सम्पादकीय

Einstein birth anniversary: थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी में उलझा हमारा कॉमन सेंस

Rani Sahu
14 March 2022 11:30 AM GMT
Einstein birth anniversary: थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी में उलझा हमारा कॉमन सेंस
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थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी में उलझा हमारा कॉमन सेंस

प्रदीप

आज महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्मदिन (Albert Einstein Birth Anniversary) है. आइंस्टीन का नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है. आइंस्टीन को न केवल बीसवीं सदी का बल्कि मानव जाति के संपूर्ण इतिहास का सबसे बड़ा वैज्ञानिक माना जाता है. उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों ने आधुनिक विज्ञान, विशेषकर सैद्धांतिक भौतिकी (थ्योरिटिकल फिजिक्स) की दशा और दिशा बदलकर रख दी. आइंस्टीन की ये खोजें ब्रह्मांड के बारे में अब तक की सबसे मौलिक और चौंकानेवाली खोजें थीं. जिसने न केवल नई वैज्ञानिक चेतना को जन्म दिया बल्कि सृष्टि संबंधी धार्मिक-दार्शनिक मान्यताओं में भी हलचल पैदा कर दी थी.
आइंस्टीन द्वारा विज्ञान जगत को सापेक्षता सिद्धांत (थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी) दिए हुए 115 साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है. अब यह सिद्धांत आधुनिक भौतिकी का आधार स्तंभ बन चुका है. बिना इस सिद्धांत के आधुनिक भौतिकी उतनी ही अधूरी है, जितनी कि बिना अणु-परमाणुओं की अवधारणाओं के. लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी से वैज्ञानिकों को छोड़कर आम लोग काफी कम परिचित हैं. इसकी गिनती विज्ञान के जटिल और दुरूह सिद्धांतों में की जाती है. और यह बात भी पूरी तरह से सही है. आम लोग, जो वैज्ञानिक नहीं हैं, इस क्लिष्ट (complicated) सिद्धांत के कँटीले गणितीय समीकरणों के चक्रव्यूह में उलझ कर रह जाते हैं. यहाँ तक कि कई वैज्ञानिक भी गणित की भूल-भुलैया में पड़कर रिलेटिविटी के वास्तविक सौंदर्य और स्वरूप का रसास्वादन नहीं कर पाते!
कहा जाता है कि शुरुआती दिनों में थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी को समझना आम लोगों को तो छोड़िए कई दिग्गज वैज्ञानिको के लिए भी काफी चुनौतीपूर्ण काम था. रिलेटिविटी की दुरूहता के बारे में एक किस्सा मशहूर है. आइंस्टीन के सिद्धांत को मानने-समझने वाले शुरुआती भौतिक विज्ञानियों में प्रोफेसर आर्थर स्टेनली एंडिग्टन का नाम बेहद खास है. नवंबर 1919 में एक खगोलशास्त्री ने तो यहां तक कह दिया था कि "प्रोफेसर एंडिग्टन आप विश्व के उन तीन महान लोगों में से एक हैं जो रिलेटिविटी को वास्तव में समझते हैं." यह बात सुनकर एंडिग्टन के चेहरे पर कुछ चिंता के भाव उभर आए. तब उस खगोलशास्त्री ने कहा: "प्रोफेसर एंडिग्टन, इसमें संकोच या हैरानी की कोई बात नहीं है." इस पर एंडिग्टन का जवाब था: "नहीं, मैं संकोच में बिलकुल भी नहीं हूँ; मैं तो सिर्फ यही सोच रहा हूँ कि रिलेटिविटी को समझने वाला वह तीसरा शख्स कौन हो सकता है?"
'कॉमन सेंस' का विद्रोह
प्रोफेसर एंडिग्टन की उपरोक्त टिप्पणी से आपने थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी की क्लिष्टता तथा उत्कृष्टता का अनुमान लगा ही लिया होगा. रिलेटिविटी को समझने में दो बड़ी कठिनाईयां हैं. पहली, इसके लिए आधुनिक भौतिकी और गणित के उच्च स्तरीय ज्ञान का होना आवश्यक है. दूसरी, रिलेटिविटी मानव के विश्व से संबंधित उस ज्ञान को निरर्थक साबित कर खण्डित कर देती है, जिसे हम आम बोलचाल की भाषा में 'कॉमन सेंस' कहते हैं. यह कुछ-कुछ उसी प्रकार से है, जैसे कोई पंद्रहवीं सदी में जाकर यह कहता कि पृथ्वी गोल है और पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा कर रही है, तो यकीनन उस समय के लोगों को यह बात गले नहीं उतरती क्योंकि उनके ज्ञान (कॉमन सेंस) के मुताबिक पृथ्वी चपटी और स्थिर थी. पृथ्वी के गोल होने की बात उन्हें बेतुकी लगती थी. वे कहते थे कि अगर पृथ्वी गोल है, तो क्या दूसरी तरफ के लोग सिर के बल चलते हैं? ठीक इसी प्रकार थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी हमारे स्पेस, टाइम, द्रव्यमान और गति से संबंधित सामान्य ज्ञान (कॉमन सेंस) का खंडन करता है.
