सम्पादकीय

मंत्रिपरिषद का असरदार विस्तार: संजय गुप्त

Triveni
15 July 2021 7:31 AM GMT
मंत्रिपरिषद का असरदार विस्तार: संजय गुप्त
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कोविड महामारी के कारण न केवल विश्व की अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी हुई है, बल्कि बेरोजगारी भी चरम पर है।

कोविड महामारी के कारण न केवल विश्व की अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी हुई है, बल्कि बेरोजगारी भी चरम पर है। भारत भी इस समस्या से अछूता नहीं। मोदी सरकार के सामने इस समय सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना और निम्न एवं और मध्यम वर्ग को आॢथक रूप से सक्षम बनाना है। इस चुनौती के बीच उन्होंने अपने दो साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद अपनी मंत्रिपरिषद का विस्तार किया। वैसे तो केंद्रीय मंत्रिपरिषद में विस्तार एक अर्से से प्रस्तावित था, लेकिन बीते कुछ दिनों से यह स्पष्ट था कि अब इसमें देर नहीं होने वाली। जैसे ही कोविड महामारी का कहर थमा, मोदी ने मंत्रिपरिषद का प्रतीक्षित काम पूरा किया। यह विस्तार ऐसे समय पर किया गया जब कुछ ही महीनों बाद उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इनमें उत्तर प्रदेश राजनीतिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण है। यहां से 80 सांसद चुने जाते हैं। चूंकि केंद्रीय सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है, इसलिए इस राज्य में सत्ता बनाए रखना भाजपा की पहली प्राथमिकता होगी। मंत्रिपरिषद के विस्तार के साथ उत्तर प्रदेश के मंत्रियों की संख्या 15 हो गई है। इनमें दलित, ओबीसी के साथ-साथ अगड़े वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देकर प्रधानमंत्री ने राज्य की जनता और साथ ही विपक्षी नेताओं को स्पष्ट संदेश दिया। इस संदेश के चलते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा को चुनाव के समय सामाजिक समीकरण साधने में आसानी होगी।

