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हाल ही में 28 सितंबर को इंडोनेशिया के बाली में दुनिया के विकसित और विकासशील देशों के सबसे प्रभावी संगठन जी-20 की बैठक में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने अपने संबोधन में कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले आठ वर्षों में भारत सरकार ने कृषि और खाद्य प्रणालियों के समक्ष स्थिरता संबंधी चुनौतियों से निपटने, छोटे व सीमांत किसानों के कल्याण, खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता, प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन, कृषि अवसंरचना में बड़े निवेश, कृषि के डिजिटलीकरण और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से मुकाबले की रणनीतियों से भारत न केवल अपनी खाद्य जरूरतों की सफलता से पूर्ति कर रहा है, वरन जरूरतमंद देशों को वसुदैव कुटुम्बकम की भावना के साथ खाद्यान्न की आपूर्ति भी कर रहा है। वैश्विक महामारी के दौरान 2021-22 में भारत का कृषि निर्यात 50.21 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है।
उल्लेखनीय है कि इस अहम बैठक में कृषि मंत्री श्री तोमर ने जी-20 के सभी प्रतिनिधियों से अनुरोध किया कि वे भारत आकर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में कृषि एवं ग्रामीण विकास के क्षेत्र में जो सकारात्मक परिवर्तन हो रहे हैं, उसे स्वयं देखें। साथ ही भारत विकासशील और अल्पविकसित देशों को अपनी कृषि संबंधी विशेषज्ञता साझा करने के लिए तत्पर भी है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि जी-20 बैठक में भारत के द्वारा कृषि एवं ग्रामीण विकास संबंधी रणनीतिक कदमों से प्राप्त हो रहे अभूतपूर्व परिणामों के विश्लेषण के बाद बैठक में उपस्थित सभी देशों के प्रतिनिधिमंडलों ने यह अनुभव किया कि इस समय जब पूरी दुनिया में रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन-ताइवान तनाव और आपूर्ति श्रृंखला में अवरोधों की वजह से आर्थिक-वित्तीय चुनौतियों और बढ़ती महंगाई से हाहाकार मचा हुआ है, तब भारत में इन चुनौतियों से निपटने के लिए अपनाई गई आर्थिक एवं कृषि संबंधी विवेकपूर्ण रणनीतियों से आम आदमी के लिए राहतकारी परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है। नि:संदेह जन-धन योजना (जे), आधार (ए) और मोबाइल (एम) के तीन आयामी जैम से छोटे किसानों और ग्रामीण गरीबों का बेमिसाल सशक्तिकरण हुआ है। साथ ही रिकॉर्ड कृषि उत्पादन और सशक्त सार्वजनिक वितरण प्रणाली के सहारे 80 करोड़ से अधिक गरीब व कमजोर वर्ग के लोगों तक अप्रैल 2020 से शुरू की गई निशुल्क खाद्यान्न आपूर्ति की योजना को दिसंबर 2022 तक विस्तारित किए जाने से करोड़ों गरीबों के लिए वैश्विक चुनौतियों के बीच राहत का परिदृश्य उभरा है। केंद्र सरकार अब तक सीधे किसानों के बैंक अकाउंट में 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की रकम ट्रांसफर कर चुकी है।
स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि इस समय देशभर में सरकार गेहूं-धान की एक फसली खेती की जगह विविध फसलों की खेती और मोटे अनाज को प्रोत्साहन देने की रणनीति पर आगे बढ़ी है। यही कारण है कि इस समय भारत में खाद्यान्न के भंडार भरे हुए हैं। देश में एक जुलाई 2022 को 8.33 करोड़ टन खाद्यान्न (गेहूं एवं चावल) का बफर भंडार है। देश गेहूं, चावल और चीनी उत्पादन में आत्मनिर्भर है। देश में दुग्ध क्रांति भी ऊंचाई पर पहुंच गई है। भारत दुनिया में सबसे बड़ा दुग्ध उत्पाद देश बन गया है। 