सम्पादकीय

मुद्दों से भटकते चुनाव

Subhi
7 Jan 2022 2:18 AM GMT
मुद्दों से भटकते चुनाव
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पंजाब विधानसभा चुनावों के लिए सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बुधवार को पंजाब मिशन पर थे। उनसे उम्मीद की जा रही थी कि करोड़ों की लागत वाली परियोजनाओं के शिलान्यास के साथ-साथ वे कर्ज में फंसे पंजाब के लिए कोई राहत पैकेज की घोषणा कर सकते हैं।

पंजाब विधानसभा चुनावों के लिए सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बुधवार को पंजाब मिशन पर थे। उनसे उम्मीद की जा रही थी कि करोड़ों की लागत वाली परियोजनाओं के शिलान्यास के साथ-साथ वे कर्ज में फंसे पंजाब के लिए कोई राहत पैकेज की घोषणा कर सकते हैं। लेकिन हुसैनीवाला के निकट जिस ढंग से प्रदर्शनकारियों ने फ्लाईओवर पर प्रधानमंत्री का काफिला रोका, वह प्रधानमंत्री की सुरक्षा में बड़ी चूक है। तब प्रधानमंत्री फिरोजपुर रैली रद्द कर दिल्ली लौट आए।गृहमंत्रालय ने पंजाब सरकार को प्रधानमंत्री के कार्यक्रम और यात्रा की योजना के बारे में पहले ही बता दिया था लेकिन इसके बावजूद प्रधानमंत्री का काफिला रोकने में प्रदर्शनकारी सफल हो गए। गृह मंत्रालय ने पंजाब के चीफ सैक्रेटरी और डीजीपी से इस संबंध में रिपोर्ट तलब की है। यह घटना सुरक्षा में चूक तो है ही साथ ही राजनीति के दिन-प्रतिदिन गिरते स्तर का संकेत देती है। विचारों की लड़ाई विचारों से होनी चाहिए, सकारात्मक बहस से होनी चाहिए लेकिन प्रधानमंत्री को रोकना लोकतंत्र में कैसे सहन किया जा सकता है। अगर अब तक की चुनावी गतिविधियों पर नजर डालें तो पूरा का पूरा चुनाव एक तरह से भटक चुका है। मुद्दों की बात कम और एक-दूसरे पर व्य​क्तिगत हमले ज्यादा किए जा रहे हैं। पंजाब के सभी राजनीतिक दल मुद्दों की बात से ज्यादा एक-दूसरे पर छींटाकशी और व्यंग्य करने लगे हैं। कभी काले अंग्रेज कहकर किसी नेता पर​ टिप्पणी की जाती है तो कभी किसी नेता को मेंटल करार दिया जाता है। निजी हमले इस कदर बढ़ गए हैं कि एक नेता को तो शराबी करार दिया जाता है। और कहा जा रहा है कि उक्त नेता ने शराब छोड़ने के लिए माता जी की सौगंध खाई थी लेकिन कुछ दिनों बाद शराब पीकर उन्होंने माता जी की सौगंध को झूठा साबित कर ​दिया। लगभग सभी दलों के नेता पर्सनल अटैक करने पर उतर आए हैं। ओछी राजनीति पर उतर आए हैं। जुबानी जंग के बीच पंजाब के असली मुद्दे गायब हैं। पंजाब के जो मुद्दे गायब हो चुके हैं-संपादकीय :राष्ट्र गौरव की सुरक्षा से खिलवाड़कोरोना काल में राजनीतिक रैलियांतीसरी लहर का वारआदर्श समाज सेविका आशा शर्मा का प्रेरणादायी सहस्त्र चंद दर्शन उत्सवमाँ बेटी का अपमानचीन की कुटिलता* पंजाब में बेरोजगारी की हालत कब सुधरेगी?* पंजाब में उद्योग का पलायन रोकना होगा।* पंजाब से हर साल युवाओं का विदेशों का रुख रोकना होगा।* पंजाब में नशा सबसे बड़ा मुद्दा है। हेरोइन और अन्य मादक पदार्थ पाकिस्तान से पंजाब के सीमांत क्षे​त्रों में धकेले जा रहे हैं।* पंजाब पर बढ़ता कर्जा रोकना होगा।* पंजाब पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का खतरा मंडरा रहा है और ड्रोन के जरिये ​हथियार और टिफिन बम भेजे जा रहे हैं।* पंजाब में कैंसर तेजी से फैल रहा है और कैंसर का इलाज करने वाले अस्पताल कम हैं।* जलस्तर गिरता जा रहा है और धान की खेती में पानी की लागत अधिक है।* बेअदबी के मुद्दे पर निजी हिसाब-किताब बराबर किये जाने के आरोप लग रहे हैं।पंजाब में कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी के रूप में एक दलित चेहरा दिया है और उसके बाद से ही राज्य में मुख्य लड़ाई 31 फीसदी दलित वोटों को लुभाने की है। चरणजीत सिंह चन्नी एक के बाद एक चुनावी घोषणाएं करके जनता के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं। उधर शिरोमणि अकाली दल ने बसपा के साथ गठबंधन करके राज्य में दलित मुख्यमंत्री देने की घोषणा कर रखी है। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल भी ऐलान कर चुके हैं कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो दलित बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जाएगी। भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को नई पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन किया है। भले ही यह गठबंधन जीत की स्थिति में न हो लेकिन वह दूसरी पार्टियों के समीकरण प्रभावित कर सकती हैं। पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू खुद को भावी सीएम के रूप में प्रोजैक्ट करते रहना चाहते हैं। जबकि चन्नी खुद को असरदार सीएम सिद्ध करने की को​शिश में लगे हैं। जहां तक वोट प्रतिशत की बात है कांग्रेस और अकाली दल गठबंधन के वोटों में करीब 8 प्रतिशत का अंतर रहा था जबकि आपका वोट शेयर 23.80 प्रतिशत रहा। ऐसे में सत्ता के लिए वोट के समीकरण क्या बनते हैं कुछ कहा नहीं जा सकता। अकाली दल की समस्या यह है ​कि शहरों में हिन्दू वोटों के समर्थन के ​बिना उसका सत्ता पाना मुश्किल है। पंजाब कांग्रेस अंतर्कलह के चलते काफी कमजोर हो चुकी है। पंजाब में 31 फीसदी से ज्यादा दलित वोट हैं और जाट सिखों का प्रतिशत 21 फीसदी है। यह समीकरण मजबूत तो ​दिखता है लेकिन क्या दलित और जाट सिख एक साथ किसी पार्टी को समर्थन देंगे। इसकी सम्भावना कम ही दिखती है। देखना होगा चुनावों का ऊंट किस करवट बैठता है।

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