सम्पादकीय

Eight Years Of Modi Government: मोदी सरकार की कामयाबी और भरोसे के आठ साल

Neha Dani
26 May 2022 1:42 AM GMT
Eight Years Of Modi Government: मोदी सरकार की कामयाबी और भरोसे के आठ साल
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आसमान की ऊंचाइयों को छूने के साथ जमीनी धरातल पर उसे तब्दील करना ही मोदी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती भी है और सबसे बड़ा सपना भी।

वर्ष 2014 में 26 मई के दिन नरेंद्र मोदी ने जब राष्ट्रपति भवन के परिसर में पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, तब वह भारतीय राजनीति का एक अनूठा मोड़ था। भाजपा पहली बार अपने दम पर सरकार बनाकर एक गैर-कांग्रेसी राजनीतिक व्यवस्था स्थापित कर रही थी। नरेंद्र मोदी को देश की सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाने में उनके गुजरात विकास मॉडल की प्रमुख भूमिका रही। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने उद्योग और कृषि, दोनों के लिए सुचारू व्यवस्था की थी।

लोकतंत्र में राजनीतिक परिवर्तन खासा महत्व रखता है, क्योंकि जनता यह आस लगाती है कि नई सत्ता उसकी आवाज सुनेगी और उसकी मांग मानी जाएगी। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में ही 'न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन' का नारा दिया। भ्रष्टाचार के खिलाफ शून्य सहिष्णुता, पुराने कानूनों का खात्मा और लोकोन्मुखी नीतियों की बदौलत उन्होंने जनता का ऐसा भरोसा हासिल किया कि नोटबंदी जैसे कठोर फैसले का भी आम लोगों ने कोई खास विरोध नहीं किया, जबकि नोटबंदी के चलते आम लोगों को कुछ दिनों तक भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। कुछ खास वर्गों ने इसका विरोध जरूर किया था, पर आम जनता इस बात से खुश थी कि प्रधानमंत्री ने गरीब और अमीर को एक कतार में लाकर खड़ा कर दिया।
इसके अलावा, आर्थिक सुधार के मोर्चे पर मोदी सरकार ने एक दशक से लटके जीएसटी कानून को लागू किया, जिससे उद्योग जगत में यह संदेश गया कि 'नीतिगत अपंगता' का युग अब खत्म हो गया है। बेशक इसे लागू करने में शुरू में कुछ समस्याएं हुईं, कई संशोधन करने पड़े, पर मोदी एक अच्छी आर्थिक सुधार नीति को लागू करने से डरे नहीं। अब कथनी नहीं, करनी पर जोर था। 'न खाऊंगा और न खाने दूंगा' वाली छवि पर लोगों का भरोसा बढ़ा। मोदी सरकार के किसी भी मंत्री पर अभी तक भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा है।
देश और जनहित में निरंतर साहसिक फैसले लेने की गति नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में भी जारी है। दूसरी पारी में इस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद-370 और 35 ए को खत्म कर जहां कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया, वहीं राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटकर लंबे समय से उपेक्षित लद्दाख के साथ राजनीतिक न्याय किया। कश्मीर के मसले पर जनसंघ का एक ऐतिहासिक स्टैंड रहा है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी का कश्मीर के मुद्दे पर ही लड़ते हुए नजरबंदी में निधन हुआ था। अनुच्छेद-370 को निरस्त कर पार्टी ने इस मामले में अपनी ऐतिहासिक प्रतिबद्धता ही दोहराई। हालांकि इस फैसले का काफी विरोध हुआ, पर मोदी सरकार ने इसे सख्त अंदाज में लागू किया। पाकिस्तान और चीन, दोनों से भारत की युद्ध जैसी स्थिति बनी, लेकिन मजबूती के साथ सरकार ने इन चुनौतियों का सामना किया।
