सम्पादकीय

मोदी सरकार के आठ साल : पड़ोस ही नहीं अमेरिका और यूरोप में भी भारत की धमक

Rani Sahu
25 May 2022 11:22 AM GMT
मोदी सरकार के आठ साल : पड़ोस ही नहीं अमेरिका और यूरोप में भी भारत की धमक
x
साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) केंद्र की सत्ता पर काबिज हुए तो देश के तमाम बुद्धिजीवियों का सबसे बड़ा सवाल था

संयम श्रीवास्तव |

साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) केंद्र की सत्ता पर काबिज हुए तो देश के तमाम बुद्धिजीवियों का सबसे बड़ा सवाल था कि एक ऐसा व्यक्ति जिस पर अमेरिका (America) ने बैन लगा रखा है, वह भारत की विदेश नीति (Indian Foreign Policy) को कैसे और किस दिशा में आगे बढ़ाएगा? हालांकि वक्त गुजरा और नरेंद्र मोदी जो अक्सर कुछ ऐसा कर जाते हैं जिसकी उम्मीद किसी को नहीं होती, विदेश नीति को भी लेकर भी उन्होंने ऐसा ही कुछ किया. वही अमेरिका जिसने उन पर बैन लगाया था, न सिर्फ उन्हें अपने यहां आमंत्रित करता है, बल्कि मोदी मैजिक वहां के चुनावों में भी चलता है. नरेंद्र मोदी के विदेश नीति का ही कमाल है कि आज दुनिया में भारत के बिना किसी संगठन का भविष्य निश्चित नहीं रह गया है.
पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी मुल्क जो कल तक भारत को आंख दिखाते थे आज वो वैश्विक कूटनीति से अलग-थलग कर पड़ते जा रहे हैं. रूस यूक्रेन जैसे युद्ध में यूक्रेन भारत से मध्यस्थता की मांग करता है, अमेरिका जैसे सुपर पावर देश चाहते हैं कि भारत इन दोनों देशों के बीच शांति की पहल करे. यह मोदी की विदेश नीतियों की ही सफलता है कि आज दुनिया के किसी भी देश में रहने वाला भारतीय अपना सिर ऊंचा करके चलता है. मोदी आज सिर्फ हिंदुस्तान के ही नहीं बल्कि दुनिया के टॉप लीडरों में गिने जाते हैं. इसलिए यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि भारत की विदेश नीति बीते कई दशकों में इतनी बेहतर नहीं थी, जितनी इन 8 वर्षों में हुई है.
विदेश नीति, जिसका मुरीद कट्टर दुश्मन पाकिस्तान भी है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति कितनी बेहतर रही, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इसकी तारीफ पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने बतौर प्रधानमंत्री रहते हुए किया. उन्होंने पब्लिकली कहा कि वह भारत की विदेश नीति की तारीफ करते हैं क्योंकि भारत की विदेश नीति स्वतंत्र रूप से काम करती है. हालांकि भारतीय विदेश नीति की तारीफ करने पर उनकी पाकिस्तान में खूब आलोचना भी हुई, यहां तक कि उनकी सरकार भी गिर गई. भारतीय विदेश नीति वाकई में अब स्वतंत्र रूप से काम करती है, वह किसी के दबाव में अपने फैसले नहीं लेती. इसीलिए चाहे कोरोना महामारी का समय रहा हो या फिर रूस यूक्रेन युद्ध का भारत ने हमेशा वही निर्णय लिए जो उसके फायदे में हों.
अमेरिका ने इन दोनों मौकों पर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की लेकिन वह दोनों ही बार ऐसा करने में असफल रहा. भारत ने किसी के दबाव में अपनी विदेश नीति को प्रभावित नहीं होने दिया. यहां तक की भारत ने जब रूस से s-400 मिसाइल खरीदने की बात की तो अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगाने की धमकी भी दी, लेकिन इसके बावजूद भी भारत ने अमेरिका की परवाह किए बगैर रूस से s-400 मिसाइल खरीदीं, जिसने दुनिया को कड़ा संदेश दिया कि भारत अब किसी के सामने नहीं झुकेगा.
