सम्पादकीय

Election Result : चुनावी नतीजों ने बाता दिया कि देश में 'हर-हर मोदी और घर-घर मोदी' का नारा अभी लंबा चलेगा

Gulabi
11 March 2022 5:45 AM GMT
Election Result : चुनावी नतीजों ने बाता दिया कि देश में हर-हर मोदी और घर-घर मोदी का नारा अभी लंबा चलेगा
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ख़ुद प्रधानमंत्री ने प्रदेश के लिए 22 रैलियां कीं, रोड शो निकाले. तब बीजेपी गठबंधन 273 (बीजेपी 255) सीटें जीत कर रुकी
शंभूनाथ शुक्ल.
कुछ भी ऐसा नहीं हुआ, जिसका अंदाज़ा हर किसी को नहीं रहा हो. न बीजेपी (BJP) की जीत न कांग्रेस (Congress) की हार न एसपी (Samajwadi Party) की सीटों में उछाल और न ही आप का राष्ट्रीय स्तर पर उदय. जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, उनमें से उत्तर प्रदेश की हार-जीत को 2024 के लोकसभा चुनाव से जोड़ा जा रहा था. इसीलिए यूपी में क़िले पर अपना क़ब्ज़ा बनाए रखने के लिए बीजेपी ने पूरी ताक़त लगा दी थी.
ख़ुद प्रधानमंत्री ने प्रदेश के लिए 22 रैलियां कीं, रोड शो निकाले. तब बीजेपी गठबंधन 273 (बीजेपी 255) सीटें जीत कर रुकी. किंतु यह कैसे भुलाया जाए कि एसपी ने सिर्फ़ अखिलेश यादव के बूते अपनी सीटें लगभग तीन गुनी कर लीं. उसकी यह ताक़त विधानसभा में तो दिखेगी ही, विधान परिषद में भी वह सत्तारूढ़ बीजेपी को आंखें दिखाएगी.
आप ने रचा इतिहास
पंजाब में आप की बढ़त थी, लेकिन इतनी बढ़त कि उसने कांग्रेस को 20 तक का आंकड़ा न छूने दिया, यह ज़रूर आशातीत है. जिन भगवंत मान की एक ही छवि लोगों के दिमाग़ में थी कि वे स्टैंडअप कॉमेडियन हैं और परले दर्जे के शराबी, उन भगवंत ने अपना मान रख ही नहीं लिया, लोगों को भी मनवा दिया कि उन्हें हल्के में न लिया जाए. साथ ही नवजोत सिंह सिद्धू ज़रूर कॉमेडियन साबित हुए और उन्हीं के साथ राहुल गांधी भी. अब देखना यह है, कि आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल भगवंत मान को पंजाब में राज करने के लिए कितनी स्वतंत्रता देते हैं.
उत्तराखंड ने चौंकाया
उत्तराखंड के बारे में तो हर कोई कांग्रेस की सरकार अवश्यम्भावी मान कर चल रहा था. मगर यहां बीजेपी ने अपनी सरकार न सिर्फ़ रिपीट की बल्कि पिछली बार की बजाय इस बार अधिक सीटें जीतीं. बस गड़बड़ यह हुई कि जिन पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बना कर यह चुनाव लड़ा गया, वे स्वयं खटीमा से चुनाव हार गए. और वही नहीं बल्कि कांग्रेस के क़द्दावर नेता तथा पूर्व केंद्रीय मुख्यमंत्री तथा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी लाल कुआं से चुनाव हार गए. धामी के पूर्व रहे बीजेपी के दो मुख्यमंत्रियों- त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत ने प्रदेश का जो हाल किया था, उसमें बीजेपी की जीत असंभव लग रही थी. किंतु चार महीने में ही धामी ने अपनी प्रशासनिक कुशलता से उत्तराखंड में बीजेपी की लाज रख ली. इसी तरह गोवा और मणिपुर में भी बीजेपी ने अपनी सरकार बचा ली.
यूपी में लगातार दूसरी बार बीजेपी सरकार
उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत इसलिए भी महत्त्वपूर्ण थी क्योंकि वहां बीजेपी की सरकार ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की. और एक तरह से पिछले 37 साल बाद कांग्रेस के अलावा किसी और पार्टी की सरकार लगातार दूसरी बार बनेगी. अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ही बनते हैं तो उत्तर प्रदेश के इतिहास में ऐसा दूसरी बार होगा. इनके पहले चन्द्रभानु गुप्त 1962 में लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन यहां यह कहना ग़लत न होगा कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी हाई कमान को अकेले योद्धा अखिलेश से निपटने में पसीने छूटे थे. अगर इस प्रदेश के चुनाव में प्रधानमंत्री स्वयं न कूदते तो अखिलेश यादव को सवा सौ तक समेट देना आसान नहीं था.