रिलेटिविटी की अवधारणाओं से ऐसे-ऐसे चौंकाने वाले निष्कर्ष निकलते हैं जो हमें पहेली-जैसी लगती हैं. रिलेटिविटी की एक अवधारणा 'टाइम डाईलेशन' का ही उदाहरण लीजिए: मान लीजिए कि आप एक अंतरिक्ष-यात्री हैं और आप धरती की घड़ियों के मुताबिक 50 साल की अंतरिक्ष यात्रा पर जा रहें हैं और इतनी तेज़ गति से यात्रा करें कि अंतरिक्ष यान की घड़ियों के मुताबिक सिर्फ एक ही महीना लगे तो धरती पर लौटने के बाद आप धरती पर मौजूद लोगों से एक महीना ही ज्यादा बड़े लगेंगे, लेकिन धरती के लोग आप से 50 साल ज्यादा बड़े हो जाएंगे. अगर आप अंतरिक्ष-यात्रा पर जाते समय 30 साल के हों और आप 1 साल का एक बच्चा छोड़कर जाएँ तो आपके धरती पर लौटने के बाद वह बच्चा आपसे 20 साल बड़ा होगा! आपको ये बातें बेतुकी लग सकती हैं, लेकिन पिछले 117 वर्षों में विज्ञान की दुनिया में हुए कई सारे अवलोकनों-प्रयोगों के जरिए रिलेटिवटी को कड़ी परीक्षाओं से गुजारा गया, मगर उसमें अब तक उसमें कोई भी दोष नहीं मिला है!
26 साल के क्लर्क का कमाल!
बर्न के पेटेंट ऑफिस में एक क्लर्क की हैसियत से काम कर रहे 26 वर्षीय अल्बर्ट आइंस्टीन ने भौतिकी की स्थापित मान्यताओं को चुनौती देते हुए स्पेस-टाइम और पदार्थ की नई धारणाओं के साथ चार शोध पत्र प्रकाशित किए जिन्होंने सैद्धांतिक भौतिकी को झकझोर कर उसका कायाकल्प ही कर दिया. पहला शोध पत्र फोटो-इलेक्ट्रिक इफेक्ट की व्याख्या प्रस्तुत करता था, जिसने क्वांटम थ्योरी को आधार प्रदान किया. दूसरे शोध पत्र ने ब्राउनियन मोशन की व्याख्या की तथा परमाणु और अणु की वास्तविकता को सुनिश्चित किया. तीसरा शोध पत्र थ्योरी ऑफ स्पेशल रिलेटिविटी से संबंधित था. इसमें आइंस्टीन ने यह बताया कि समय, स्थान और द्रव्यमान तीनों ही गति के मुताबिक निर्धारित होते हैं. चौथे शोध पत्र में उन्होंने द्रव्य और ऊर्जा के बीच के संबंध को स्थापित करते हुए मशहूर E=mc² फॉर्मूला दिया था.
रिलेटिविटी की 'स्पेशल' थ्योरी
थ्योरी ऑफ स्पेशल रिलेटिविटी दो उपधारणाओं (Postulates) पर आधारित है- 1. एक-दूसरे से सापेक्ष सीधी और समरूप गति से चलने वाली सभी प्रयोगशालाओं में पिंड की गति भौतिकी के समान नियमों का पालन करती है. इसे गति की सापेक्षता भी कहते हैं. 2. प्रकाश का वेग हमेशा स्थिर रहता है और स्रोत अथवा प्रेक्षक की गति का उस पर कोई प्रभाव नही पड़ता.
