सम्पादकीय

पर्यटक स्थलों पर चाहिए कुशल अपशिष्ट प्रबंधन

Rani Sahu
30 Nov 2021 6:51 PM GMT
पर्यटक स्थलों पर चाहिए कुशल अपशिष्ट प्रबंधन
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हिमाचल में पहाड़ी पर्यटन स्थानों में निरंतर बढ़ते भवन निर्माण और होटलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए यहां पर ठोस व तरल बैस्ट मैनेजमेंट की ज़रूरतें भी बढ़ने लगी हैं

हिमाचल में पहाड़ी पर्यटन स्थानों में निरंतर बढ़ते भवन निर्माण और होटलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए यहां पर ठोस व तरल बैस्ट मैनेजमेंट की ज़रूरतें भी बढ़ने लगी हैं। अगर हम हिमाचल के प्रमुख पर्यटक स्थलों की बात करें तो कुल्लू, मनाली, शिमला, धर्मशाला, किन्नौर, लाहुल और स्पीति और कुछ अन्य पर्यटक स्थल हैं जो धार्मिक आस्थाओं के कारण लोगों को आकर्षित करते हैं, जिनमें कांगड़ा सबसे प्रमुख है। इन सभी जगहों पर कूड़े-कर्कट के प्रबंधन की व्यवस्था सरकार ने कर रखी है और क्षेत्रीय नगरपालिका अपना काम लगभग कुशलता से करती है। लगभग पिछले दो सालों में पर्यटकों का सैलाब कोरोना की वजह से नहीं उमड़ा, तो इसके चलते क्षेत्र की नदियां, पानी, हवा, ट्रैफिक काफी साफ-सुथरा दिखने लगा।