लाभार्थियों का बढ़ता कुनबा
उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत का एक कारण वे लाभार्थी भी रहे, जिन्हें कोरोना काल में फ़्री राशन मिला. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान मिले. किसान सम्मान निधि का पैसा मिला और महिलाओं के खाते में सीधे रक़म गई. बीजेपी विरोधी इस बात को नहीं समझ पाए. लेकिन यह एक अंडर करेंट की तरह सुदूर गावों, शहरों तक फैला था. यह वह वर्ग था, जो गरीब था और अधिकतर दलित व वंचित तबके से था. इसमें हिंदू-मुसलमान दोनों थे. बीजेपी अपने इस वोटर की मानसिकता समझ रही थी और इसीलिए उसने अपने प्रत्याशी इसी तबके से उतारे. उसने ब्राह्मण, राजपूत, बनिया और कायस्थ जैसे सवर्ण मतदाताओं को अपना स्वाभाविक सपोर्टर समझा और उसने मान लिया कि इनके पास बीजेपी के अलावा कोई विकल्प नहीं है. क्योंकि कांग्रेस पिछले 33 साल से लगातार ढह रही है और बीएसपी सुप्रीमो ने ख़ुद ही हथियार डाल दिए थे. इसका लाभ बीजेपी को खूब मिला.
एक अकेला योद्धा
मगर इसका मतलब यह नहीं कि एसपी गठबंधन को इसका लाभ नहीं मिला! उसे भी बीएसपी के निशस्त्र हो जाने का पर्याप्त लाभ मिला. इसी वजह से प्रदेश की लगभग 60 सीटें ऐसी हैं, जहां हारी एसपी और जीती बीजेपी में अंतर मात्र 1000 या 1500 वोटों का था. ज़ाहिर है प्रदेश में लड़ाई कांटे की थी और मैदान में सिर्फ़ दो ही योद्धा थे. एक के साथ स्टार प्रचारकों की भीड़ तथा दूसरा शत्रुओं के बीच अकेला! मगर इस अकेले योद्धा ने पूरी उत्तर प्रदेश सरकार को पानी पिला दिया. लेकिन एक अहम बात अखिलेश के समर्थक नहीं समझ पाए, वह था क्राइम ग्राफ़ के घटने के प्रचार को काउंटर कर पाना. इसके बाद अखिलेश यादव के अपने ही लोगों ने वह आचरण दिखाना शुरू कर दिया, जो उनके लिए काल बन गया. अगर दूसरे चरण के बाद थोड़ी सतर्कता बरती जाती, तो शायद एसपी 2017 के मुक़ाबले चार गुना सीटें तो लाती ही. यह भूल भले छोटी हो लेकिन समाजवादी पार्टी को बहुत भारी पड़ गई. जबकि इस बार अखिलेश ने यादव और मुसलमान दोनों कम संख्या में उतारे थे.
लड़ाई अब विपक्ष और विकल्प की
अब लड़ाई 2024 की होगी. कांग्रेस सिमट चुकी है तो विकल्प क्षेत्रीय दलों से उभरेगा. पिछले वर्ष अप्रैल में जब ममता बनर्जी भारी बहुमत से पश्चिम बंगाल में जीती थीं और कांग्रेस का सूपड़ा जैसा साफ़ हुआ था, उससे यह लगा था कि क्या ममता राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प बनेंगी? क्योंकि पश्चिम बंगाल में लोक सभा की 42 सीटें हैं. इसीलिए वे बिहार में लालू और उनके पुत्र तेजस्वी तथा उत्तर प्रदेश में अखिलेश से संपर्क में थीं. वे वाराणसी में एसपी के प्रचार में भी आई थीं. किंतु उनका शो बहुत फीका रहा. तेलंगाना से टीआरएस के मुखिया चंद्रशेखर राव अपने लिए भी प्रयासरत हैं. मगर अब अरविंद केजरीवाल भी इस लाइन में कूदेंगे. उनके पास दिल्ली तो है ही अब पंजाब भी आ गया. ऐसे मौक़े में महाराष्ट्र के ऊद्धव ठाकरे क्यों पीछे रहना चाहेंगे. क्योंकि उनका प्रदेश 48 लोकसभा सदस्य संसद में भेजता है. और महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई तो मायानगरी है. धन की कमी इस राज्य में नहीं.
हर-हर मोदी, घर-घर मोदी
विपक्ष की इस लड़ाई का लाभ नरेंद्र मोदी को मिलेगा. ज़ाहिर की गई कि बिना मोदी योगी कुछ नहीं. डबल इंजिन में भी पहला इंजिन वे ख़ुद हैं. योगी अभी उनके जैसी ऊंचाई पर नहीं पहुंच सके. अर्थात् बीजेपी के अंदर भी मोदी के नेतृत्त्व को चुनौती देने वाला अब कोई नहीं है. इस तरह यह भी अब विवाद का विषय नहीं रहा कि अभी बीजेपी के अंदर भी कोई मोदी का विकल्प है. यह संदेश दूर तक जाएगा. मोदी का विकल्प न पार्टी में और न पार्टी के बाहर. हर-हर मोदी और घर-घर मोदी का नारा अभी और चलेगा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं.)
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