समय की सापेक्षता और टाइम डाईलेशन
आइंस्टीन ने थ्योरी ऑफ स्पेशल रिलेटिविटी के जरिए निरपेक्ष समय की अवधारणा को गलत साबित कर दिया. हमारे कॉमन-सेन्स के मुताबिक समय निरपेक्ष है क्योंकि यदि हम 'अब' कहते हैं तो पूरी दुनिया के लिए 'अब' ही है, तो फिर समय सापेक्ष कैसे हुआ? आइंस्टीन का तर्क था कि प्रत्येक प्रेक्षक का अपना 'अब' होता है और समक्षणिकता (perceptibility) केवल स्थानीय निर्देश-प्रणाली (local instruction system) में ही हो सकती है. समय व्यक्तिगत है, जिस समय कोई 'अब' कहता है वह समग्र ब्रह्माण्ड के लिए लागू नहीं हो सकता है. इसलिए रिलेटिविटी की स्पेशल थ्योरी के जरिए हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि, 'अब' समय की सत्ता समग्र ब्रह्माण्ड में कहीं भी स्थित और गतिशील व्यक्ति के लिए एक जैसा या यूनिवर्सल नही है.
टाइम डाईलेशन की अवधारणा के मुताबिक यदि एक ही तरह की दो घडि़यां हों और किसी प्रेक्षक के सापेक्ष एक घड़ी स्थिर हो और दूसरी घड़ी एकसमान-वेग से गतिशील हो तो गतिशील घड़ी, स्थिर घड़ी की तुलना में धीरे चलेगी! गौरतलब है कि इस अवधारणा का सत्यापन अनेक प्रयोगों के जरिए किया जा चुका है.
लंबाई का संकुचन
जैसा कि हमने जाना कि गतिशील घड़ी स्थिर घड़ी की अपेक्षा धीरे चलती है. गति जितनी ज्यादा होगी मापक-दंड उतना ही अधिक संकुचित होगा और घड़ी उतनी ही धीरे चलेगी. इसका मतलब यह है कि किसी यंत्र (जैसे- अंतरिक्षयान) की गति जितनी ज्यादा बढ़ती है, किसी स्थिर प्रेक्षक को उसका आकार गति की दिशा में उतना ही संकुचित (सिकुड़ता) होता नज़र आता है.
वस्तु का वेग बढ़ने के साथ उसका द्रव्यमान (भार) बढ़ जाता है!
रिलेटिविटी से पहले वैज्ञानिक ऐसा मानते थे कि किसी भी वस्तु का द्रव्यमान उसका विशिष्ट गुणधर्म है, जो हमेशा स्थिर रहता है और वस्तु की गति से पूरी तरह से अप्रभावित रहता है. आइंस्टीन ने इस पुरानी मान्यता को ध्वस्त कर दिया और कहा कि जितनी ही तेज रफ्तार से कोई वस्तु चलेगी उतना ही अधिक उसका द्रव्यमान बढ़ता चला जाएगा और यदि वस्तु की गति प्रकाश के वेग के बराबर हो जाए तो उसका द्रव्यमान अनंत हो जाएगा. इस प्रभाव का अनुभव हम अपने दैनिक जीवन में नहीं करते क्योंकि यह प्रभाव केवल प्रकाश के वेग के आसपास किसी वेग पर गतिमान वस्तुओं के लिए ही महत्वपूर्ण है.
द्रव्यमान ऊर्जा है, और ऊर्जा द्रव्यमान है
आइंस्टीन की थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी के गणितीय समीकरण आम लोगों के लिए कुछ भारी पड़ते हैं. लेकिन एक ऐसा भी समीकरण है, जिसको अमूमन सभी जानते हैं: E=mc ²
इस समीकरण के मुतबिक द्रव्यमान ऊर्जा का ही एक रूप है (और ऊर्जा द्रव्यमान है). द्रव्यमान m ऊर्जा की एक मात्रा E के बराबर है. इसका उल्टा भी उतना ही सही है. आसान भाषा में कहें तो ब्रह्मांड की प्रत्येक वस्तु में ऊर्जा छिपी है जिसको वस्तु के द्रव्यमान को c ² से गुणा करके निकाला जा सकता है. C का अर्थ है निर्वात में प्रकाश की रफ्तार. यह समीकरण तारों और सूर्य (तारा) को शक्ति प्रदान करने वाली संलयन अभिक्रिया और परमाणु बमों की विस्फोटक क्षमता की व्याख्या करता है.
आइंस्टीन के इस समीकरण के बारे में एक गलतफहमी मशहूर है कि उनके इस समीकरण ने परमाणु बम के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. कुछ लोगों की निगाह में आइंस्टीन अभी भी परमाणु बम के निर्माता हैं. मगर हकीकत यही है कि परमाणु बम के निर्माण में आइंस्टीन का योगदान बेहद सीमित था.