दुनिया में भारतीयों का मान बढ़ा
2014 से पहले आपने नोटिस किया होगा कि जब भी भारत का कोई बड़ा नेता या प्रधानमंत्री विदेश दौरे पर होते थे तो इसकी चर्चा बहुत कम होती थी, यहां तक कि जिस देश में हमारे देश के प्रधानमंत्री जाते, वहां रहने वालों को पता भी नहीं चलता कि उनके देश का प्रधानमंत्री वहां आया है. नरेंद्र मोदी ने इस ट्रेंड को बिल्कुल बदल दिया, अब मोदी कहीं भी जाते हैं तो उसकी चर्चा न सिर्फ भारतीय मीडिया में होती है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी उसे बेहतर ढंग से कवर करता है. यहां तक की मोदी जिस देश में जाते हैं वहां वह भारतीय कम्युनिटी से जरूर मिलते हैं और भारतीय भी उनसे पूरे उत्साह से मुलाकात करते हैं. अभी हमने हाल ही में जर्मनी में प्रधानमंत्री मोदी को वहां रह रहे भारतीय समुदाय से मिलते हुए देखा था,जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में हुई. प्रधानमंत्री मोदी के साथ एक खास बात और है वह यह है कि पीएम मोदी जिस भी देश में जाते हैं उस देश के मुखिया के साथ पूरी गर्मजोशी के साथ मुलाकात करते हैं. यही वजह है कि विदेश नीति को किनारे रख दिया जाए तो भी पीएम मोदी के कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों से अच्छी दोस्ती है.
रूस यूक्रेन युद्ध में हर देश भारत से अच्छे संबंध चाहता है
रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान जब पूरी दुनिया दो धड़ों में बंट गई, एक धड़ा अमेरिका और यूरोपीय देशों का था, जो यूक्रेन के साथ खड़ा था. तो दूसरा धड़ा रूस का था जिसके साथ चीन पाकिस्तान और दुनिया के तमाम देश थे. हालांकि इन सबके बीच भारत तटस्थ भूमिका में था और वह दोनों देशों से अपील कर रहा था कि वह इस मसले को बातचीत से हल करें. कई बार रूस और अमेरिका ने भी कोशिश की कि भारत किसी एक धड़े की तरफ आए, लेकिन भारत ने अपनी गुटनिरपेक्ष नीति को अपनाते हुए किसी भी धड़े की ओर ना जाने की अपनी पुरानी नीति अपनाई. इतने मतभेदों के बावजूद भी आज चाहे रूस हो, यूक्रेन हो, अमेरिका हो या फिर चीन हो सभी भारत से बेहतर संबंध चाहते हैं. दरअसल सबको पता है कि अगर एशिया में आगे बढ़ना है तो भारत को साथ लेकर चलना होगा. क्योंकि इस वक्त भारत ही एक ऐसा देश है जो एशिया में चीन से टक्कर ले सकता है.
दुनिया के कई गरीब देशों को मुफ्त में टीका दिया
जब पूरी दुनिया कोरोना के कहर से परेशान थी, उस वक्त भारत वैक्सीन बनाने पर काम कर रहा था और जल्द ही हिंदुस्तान ने वैक्सीन बना भी ली. लेकिन समस्या इस बात की थी कि दुनिया के कई ऐसे गरीब देश थे जो इस वैक्सीन को नहीं खरीद सकते थे. इसलिए भारत ने अपना बड़ा दिल दिखाया और वैक्सीन डिप्लोमेसी कार्यक्रम चलाया, जिसके तहत भारत ने दुनिया भर के लगभग 69 गरीब देशों को लगभग 583 लाख कोरोना वैक्सीन की डोज मुफ्त में दी. इन देशों में म्यांमार, नेपाल,भूटान, मालदीव, बांग्लादेश, श्रीलंका, बहरीन, साउथ अफ्रीका, ओमान, इजिप्ट, कुवैत, अफगानिस्तान जैसे देश शामिल हैं. जिसमें से सबसे ज्यादा वैक्सीन बांग्लादेश को, 90 लाख डोज दी गई. भारत के इस कदम की तारीफ पूरी दुनिया में हुई अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक सफलता बताया. न्यूयॉर्क टाइम्स ने तो यहां तक लिखा कि भारत एक बेमिसाल वैक्सीन निर्माता देश है और उसकी वैक्सीन डिप्लोमेसी चीन को काउंटर करने की एक कामयाब कोशिश है.