दूसरे कार्यकाल की अन्य उपलब्धियों में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की शुरुआत, जल निकायों के विकास और कायाकल्प के लिए अमृत सरोवर की पहल, मनरेगा दिवस को दोगुना करने, तीन तलाक कानून को राष्ट्रपति से मंजूरी दिलाने, नागरिकता संशोधन कानून पारित करने, और इंफ्रास्ट्रक्चर का तेजी से विकास शामिल हैं।
किसान सम्मान निधि और मृदा जांच जैसी पहल के बावजूद कृषि क्षेत्र का संकट हालांकि बरकरार रहा और राजस्थान, छत्तीसगढ़ व महाराष्ट्र में भाजपा सरकार नहीं बना पाई। लेकिन मोदी कभी हार नहीं मानते और सतत चुनाव प्रचार की बागडोर अपने हाथों से संभालते हैं, क्योंकि वह जानते हैं कि लोकतंत्र में चुनावी सफलता बहुत मायने रखती है।
विदेश नीति के मामले में भी मोदी सरकार के हिस्से में कई सफलताएं हैं। पहली बार शपथ ग्रहण के दौरान ही उन्होंने पड़ोसी देशों के राष्ट्र प्रमुखों को आमंत्रित कर 'पड़ोसी प्रथम' की नीति का आगाज किया और लुक ईस्ट पर जोर दिया था। जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे से मोदी की अच्छी मित्रता रही। बदले हुए वैश्विक माहौल में भारत और जापान के बेहतर रिश्ते अब क्वाड की राजनीति में भी महत्वपूर्ण हो गए हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र और सीमा पर चीन से तनातनी की स्थिति में अमेरिका भारत का प्रमुख साझेदार बन गया है। अब भारत एक कमजोर और पिछलग्गू देश नहीं है, जो किसी की दया पर निर्भर हो। रूस के साथ भारत के दशकों पुराने ऐतिहासिक रिश्ते रहे हैं, इसलिए इस मामले में भारत अमेरिका की भी नहीं सुनता। अपनी स्वतंत्र और दृढ़ विदेश नीति से भारत ने वैश्विक राजनीति में अपनी खास जगह बनाई है।
हमारी घरेलू दिक्कतें बहुत हैं। देश में गरीबी ज्यादा है, ज्यादातर लोग कृषि पर निर्भर हैं। जबकि कृषि में आय बहुत कम है, जीडीपी में कृषि का योगदान भी कम होता गया है। लागत बढ़ने के कारण कृषि मुनाफे का सौदा नहीं रह गई है, इसलिए लोग कृषि क्षेत्र से पलायन करने लगे हैं। लेकिन अन्य क्षेत्रों में रोजगार के लिए जिस कौशल की जरूरत है, वैसा हमारे यहां नहीं है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने कौशल विकास कार्यक्रम चलाया। अगर भारत को चीन से आर्थिक प्रतिस्पर्धा करनी है, तो अपने श्रमिकों को शिक्षा एवं हुनर से लैस करना होगा। रोजगार का न बढ़ना ही मोदी सरकार की बड़ी विफलताओं में है।
कोविड ने समाज और सरकार को ही नहीं, अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान पहुंचाया। इसने लाखों लोगों की नौकरी छीन ली। इस संकट से राष्ट्र धीरे-धीरे उबरने लगा था कि यूक्रेन पर रूसी हमले ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक बड़ा झटका दिया। तेल की कीमतें आसमान छूने लगीं, जिससे महंगाई दर काफी बढ़ गई। हालांकि चीन से मोहभंग की स्थिति में अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों के भारत आने की संभावना बनी है। 'मेक इन इंडिया' नीति से भारत में उत्पादन भी बढ़ेगा। यह देखने वाली बात होगी कि आने वाले दिनों में मोदी सरकार बेरोजगारी और महंगाई जैसी चुनौतियों से कैसे निपटती है। लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी पर बार-बार विश्वास जताया है, लेकिन आने वाले दिनों में लोगों की आस जीवन-यापन के कुछ मूलभूत मुद्दों पर टिकी है। आसमान की ऊंचाइयों को छूने के साथ जमीनी धरातल पर उसे तब्दील करना ही मोदी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती भी है और सबसे बड़ा सपना भी।

सोर्स: अमर उजाला

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