रिलेटिविटी की 'जनरल' थ्योरी
थ्योरी ऑफ स्पेशल रिलेटिविटी एक-दूसरे के सापेक्ष सरल रेखाओं में तथा एक समान वेगों से गतिशील प्रेक्षकों/वस्तुओं के लिए ही लागू होती है, परन्तु यहाँ पर यह सवाल भी उठ सकता है कि यदि किसी वस्तु की गति जब अ-समान, तीव्र अथवा धीमी होने लगे या फिर सर्पिल अथवा वक्रिल मार्ग में घूमने लगे, तो क्या होगा? यह सवाल आइंस्टीन के मस्तिष्क में विशेष सापेक्षता सिद्धांत के प्रकाशन के दो वर्ष बाद कौधनें लगा. आइंस्टीन के जिज्ञासु स्वभाव ने अपने सिद्धांत का और विस्तार कर ऐसे त्वरणयुक्त-फ्रेमों में विकसित करने के लिए प्रेरित किया, जिन्हें एक-दूसरें के सापेक्ष त्वरित किया जा सकता हो.
आइंस्टीन ने थ्योरी ऑफ स्पेशल रिलेटिविटी के पूर्व मान्यताओं को कायम रखते हुए तथा त्वरित गति को समाहित करते हुए थ्योरी ऑफ जनरल रिलेटिविटी को 25 नवंबर, 1915 को 'जर्मन ईयर बुक ऑफ़ फ़िजिक्स' में प्रकाशित करवाया. इस नई थ्योरी में आइंस्टीन ने गुरुत्वाकर्षण के नए सिद्धांत को समाहित किया था. इस थ्योरी ने आइजक न्यूटन के अचर समय और अचर ब्रह्माण्ड की संकल्पनाओं को ध्वस्त कर दिया.
कुछ वैज्ञानिकों के मुताबिक यह थ्योरी 'सर्वोत्कृष्ट सर्वकालिक महानतम बौद्धिक उपलब्धि' (Greatest intellectual achievement of all time) है. इस थ्योरी का प्रभाव, ब्रह्माण्डीय स्तर पर बहुत व्यापक है. इस थ्योरी ने एक ही झटके में ब्रह्मांड की पूरी हलचल और भौतिक पिण्डों की सभी आपसी गतिविधियों की विस्तृत व्याख्या कर दी. जनरल रिलेटिविटी 'इक्विलेन्स प्रिंसिपल' पर आधारित है, जिसके मुताबिक त्वरण और गुरुत्वाकर्षण मूलतः एक ही प्रभाव उत्पन्न करतें हैं और इनके बीच अंतर स्पष्ट करना नामुमकिन है.
जनरल रिलेटिविटी ने एक नई धारणा को जन्म दिया, जिसके मुताबिक : 'अगर प्रकाश की एक किरण अत्यंत प्रबल गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र (extremely strong gravitational field) से गुज़रेगी, तो वह मुड़ जाएगी.' 29 मई, 1919 को ब्रिटेन के खगोल विज्ञानियों ने प्रोफेसर आर्थर स्टेनली एंडिग्टन की अगुआई में पूर्ण सूर्यग्रहण के अवसर पर किए गए अवलोकनों से आइंस्टीन के इस पूर्वानुमान की पुष्टि की. जब आइंस्टीन को यह पता चला कि उनके इस पूर्वानुमान की पुष्टि प्रायोगिक तौर पर हो चुकी हैं, तो उन्होनें अपने मित्र मैक्स प्लांक को एक चिट्ठी में लिखा: ''इस दिन तक मुझें जीवित रख कर के भाग्य ने मुझ पर विशेष कृपा की है…''.
आइंस्टीन की जनरल रिलेटिविटी को न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के बाद दुनिया का सबसे बड़ा आविष्कार माना जाता है. इसके बाद आइंस्टीन दुनिया के सबसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक बन गए और बच्चा-बच्चा उनसे परिचित हो गया. आज भी जब कोई बच्चा भौतिकी अथवा गणित में ज्यादा रूचि दिखाता हैं, तो हम उसे स्नेहपूर्वक 'हेल्लो यंग आइंस्टीन!' कहकर प्रोत्साहित करते हैं. बहरहाल, आइंस्टीन के सिद्धांत 117 वर्षों से विभिन्न वैज्ञानिक कसौटियों पर खरे उतरते आए हैं और आज भी मानव मस्तिष्क का महानतम बौद्धिक सृजन (Greatest intellectual creation of the human mind) बना हुआ है. अस्तु!
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