मुस्लिम वर्ल्ड, यूरोप, अमेरिका, अफ्रीका सब मोदी के मुरीद
दुनिया भर के मुस्लिम देश जो कल तक पाकिस्तान के साथ खड़े दिखाई देते थे, आज वह भारत की करीबी हैं. सऊदी अरब हो, ईरान हो, बहरीन हो, ओमान हो या फिर अन्य मुस्लिम देश वह अब भारत से नजदीकी चाहते हैं. यहां तक कि साल 2019 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चल रहा था, तब भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने यूएई के आबूधाबी में 57 मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी की बैठक को संबोधित किया था. इस बैठक में भारत को बतौर गेस्ट ऑफ ऑनर के तौर पर बुलाया गया था, जो एक बड़ी बात थी. पाकिस्तान ने उस वक्त एड़ी चोटी का बल लगा लिया कि ओआईसी देश भारत को इसमें शामिल ना करें, लेकिन उसकी एक ना चली. यहां तक कि अफगानिस्तान भी जहां इस वक्त तालिबान का शासन है, वह भी भारत से बेहतर रिश्ते चाहता है. इसी तरह यूरोप और अमेरिका समेत तमाम अफ्रीकी देश भी मोदी के मुरीद हैं. फ्रांस,जर्मनी, ब्रिटेन जैसे देशों के राष्ट्राध्यक्ष पीएम मोदी से गर्मजोशी से मुलाकात करते हैं. अमेरिका में चाहे बराक ओबामा का शासन रहा हो, डोनाल्ड ट्रंप का रहा हो या फिर इस वक्त जो बाइडेन का भारत के प्रधानमंत्री मोदी का सबके साथ रिश्ता अच्छा रहा है. यही वजह है कि जब चीन से भारत की ठनती है तो दुनिया के यह तमाम बड़े देश भारत के पाले में खड़े दिखाई देते हैं.
पाकिस्तान पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ गया
पाकिस्तान जिसके पीछे हमेशा अमेरिका और दुनिया के तमाम मुस्लिम देश खड़े रहते थे, आज वह पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ गया है. यह प्रधानमंत्री मोदी के विदेश नीति का ही नतीजा है कि उन्होंने पाकिस्तान को पूरी दुनिया में एक्सपोज कर दिया कि कैसे वह आतंक की फैक्ट्री बना बैठा है. आज पाकिस्तान के पीछे पूरी दुनिया में सिर्फ एक देश चीन खड़ा मिलेगा, वह भी उसे अंदर ही अंदर खोखला कर रहा है. जो पाकिस्तान छोटी-छोटी बातों पर भारत को घेरने के लिए खड़ा रहता था, उस पाकिस्तान की बातों में आज कोई नहीं आ रहा है. भारत ने जब कश्मीर से धारा 370 हटाया तो पाकिस्तान ने पूरी दुनिया में घूम घूम कर छाती पीटी, लेकिन किसी ने उसका साथ नहीं दिया यहां तक की तमाम मुस्लिम देशों ने भी इस मुद्दे को भारत का आंतरिक मामला बताया और पाकिस्तान के साथ खड़े नहीं दिखाई दिए. दुबई ने तो 2.5 अरब डॉलर कश्मीर में निवेश करने की भी बात की. 370 हटाने के बाद ही जम्मू कश्मीर सरकार ने अल्माया समूह, एमएटीयू इन्वेस्टमेंट एलएलसी, जीएल एंप्लॉयमेंट ब्रोकरेज एलएलसी, सेंचुरी फाइनेंशियल और नूर ई-कॉमर्स के साथ अलग-अलग पांच एमओयू पर भी हस्ताक्षर किए हैं.

सोर्स- tv9hindi.com


Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story