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- उपेक्षा का दंश झेलते...
कुंदन कुमार: भारतीय परिवार की संरचना में क्रमिक बदलाव, संयुक्त से एकल परिवारों में परिवर्तन ने परिवार में बुजुर्गों के कद और अधिकार को कमजोर कर दिया है। परिवार की निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल न होने के कारण बुजुर्गों ने खुद को कई मौकों पर उपेक्षित महसूस किया है। यूएनएफपीए के सर्वेक्षण में लगभग दस फीसद बुजुर्गों ने माना कि उन्हें किसी न किसी रूप में दुर्व्यवहार या अनादर का सामना करना पड़ा है।
सम्मान और गरिमा के साथ जीने का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार है। किसी के सम्मान को ठेस पहुंचाना या किसी के साथ भेदभाव या दुर्व्यवहार करना उस व्यक्ति के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। आजकल वरिष्ठ नागरिकों के साथ दुर्व्यवहार का मामला समाचार पत्रों में छपता रहता है। दरअसल, वरिष्ठ नागरिकों के साथ भेदभाव या दुर्व्यवहार उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि बुजुर्गों के मौलिक अधिकारों का रक्षक कौन है?
पश्चिमी देशों की सामाजिक संरचना को देखें तो मजबूत सामाजिक सहायता तंत्र विकसित होने के बावजूद बड़ी संख्या में वरिष्ठ नागरिक परिवार के सदस्यों, देखभाल करने वाले लोगों और पड़ोसियों के दुर्व्यवहार और उपेक्षा का शिकार हैं, जो सभ्य समाज के माथे पर चिंता की लकीरें उकेर रही है। बुजुर्गों से संबंधित अध्ययन में यह भी उभर कर सामने आया है कि उनसे दुर्व्यवहार और उनके साथ उपेक्षित व्यवहार का मामला उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है।
दुनिया भर के तमाम अध्ययनों की समीक्षा यही बताती है कि विकसित और विकासशील दोनों तरह के देशों में बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार और भेदभाव होता है। विश्व भर में बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार के विस्तार के साथ दुर्व्यवहार की प्रकृति में व्यापक भिन्नता देखने को मिलती है। कुछ अध्ययनों में उपेक्षा या मौखिक दुर्व्यवहार सबसे आम दुर्व्यवहार के रूप में देखा गया है, वहीं कुछ अध्ययनों में यह माना है गया है कि शारीरिक दुर्व्यवहार बुजुर्गों के साथ होने वाले दुर्व्यवहारों में सबसे आम है।
समान्य रूप से महिला बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार या उपेक्षा का खतरा अधिक बना रहता है। अधिकांश रिपोर्टों में इस बात की भी पुष्टि हुई है कि अस्सी वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों में, जो अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए आर्थिक रूप से देखभाल करने वालों पर निर्भर हैं, वे दुर्व्यवहार के अधिक शिकार होते हैं। अन्य आयु वर्गों के बुजुर्गों के अपेक्षा इनका शोषण अधिक होता है।
भारतीय समाज में बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार और उपेक्षा को गंभीर मुद्दा नहीं माना जाता था। परिवार के हर छोटे-बड़े फैसलों में इनके विचार का सम्मान हुआ करता था। पर, बदलती आर्थिक और सामाजिक वास्तविकताओं के साथ रहने की व्यवस्था और परिवार की सरंचना के भीतर परिवर्तन ने वरिष्ठ नागरिकों की जीवन शैली को गहरे प्रभावित किया है।
संयुक्त परिवार के विघटन के साथ युवा पीढ़ियों के रोजगार के अवसरों की खोज में प्रवासन के फलस्वरूप परिवार के बुजुर्ग घरों में अकेले छोड़ दिए जाते हैं, जहां तन्हाई के अलावा उनके पास कोई नहीं होता है। बुजुर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों की सीमित सफलता ने समस्या को और जटिल बना दिया है। हालांकि, पिछले एक दशक से इस विषय पर लोग खुलकर बात करने लगे हैं। बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार को अब मुख्य समस्या के रूप में समाज में चिह्नित किया जा रहा है।
हेल्प एज इंडिया 2021 के एक रिपोर्ट से पता चला है कि तेईस भारतीय शहरों में इकसठ फीसद से अधिक बुजुर्ग दुर्व्यवहार और उपेक्षा का शिकार हैं। रिपोर्ट के मुताबिक कोविड महामारी के दौर में इलाज के लिए बुजुर्गों को दर-बदर की ठोकर खाने को मजबूर होना पड़ा। सर्वे में शामिल चालीस फीसद से अधिक बुजुर्गों ने स्वीकार किया कि कोविड के दौरान उन्हें चिकित्सीय देखभाल और दवा का प्रबंधन खुद ही करना पड़ा।
