- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- महंगाई, बेकारी का...
x
By: divyahimachal
चुनावी मौसम छाने लगा है, तो महंगाई और बेरोजगारी दरों की गर्मागर्म चर्चा छिड़ी है। कुछ सर्वे सामने आए हैं, जिनमें औसतन 25 फीसदी लोगों ने महंगाई और बेरोजगारी पर चिंता और सरोकार जताए हैं। ये आम चुनाव 2024 के प्रमुख मुद्दे बनेंगे अथवा नहीं, उसके मद्देनजर कुछ इंतजार करना पड़ेगा। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना आदि राज्यों के जनादेश क्या होंगे, उनसे भी बहुत कुछ स्पष्ट होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने रसोई गैस सिलेंडर 200 रुपए सस्ता किया है। देश के निम्न-मध्य वर्ग के लिए 903 रुपए का सिलेंडर भी महंगा है। सिलेंडर उपभोक्ताओं की कुल संख्या 31.4 करोड़ है, जिसमें 10.35 करोड़ ‘उज्ज्वला योजना’ के लाभार्थी हैं। उन्हें गैस सिलेंडर 700 रुपए का मिलेगा। बुनियादी सवाल महंगाई का है, जिसकी जुलाई में खुदरा दर 7.44 फीसदी थी। यह बीते 15 माह के रिकॉर्ड स्तर पर थी। जुलाई में ही उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति की दर 11.5 फीसदी थी। मुद्रास्फीति की उच्चतम दर मोदी सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक ने तय कर रखी थी कि वह 6 फीसदी से नीचे ही रहनी चाहिए। सरकार उसमें लगभग सफल रही थी, लेकिन अब हदें लांघ दी गई हैं, तो सरकार भी चिंतित लग रही है। महंगाई का असर चौतरफा होता है। चूंकि अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है, तो बेरोजगारी दर 7.9 फीसदी भी चुभती है। यह दर अमरीका, ब्रिटेन, चीन, जापान और जर्मनी आदि बड़े देशों की बेकारी दर से अधिक है। अब मोदी सरकार सरकारी कर्मचारियों का महंगाई भत्ता बढ़ाने और पेट्रोल-डीजल को कुछ सस्ता करने पर विचार कर रही है।
केंद्र सरकार आधा दर्जन बार उत्पाद शुल्क बढ़ा कर 27 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा देशवासियों से वसूल चुकी है। तेल-गैस कंपनियों ने भी करीब 35,000 करोड़ रुपए का मुनाफा कूट लिया है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत अब 86 डॉलर प्रति बैरल है। रूस से अपेक्षाकृत सस्ता तेल आयात किया जा रहा है, लेकिन आम उपभोक्ता को महंगा पेट्रोल-डीजल खरीदना पड़ रहा है। वह राज्यों की अर्थव्यवस्था का भी बुनियादी स्रोत है, लिहाजा राजस्थान, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना सरीखे राज्यों में सर्वाधिक महंगाई है। फिर भी राज्य सरकारें ‘रेवड़ी’ बांटने में जुटी हैं, क्योंकि वोट चाहिए। चूंकि पांच राज्यों के बाद लोकसभा चुनाव होने हैं, लिहाजा मोदी सरकार भी नहीं चाहेगी कि महंगाई इतना बड़ा मुद्दा बने, जो चुनावों को प्रभावित कर सके। नतीजतन महंगाई पर मंथन जारी है। देशवासियों को और भी राहतें दी जा सकती हैं। बेशक अब टमाटर बाजार में सस्ता हो गया है, लेकिन वह करीब 1400 फीसदी तक महंगा हुआ था। जमाखोरों पर सरकार का कोई अंकुश नहीं है। सब्जियां अब भी औसतन 37 फीसदी महंगी हैं। यदि बेरोजगारी की दर की बात करें, तो बीते 14 माह में, रोजगार मेलों के जरिए, करीब 5.5 लाख नियुक्ति-पत्र ही बांटे गए हैं। 2014-22 के दौरान 22.05 करोड़ लोगों ने नौकरी के लिए आवेदन किया, लेकिन 7.22 लाख को ही नौकरी नसीब हो सकी।
प्रति वर्ष औसतन 90,000 नागरिकों को ही केंद्र में नौकरी मिल सकी। राज्यों में रोजगार की स्थिति क्या है, उस पर कोई नियमित डाटा उपलब्ध नहीं है। भारत सरकार भी पूरा और नियमित डाटा नहीं देती है, लिहाजा मांग उठने लगी है कि मोदी सरकार नौकरियों को लेकर ‘श्वेत-पत्र’ जारी करे। उसमें सरकारी, निजी और कॉरपोरेट क्षेत्रों को शामिल किया जाए कि किसने, कितनी नौकरियां और किन विभागों में मुहैया कराई हैं। दरअसल वोट हासिल करने को महिलाओं पर राजनीति और रणनीति केंद्रित है। भाजपा और विपक्ष दोनों की निगाहें करीब 46 करोड़ महिला मतदाताओं पर हैं, लिहाजा ऐसी घोषणाएं की जा रही हैं, जो महिलाओं को सीधे ही या उनके परिवार को प्रभावित कर रही हैं। आगामी 10 सालों में 7 करोड़ लोगों को नौकरियां देनी होंगी। यह डाटा कई एजेंसियों का है, लेकिन सरकारें 3 करोड़ से कम ही नौकरियां दे पाएंगी। बेशक इनमें महिलाएं भी शामिल हैं। हम मानते हैं कि सरकार देश के प्रत्येक पात्र व्यक्ति को सरकारी नौकरी नहीं दे सकती, लेकिन निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों का तंत्र भी ऐसे तैयार कराया जाए, ताकि पर्याप्त नौकरियां पैदा की जा सकें। नौकरियों में कटौती के मानदंड भी सरकार तय कराए।
Next Story