21 सितंबर को कृषि एवं किसान मंत्रालय के द्वारा मुख्य खरीफ फसलों के उत्पादन के प्रथम अग्रिम अनुमान के मुताबिक खरीफ सीजन में 14.92 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन का अनुमान है। मक्का और गन्ना का रिकॉर्ड उत्पादन अनुमानित है। अब ग्रामीण स्वामित्व योजना भी छोटे किसानों की आमदनी बढ़ाने और उनके सशक्तिकरण के साथ-साथ ग्रामीण विकास में मील का पत्थर बनते हुए दिखाई दे रही है। ज्ञातव्य है कि मध्यप्रदेश के वर्तमान कृषि मंत्री कमल पटेल के द्वारा मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के मार्गदर्शन में अक्तूबर 2008 में उनके राजस्व मंत्री रहते लागू की गई स्वामित्व योजना जैसी ही मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास अधिकार योजना के तहत हरदा के मसनगांव और भाट परेटिया गांवों के किसानों को पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में 1554 भूखंडों के मालिकाना हक के पट्टे सौंपे गए थे। पिछले 14 वर्षों में इन दोनों गांवों का आर्थिक कायाकल्प हो गया है।
दोनों गांवों के ग्रामीणों के पास उनकी जमीन का मालिकाना हक आ जाने से वे सरलतापूर्वक संस्थागत ऋण प्राप्त करने लगे हैं, वे स्वरोजगार तथा ग्रामीण उद्योगों की तरफ आगे बढ़े हैं, उनकी गैर कृषि आय बढऩे से आर्थिक रूप से अधिक सशक्त हुए हंै। ऐसे में अब पूरे देश के गांवों में स्वामित्व योजना के लगातार विस्तार से गांवों के विकास और किसानों की अधिक आमदनी का नया अध्याय लिखा जा रहा है। जब श्री नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री और नरेंद्र सिंह तोमर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री बने तब देशभर के गांवों में ग्रामीणों को उनके भूखंडों का मालिकाना हक देने के महत्व के मद्देनजर स्वामित्व योजना पर महत्वपूर्ण विचार मंथन हुआ। 24 अप्रैल 2020 को पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में पांच राज्यों में स्वामित्व योजना की शुरुआत की गई। इसके बाद 24 अप्रैल 2021 को पंचायती राज दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना को राष्ट्रीय स्तर पर चरणबद्ध रूप से स्वामित्व योजना लागू किए जाने की घोषणा की। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के 76वें सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि देश के 6 लाख गांवों में ड्रोन से भूखंडों का सर्वेक्षण कराकर उनके मालिकों को सम्पत्ति का स्पष्ट तौर पर स्वामित्व सौंपकर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की स्वामित्व योजना तेजी से आगे बढ़ाई जा रही है।
स्वामित्व योजना गांवों की जमीन पर बरसों से काबिज ग्रामीणों को अधिकार पत्र देकर उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने वाली महत्वाकांक्षी योजना है। ग्रामीणों को उनके भूखंडों पर मालिकाना हक मिलने से वे गैर संस्थागत स्त्रोतों से ऊंचे ब्याज पर उधार लेने के लिए मजबूर नहीं होंगे। वे भूखंडों के दस्तावेजों का उपयोग बैंकों से ऋण सहित विभिन्न आर्थिक और वित्तीय कार्यों में कर सकेंगे। हम उम्मीद करें कि सरकार वर्ष 2022 में असमान मानसून की चुनौतियों के मद्देनजर विभिन्न कृषि विकास कार्यक्रमों और खाद्यान्न, तिलहन व दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए लागू की गई नई योजनाओं के साथ-साथ डिजिटल कृषि मिशन के कारगर क्रियान्वयन की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी। हम उम्मीद करें कि सरकार कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में आधुनिकीकरण और कृषि क्षेत्र में फसलों के विविधीकरण की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी। ऐसे में जलवायु परिवर्तन के विश्लेषण के साथ विभिन्न उपायों से इस समय असमान मानसून और मानसून की बेरुखी के कारण देश के कृषि मानचित्र पर कृषि की चुनौतियों का जो चित्र उभर रहा है, उसमें बहुत कुछ सुधार हो सकेगा और भारतीय कृषि अपनी आगे बढऩे की रफ्तार को बनाए रख सकेगी। हम उम्मीद करें कि देश की प्रभावी कृषि रणनीतियों और प्रभावी स्वामित्व योजना से जहां कृषि एवं ग्रामीण विकास भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार बना रहेगा, वहीं दुनिया की खाद्य जरूरतों को पूरा करने में भी भारत की अहम भूमिका बनी रहेगी।
डा. जयंतीलाल भंडारी
विख्यात अर्थशास्त्री
By: divyahimachal

Rani Sahu
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