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- चुनाव की आहट और...

चुनाव आते ही विभिन्न तरह की राजनीतिक सरगर्मियां शुरू हो जाती हैं। ये चुनाव फिर चाहे पंचायत स्तर के हों अथवा विधानसभा या लोकसभा के। जो पार्टियां चुनाव से पूर्व सोई रहती हैं, चुनावों के दौरान अचानक ही लंबी नींद की खुमारी के बाद जाग उठती हैं। जागकर तरह-तरह से अनाप-शनाप बोलना, अपने विरोधियों को कोसने और गालियां तक देने लग जाती हैं। जब चुनाव नहीं हो रहा होता है तो पता भी नहीं चलता कि ये पार्टियां अथवा पार्टियों के राजनीतिक लोग जो अपने को नेता कहते हैं, कहीं नजर नहीं आते हैं। गोया उन्हें आम लोगों, अपने क्षेत्र, प्रदेश अथवा देश से कोई सरोकार ही न हो! अक्सर यह देखा गया है कि चुनावों की घोषणा होते ही ये लोग न जाने किस गुफा, कंदरा से बाहर निकल आते हैं और आम लोगों को बहकाने तथा धर्म-जाति, सामाजिक स्थिति-हैसियत पर लोगों को बांटने में लग जाते हैं। आम लोगों की समस्याओं को सुलझाने-सुधारने की बात प्रायः नहीं करेंगे। एक-दूसरे के व्यक्तिगत गुण-दोषों को मुद्दा बनाकर चुनावी वैतरणी पार करने की बेताबी में, असंभव को भी संभव बनाने के दावे करने शुरू कर देते हैं। आम जनता उनकी इन जाति-धर्म, वंश-परिवार, वर्ण-हैसियत के झांसे में आकर अपने वोट की ताकत-कीमत को बिसरा, अयोग्य और निकम्मे प्रत्याशियों को जिताने का जरिया बन जाते हैं।