परिवार के सदस्यों ने इस दरम्यान उनके नजदीक जाना भी उचित नहीं समझा। इतना ही नहीं, 36.8 फीसद बुजुर्गों का कहना था कि कोविड महामारी के चलते उनका भविष्य अंधकारमय हो चुका है। 48.7 फीसद बुजुर्ग इस सर्वे में ऐसे भी थे, जिनका कहना था कि कोविड के दौरान उनके अपने बच्चे उनके साथ मानवीय व्यवहार नहीं करते थे। इस रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा हुआ कि बुजुर्गों के साथ उनके अपने मारपीट जैसी संगीन अपराध को अंजाम देते हैं। पच्चीस फीसद बुजुर्गों ने इसे स्वीकारा किया।
समान्यतया महिलाएं जब बुजुर्ग अवस्था में पहुंचती हैं तो उनकी स्थिति पुरुषों की तुलना में अधिक गंभीर हो जाती है। सास-बहू के बीच लड़ाई आज घर-घर की कहानी बन चुकी है। इसके अलावा, विधवा होने पर बुजुर्ग महिलाएं हिंसा की और अधिक शिकार होती हैं। आर्थिक निर्भरता और रहने की व्यवस्था भारत में बुजुर्गों के दुर्व्यवहार और उपेक्षा के प्रमुख कारक के रूप में उभरा है।
हेल्प एज इंडिया ने भारत के दस शहरों के बीच अध्ययन कराया, जिसमें तिहत्तर फीसद युवाओं ने यह स्वीकार किया कि वे बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार और उपेक्षा के बारे में जानते हैं। मगर उनमें से अधिकांश कार्रवाई या हस्तक्षेप करने के लिए तैयार नहीं थे। इसके अलावा, पैंतीस फीसद युवाओं ने कहा कि उन्होंने अपने परिवार या अपने घरों में ऐसी घटनाओं को देखा है।
हेल्प एज इंडिया 2018 के सर्वेक्षण में पाया गया कि अपमान करने वालों में बेटे और बहू के रूप में परिवार के करीबी सदस्य शामिल थे। साठ फीसद से अधिक बुजुर्गों ने यह माना कि पहले व्यस्क बच्चों और नाती-पोतों के साथ बिताया जाने वाला गुणवत्ता समय फोन और कंप्यूटर के अत्यधिक उपयोग के साथ कम हो गया है।
सांस्कृतिक मानदंड और अंतरपीढ़ीय सहायता प्रणाली बुजुर्गों के रहने की व्यवस्था का निर्धारण करती है। भारतीय परिवार की संरचना में क्रमिक बदलाव संयुक्त से एकल परिवारों में परिवर्तन ने परिवार में बुजुर्गों के कद और अधिकार को कमजोर कर दिया है। परिवार की निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल न होने के कारण बुजुर्गों ने खुद को कई मौकों पर उपेक्षित महसूस किया है। यूएनएफपीए के सर्वेक्षण में लगभग दस फीसद बुजुर्गों ने माना कि उन्हें किसी न किसी रूप में दुर्व्यवहार या अनादर का सामना करना पड़ा। पैंतीस फीसद बुजुर्गों का कहना था कि उन्होंने कई प्रकार के दुर्व्यवहारों का सामना किया।
बुजुर्गों के प्रति दुर्व्यवहार और उपेक्षा उनके शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ उनके जीवन पर भी समान्य रूप से प्रतिकूल प्रभाव डालती है। अध्ययनों से पता चला है कि जिन बुजुर्गों ने किसी भी तरीके के अपमान या दुर्व्यवहार का सामना किया, उन्हें अवसाद ने घेर लिया। एक सर्वे में पता चला है कि साठ से उनसठ साल के आयु समूह में लगभग नौ फीसद बुजुर्गों को दुर्व्यवहार और अपमान का घूंट पीना पड़ा, जबकि अस्सी वर्ष और उससे अधिक समूह में चौदह फीसद बुजुर्गों ने उपेक्षा सहा।
अध्ययन में एक रोचक तथ्य उभर कर आया है कि विवाहित बुजुर्ग जोड़ों की तुलना में पति या पत्नी खो चुके बुजुर्गों को दुर्व्यवहार और उपेक्षा का सामना अधिक करना पड़ा। सर्वेक्षण में यह भी पता चला है कि अकेले रहने वाले बुजुर्ग और ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित बुजुर्ग दुर्व्यवहार और उपेक्षा के अधिक शिकार हुए। अध्ययन इस बात की गवाही देते हैं कि शिक्षित बुजुर्गों को अपेक्षाकृत अपमान या उपेक्षा का घूंट कम पीना पड़ता है। माध्यमिक या उससे अधिक शिक्षा प्राप्त बुजुर्गों में निरक्षर बुजुर्गों की तुलना में दुर्व्यवहार की संभावना पचास फीसद कम है। बेहतर जीवन जीने की लालसा में अपनी स्थानीय बस्तियों से बाहर निकलने और एकल परिवार के बढ़ते चलन के चलते बुजुर्गों का एक बड़ा अनुपात अकेले रहने को विवश है।
हमारी संस्कृति बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार या उनके अपमान की वकालत कभी नहीं करती। हमारे बुजुर्ग महज मुफ्त की रोटी तोड़ने वाले नहीं, बल्कि हमारी धरोहर हैं। बुजुर्गों के लिए प्यार, देखभाल और सम्मान के मानवीय मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करके और उनके प्रयासों और अनुभवों को महत्त्व देते हुए हम उनके लिए उम्मीद भरी और विचारशील दुनिया का निर्माण कर सकते हैं।