सम्पादकीय

आयकर छापों का चुनाव!

Rani Sahu
23 Dec 2021 7:16 PM GMT
आयकर छापों का चुनाव!
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उप्र में समाजवादी पार्टी के नेताओं पर आयकर छापे 1000 करोड़ रुपए तक पहुंच सकते हैं

उप्र में समाजवादी पार्टी के नेताओं पर आयकर छापे 1000 करोड़ रुपए तक पहुंच सकते हैं। हालांकि केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने पूरा खुलासा नहीं किया है, लेकिन 800 करोड़ रुपए की कर-चोरी का शुरुआती अनुमान है। आयकर विभाग की खुफिया लीड 200 करोड़ रुपए की कर-चोरी की थी, लेकिन पांच दिन के छापों में बहुत बड़ा भ्रष्टाचार बेनकाब हो रहा है। वित्त मंत्रालय का बयान है कि सपा के एक नेता ने 68 करोड़ की कर-चोरी कबूल भी कर ली है और वह जुर्माने सहित टैक्स अदा करने को तैयार भी हैं। उस नेता ने आयकर अधिकारियों के जरिए भारत सरकार से माफी भी मांगी है। एक कंस्ट्रक्शन कंपनी के निदेशक की 86 करोड़ रुपए की अघोषित आय भी पकड़ी गई है। एक फर्जी कंपनी में 12 करोड़ रुपए का निवेश और फर्जी शेयर भी बरामद किए गए हैं। कंस्ट्रक्शन कंपनी के फर्जी दस्तावेज, खाली बिल बुक, स्टांप, हस्ताक्षर की गई चेक बुक आदि हस्तगत कर लिए गए हैं और करोड़ों के फर्जी खर्च की जानकारियां भी हासिल हुई हैं। इनके अलावा, कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, डायरियां और दस्तावेज भी बरामद किए गए हैं। डायरी में नोट हैं कि कब, किसे और कैसे 'घूस' दी गई? शक के घेरे में पुलिस और प्रशासन के बड़े अधिकारी भी हैं।

अभी सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आदि के खिलाफ बेहिसाब संपत्ति के केस सीबीआई में जारी हैं। धन्य है, विश्वनाथ चतुर्वेदी का नैतिक हौसला और धैर्य, कि वह अकेले ही यह लंबा और खतरनाक 'धर्मयुद्ध' लड़ रहे हैं और केस को बंद नहीं होने दिया है। मुलायम सिंह अपने आप में एक राजनीतिक खौफ रहे हैं। अब उनकी पार्टी की दूसरी पीढ़ी भी भ्रष्ट साबित होने के कगार पर है। मुलायम के अंतरंग साथी रहे आज़म खां लोकसभा सांसद हैं, लेकिन जेल में बंद हैं। बड़े-बड़े वकील भी उनकी जमानत नहीं करा सके हैं। विचाराधीन मामलों में वह भू-माफिया के तौर पर उभरे हैं। उप्र की पिछली अखिलेश सरकार में मंत्री रहे गायत्री प्रजापति भी जघन्य बलात्कार एवं अन्य मामलों में जेल की सलाखों के पीछे हैं। मौजूदा आयकर छापे उन सपा नेताओं के घर, कार्यालय और बिजनेस के अन्य ठिकानों पर पड़े हैं, जोे पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ओएसडी या बेहद करीबी थे।
हम ऐसे आरोपों को खंडित नहीं कर सकते कि विभिन्न एजेंसियों के छापों के पीछे राजनीतिक दख़ल नहीं होता। पूरा लोकतंत्र राजनीति पर आधारित है। राजनीतिक दख़ल ही देश की सरकार चलाता है। वे निरपेक्ष, तटस्थ और बिल्कुल न्यायकारी नहीं माने जा सकते। यदि आज आयकर छापा मारा गया है, तो उसकी प्रक्रिया 5-6 माह पूर्व ही शुरू हो जाती है। राजनीतिक दख़ल या पूर्वाग्रह के आधार पर ही छापे नहीं मारे जा सकते, क्योंकि अंततः अदालत के सामने जवाबदेही होती है। छापों से पहले ही प्रमाण जुटाए जाते हैं, खुफिया सूचनाएं इकट्ठा की जाती हैं, आयकर अदा करने के पुराने विवरणों के विश्लेषण किए जाते हैं। यदि विभाग ऐसी कार्रवाई पूर्वाग्रह के मद्देनजर करता है, तो अधिकारियों की नौकरी तक जा सकती है। उन्हें जेल भी हो सकती है। यदि सपा नेता अखिलेश यादव के पास ठोस सबूत हैं कि ये छापे चुनावों के मद्देनजर खुन्नस निकालने के लिए डाले गए हैं, तो उन्हें अदालत में चुनौती जरूर देनी चाहिए। चुनाव और आयकर, ईडी, सीबीआई आदि के छापे परस्पर पूरक नहीं हैं। चुनाव तो आजकल साल भर किसी न किसी राज्य में होते ही रहते हैं। एजेंसियां हाथ पर हाथ धर कर नहीं बैठ सकतीं। फिर तो अपराध अराजकता बन जाएगा और देश में कर-व्यवस्था ही खंडित हो जाएगी। पहले ही देश की थोड़ी-सी आबादी ही आयकर का भुगतान करती है। बहरहाल अब सवाल यह है कि उप्र के विधानसभा चुनाव में आयकर छापे क्या प्रमुख मुद्दे बनेंगे? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य के बयानों से तो ऐसा ही स्पष्ट होता है। बेशक उप्र में सपा ही सत्तारूढ़ भाजपा को प्रखर चुनौती देती लग रही है। उसने छोटे और पिछड़े दलों का गठबंधन तैयार कर वोटों को बिखरने से बचाने की कोशिश की है, लेकिन जया बच्चन सरीखी बौद्धिक सांसद यह दलील देना बंद करें कि समाजवादी तो गरीब होते हैं।

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