पहले कृषि कानूनों की वापसी का फैसला पीएम नरेंद्र मोदी का मास्टर स्ट्रोक था । राजनीतिक पंडितों का आकलन था कि किसान आंदोलन से चुनाव नतीजे प्रभावित होंगे और पंजाब के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में भाजपा को बड़ा नुकसान होगा, पर ऐसा नहीं हुआ।
दरअसल, जिस पंजाब से किसानों का आंदोलन दिल्ली तक पहुंचकर देशभर में पसर गया और इसने पूर्ण बहुमत वाली मजबूत मोदी सरकार को घुटनों पर ला दिया, उसी पंजाब में भाजपा को इस चुनाव में खासा नुकसान नहीं हुआ। माना तो यह जा रहा था कि इस बार भाजपा का खाता भी नहीं खुल पाएगा लेकिन 2 सीटों पर बढ़त बनी हुई है।
पिछली बार भाजपा को 3 सीटें थीं। किसान हित की दुहाई देकर एनडीए का साथ छोड़ने वाले अकाली दल को फायदा के बजाय नुकसान ही झेलना पड़ा। 15 सीटों वाला अकाली दल और सिकुड़ गया। किसान आंदोलन को पंजाब से दिल्ली तक पहुंचाकर मौन समर्थन व धार देने वाले कैप्टन अमरिंदर खुद चुनाव हार गए। पंजाब के सीएम चरणजीत चन्नी ने कदम-कदम पर किसान आंदोलन में आंदोलनकारियों का साथ दिया, लेकिन वह खुद दोनों सीट से चुनाव हार गए।
इधर, किसान आंदोलन के असर वाले मालवा से अकाली दिग्गज प्रकाश सिंह बादल और सुखवीर सिंह बादल आदि को भी मुंह की खानी पड़ी। पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू भी हार गए। किसान आंदोलन की उपज किसान समता समाज पार्टी इस बार पंजाब के चुनाव मैदान में थी। इसने सौ से अधिक सीटों पर उम्मीदवारी दी लेकिन खाता तक नहीं खुल सका। इसके अगुवा बलवीर राजेवाल खुद चुनाव हार गए।
पश्चिमी यूपी में डबल-डबल युवराज (जंयत-अखिलेश) की मौजूदगी और राकेश टिकैत के अघोषित समर्थन से भाजपा को बड़े सियासी नुकसान का अंदेशा जताया गया।
किसान आंदोलन के नजरिए से पंजाब जैसी स्थिति कमोबेश यूपी की भी रही। दिल्ली में जब किसान आंदोलन खत्म होने की स्थिति में पहुंच गया, तो राकेश टिकैत के आंसू ने फिर से धार दी। यूपी में लखीमपुरखीरी हिंसा में किसानों के रौंदने की घटना ने आग में घी का काम किया। कयास लगने लगे कि भाजपा की राह में इस बार पश्चिमी यूपी से लेकर लखीमपुरखीरी तक कांटे बिछ जाएंगे।
पश्चिमी यूपी में डबल-डबल युवराज (जंयत-अखिलेश) की मौजूदगी और राकेश टिकैत के अघोषित समर्थन से भाजपा को बड़े सियासी नुकसान का अंदेशा जताया गया। पश्चिमी यूपी में भाजपा को खास नुकसान नहीं है। किसानों के समर्थन में अनाज की लाल पोटली वाला सपा प्रमुख अखिलेश का संकल्प भी सिद्धि तक नहीं पहुंच सका। और तो और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के लखीमपुर जिले की ज्यादातर सीटों पर भाजपा की बढ़त है। मतदान के दौरान ही अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्र की जमानत भाजपा के खिलाफ नाराजगी नहीं बन पाई। जिस धौरहरा इलाके में किसानों को मंत्री पुत्र की जीप से कुचलने की घटना हुई, उस सीट पर भी भाजपा की बढ़त है।
केंद्र और राज्य सरकार को भविष्य के लिए किसानों के मुद्दे पर पैठ बनाने का अवसर भी हाथ लग गया है।
किसान आंदोलन के बूते खासतौर से यूपी और पंजाब में भाजपा को रोकने की विपक्ष की रणनीति भी नाकाम रही। किसानों के खाते में सम्मान निधि जैसी मोदी सरकार की योजनाओं ने किसानों के एक बड़े वर्ग को मोदी-योगी के पक्ष में रखा, वहीं कृषि कानूनों की वापसी के बाद भी सरकार के विरोध में संयुक्त मोर्चा के नेताओं के सुर ने आम किसानों में संदेश दिया कि समूचा आंदोलन ही राजनीति से प्रेरित था।
यही कारण है कि किसान आंदोलन के कांटे यूपी में कमल को खिलने से नहीं रोक पाए। ऐसे में 2024 के लिए फिर एक बार यूपी होकर दिल्ली का मार्ग प्रशस्त होता नजर आ रहा है। नतीजे के बाद प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को यूपी का बताकर न केवल 2024 की ओर इशारा किया बल्कि उन्होंने इस नतीजे को ज्ञानियों के लिए 2024 के नतीजे से जोड़ा।
हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले गुजरात और राजस्थान के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। पंजाब में तीसरी शक्ति के तौर पर आम आदमी पार्टी के उदय से भाजपा को बैठे-बिठाए एक और कांग्रेस मुक्त राज्य का तोहफा मिल गया, क्योंकि पंजाब में संगठन, उम्मीदवारी और सत्ता की दावेदारी के लिहाज से भाजपा हाशिये पर थी। उसकी मित्रता (अकाली दल) भी टूट चुकी थी। उसे कोई नफा नहीं हुआ तो उस अनुपात में नुकसान भी नहीं जो वहां वर्षों से राज कर रही कांग्रेस और अकाली दल को हुआ। ऐसे में विपक्ष के लिए आगे जहां किसान आंदोलन पर आगे वोट की फसल लहलहाने की आस क्षीण हुई है, वहीं केंद्र और राज्य सरकार को भविष्य के लिए किसानों के मुद्दे पर पैठ बनाने का अवसर भी हाथ लग गया है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदाई नहीं है।
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