चूंकि अगले वर्ष के अंत में हिमाचल प्रदेश में भी चुनाव हैं, इसलिए वहां के युवा नेता अनुराग ठाकुर को पदोन्नत करके कैबिनेट मंत्री बनाया गया। अनुराग ठाकुर को कैबिनेट मंत्री बनाकर मोदी ने देश के युवाओं को भी संदेश दिया है। मंत्रिपरिषद विस्तार में अन्य राज्यों का भी ध्यान रखा गया है। मंत्रिपरिषद के विस्तार के साथ कुल मंत्रियों की संख्या 77 हो गई है। इनमें सबसे अधिक संख्या आदिवासी, दलितों और ओबीसी नेताओं की है। एक समय यह कहा जाता था कि भाजपा अगड़ों की पार्टी है। अब कोई भी ऐसा नहीं कह सकता। यह भी उल्लेखनीय है कि मंत्रिपरिषद में महिलाओं की संख्या बढ़कर 11 हो गई है।
चूंकि महाराष्ट्र भाजपा के लिए एक चुनौती बन गया है इसलिए मंत्रिपरिषद विस्तार में राज्यसभा सदस्य नारायण राणे को भी कैबिनेट मंत्री बनाया गया। राणे पूर्व शिवसैनिक हैं और कोंकण क्षेत्र में खासा असर रखते हैं। वह यह जानते हैं कि शिवसेना से कैसे निपटा जा सकता है। महाराष्ट्र में भले ही शिवसेना सहयोगी दलों कांग्रेस और एनसीपी के साथ सहज दिखने का दिखावा कर रही हो, लेकिन ऐसा है नहीं। मंत्रिपरिषद विस्तार में ज्योतिरादित्य सिंधिया का शामिल होना तय था और ऐसा ही हुआ। उन्हेंं मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार बनवाने का पुरस्कार दिया गया। वह भाजपा में इसीलिए शामिल हुए, क्योंकि कांग्रेस ने उन्हेंं तरजीह नहीं दी। यह ध्यान रहे कि उनकी दादी विजयाराजे सिंधिया भाजपा की संस्थापक सदस्य थीं। उन्हेंं नागरिक उड्डयन मंत्रालय मिला है। एक समय यह मंत्रालय उनके पिता माधवराव सिंधिया ने भी संभाला था।
मोदी ने राज्यसभा सदस्य अश्विनी वैष्णव को जिस तरह सीधे कैबिनेट मंत्री बनाया, वह उल्लेखनीय है। अश्विनी वैष्णव पूर्व आइएएस अधिकारी हैं और तकनीक के साथ प्रबंधन के भी विशेषज्ञ माने जाते हैं। उनके मंत्री बनने से जयशंकर प्रसाद और हरदीप सिहं पुरी का स्मरण स्वाभाविक है, जो इसी तरह सीधे मंत्री बने थे। ऊर्जा मंत्री आरके सिंह भी पूर्व आइएएस अधिकारी हैं, लेकिन वह चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचे।
मंत्रिपरिषद के विस्तार के साथ उसमें फेरबदल भी हुआ और सबसे चौंकाने वाली बात रही चार दिग्गज मंत्रियों- रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर, रमेश पोखरियाल निशंक और डॉ. हर्षवर्धन की छुटटी। वैसे तो इसके स्पष्ट कारण शायद ही कभी सामने आएं कि इतने दिग्गज मंत्रियों के इस्तीफे क्यों लिए गए, लेकिन ऐसा करके प्रधानमंत्री ने यह संकेत दिया कि किसी के काम में कहीं कोई ढिलाई स्वीकार नहीं। रविशंकर प्रसाद कानून और आईटी मंत्रालय के साथ संचार मंत्रालय भी संभाल रहे थे। चूंकि वह दिग्गज इंटरनेट मीडिया कंपनियों को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे थे इसलिए उनका जाना चौंकाने वाला रहा। जाहिर है कि उनके काम में कहीं कोई कमी रही होगी, अन्यथा तीन मंत्रालय संभालने के बाद भी छुट्टी क्यों होती? हर्षवर्धन के बारे में अवश्य यह कहा जा सकता है कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कोविड रोगियों के उपचार की समुचित व्यवस्था न कर पाना उनके लिए भारी सिद्ध हुआ। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि दूसरी लहर में सरकार भी कठघरे में खडी नजर आई। ऐसा लगता है कि दूसरी लहर में सामने आईं समस्याओं की जवाबदेही के कारण हर्षवर्धन को जाना पड़ा। यही बात श्रम मंत्री संतोष गंगवार पर भी लागू होती है। उनका मंत्रालय प्रवासी मजदूरों की समस्याओं का सामना सही तरह नहीं कर सका। शायद कुछ इसी तरह की कमी प्रकाश जावडेकर और निशंक के कामकाज में भी रही। निशंक के बारे में यह कहा जाता है कि एक तो वह कोरोना की चपेट में आने के बाद बीमार रहने लगे थे और दूसरे, उनसे कुछ गलतियां भी हुईं।
चूंकि मंत्रिपरिषद के विस्तार में कई वरिष्ठ मंत्रियों को दरकिनार किया गया इसलिए प्रधानमंत्री अब अपेक्षाकृत एक युवा टीम का नेतृत्व करते दिख रहे हैं। हो सकता है कि हटाए गए मंत्रियों को संगठन में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाए, लेकिन उन्हेंं हटाने को नए लोगों को मौका देने की दृष्टि से भी देखा जाना चाहिए। जो नए चेहरे लाए गए उनमें से अधिकतार पहली बार केंद्र में मंत्री बने हैं। चुनौती भरी परिस्थिति में नए चेहरों को आगे करके प्रधानमंत्री मोदी ने यह संदेश भी दिया कि भाजपा भविष्य की सोचती है। मंत्रिपरिषद में शामिल लोगों के लिए इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता कि उन्हेंं मोदी के नेतृत्व में सीखने और काम करने का मौका मिले, जो आज के दिन सबसे बेहतर राजनीतिक सूझ-बूझ वाली शख्सियत हैं। सटीक राजनीतिक समझ के मामले में उनका कोई सानी नहीं। हैरत नहीं कि उन्होंने मंत्रिपरिषद विस्तार के जरिये नई पीढ़ी के नेताओं को इसीलिए आगे किया हो ताकि भविष्य की भाजपा की नींव रखी जा सके।


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