अब जबकि देश धीरे-धीरे खुल रहा है, साफ-सफाई और अपशिष्ट प्रबंधन की जरूरत बढ़ जाएगी। आइए कुछ आंकड़ों पर गौर करते हैं हिमाचल के प्रमुख पर्यटन स्थलों कुल्लू-मनाली और शिमला की। कुल्लू शहर की अपनी आबादी 20 हज़ार के करीब है, लेकिन 2019 में यहां 30 लाख पर्यटक शहर से होकर गुजरे। मनाली की आबादी 2011 में 8096 थी, जो अब बढ़ कर 10 हज़ार हो गई होगी। करीब 7500 लोग देश की सबसे खूबसूरत सुरंग 'अटल सुरंग' को देखने जाते हैं या वहां से गुजरते हैं लाहुल घाटी या लेह को जाने लिए। इसी तरह शिमला शहर की आबादी करीब दो लाख है। वहां काफी संख्या में पर्यटक या तो मधुमास पर आते हैं या फिर घूमने। इस वर्ष फरवरी के आंकड़े देखे जाएं तो 18500 पर्यटक प्रतिदिन हिमाचल आए, जो संख्या आम वर्षों से बहुत कम है। अब बात करते हैं अपशिष्ट प्रबंधन की। कुल्लू-मनाली में 2000 से अधिक पंजीकृत एवं बिना पंजीकरण के होटल हैं। किसी भी शहर के या कस्बे के प्रवेश व निकास के आसपास आपको कचरे के बड़े ढेर मिल जाएंगे। यह बीमारी महानगरों में भी है। अगर आप दिल्ली में चंडीगढ़ की तरफ से प्रवेश करते हैं तो आपको अलीपुर के पास कचरे के बड़े पहाड़ मिल जाएंगे। वहीं पर कचरे से खाद बनाने की छोटी सी इकाई भी है, लेकिन पूरे शहर का कचरा या तो अलीपुर या गाजीपुर के पास इकट्ठा किया जाता है, जिसे प्रोसेस करने के लिए लगाए गए प्लांट काफी नहीं हैं।
इसी तरह जब आप मनाली में कुल्लू की तरफ से प्रवेश करते हैं तो कूड़े-कचरे के बड़े ढेर वहां मिल जाएंगे। यह जितना भी तरल वेस्ट है, वह धीरे-धीरे ब्यास नदी में बहता रहता है, रिसता रहता है। ब्यास नदी में अधिकतर होटलों का फीकल वेस्ट भी छोड़ा जाता है जो पानी में बैक्टीरिया और दूसरी अशुद्धियां पैदा करता है। इससे बीमारी फैलने की संभावना रहती है। हालांकि पहाड़ी क्षेत्रों में सीवेज और वाटर ट्रीटमेंट प्लांट हैं, लेकिन उनकी संख्या और बढ़ानी होगी तथा कार्यकुशलता भी। साथ ही औद्योगिक इकाइयों से आने वाले रासायनिक पदार्थों तथा दूसरे कचरे को नदी में बहने से रोकना होगा। ब्यास नदी के किनारे बहुत सी जगहों पर आबादी है। लोगों ने पक्के मकान बना रखे हैं। नदी का जलग्रहण क्षेत्र भी काफी है। जहां-जहां आवासीय क्षेत्र हैं, नदी का प्रदूषण और भी बढ़ जाता है। सरकार द्वारा समय-समय पर इसे रोकने के लिए कदम उठाए गए हैं, लेकिन वे काफी नहीं हैं। हिमाचल में स्वच्छता के प्रति सरकार हमेशा जागरूक रही है। बहुत से गांवों में सरकार ने सॉलिड और बायोडिग्रेडेबल कचरे के लिए बड़े डस्टबिन भी लगाए हंै। लेकिन उनसे कलेक्ट किए गए कचरे को फिर ठीक से प्रोसेस कर नष्ट करना होगा या उससे खाद बनानी होगी। कुल्लू जिले में आनी, बंजार, भुंतर, कुल्लू में बड़े स्तर की ठोस व तरल कचरा प्रबंधन इकाइयों की व्यवस्था का प्रावधान था।
हिमाचल के दूसरे हिस्सों में ये इकाइयां काम कर रही हैं। कांगड़ा में इस तरह की इकाइयां जो बड़ी कुशलता से काम कर रही हैं। मनाली में भी एक बड़ी ठोस व तरल कचरा प्रबंधन इकाई लगाने का प्रावधान है, जहां पर 1.5 मेगावाट बिजली का उत्पादन भी किया जाएगा। प्रदेश में अधिकतर स्थानों पर बायो टॉयलेट्स बनाने होंगे ताकि पानी की भी बचत हो सके और फीकल वेस्ट से कम्पोस्ट खाद भी बनाई जा सके। नगर पालिकाओं को कूड़े के प्रबंधन में विशेष प्रशिक्षण की ज़रुरत है, जैसे विकासशील देशों में कूड़े का प्रबंधन किया जाता है। सुबह जागने से पहले सारे शहर और उनकी सड़कें साफ मिलती हैं। छोटे शहरों के लिए भी आधुनिक गाडि़यों और उपकरणों की व्यवस्था सरकार को करनी होगी। पर्यावरण और आम आदमी के स्वास्थ्य के लिए यह बहुत ही ज़रूरी है। स्वच्छ भारत मिशन, जो प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्तूबर 2014 को गांधी जयंती के दिन शुरू किया था, बड़ी तेज़ी से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सफलता से लागू हुआ है। यह अभियान अपने सातवें साल में प्रवेश कर गया है। गांवों तथा शहरों में शौचालय बनाए गए हैं। शौचालयों के निर्माण के लिए सरकार ने अनुदान भी दिया। पर्यावरण को साफ-सुथरा रखना एक सामूहिक जिम्मेदारी है। इसमें व्यावसायिक संस्थाओं और आम आदमी को पूरा सहयोग देना होगा। गैर सरकारी संस्थानों को आगे आकर इसमें पूरा योगदान देना होगा। हिमाचल में कई गैर सरकारी संस्थान इस विषय पर लोगों को शिक्षित कर भी रहे हैं। हिमाचल के पर्यटक स्थलों के लिए कुशल अपशिष्ट प्रबंधन की जरूरत है।
रमेश पठानिया
स्वंतत्र लेखक
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