सम्पादकीय

महंगाई की मार

Subhi
3 July 2021 3:14 AM GMT
महंगाई की मार
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महंगाई के मोर्चे पर सरकार लगातार विफल साबित हो रही है। हर दिन डीजल-पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी करनी पड़ रही है। रसोई गैस की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं।

महंगाई के मोर्चे पर सरकार लगातार विफल साबित हो रही है। हर दिन डीजल-पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी करनी पड़ रही है। रसोई गैस की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली उपभोक्ता वस्तुओं के मूल्य आसमान छू रहे हैं। ताजा आंकड़े के मुताबिक थोक महांगाई दर रिकार्ड तेरह फीसद को छूने लगी है। इससे खुदरा कीमतों में बढ़ोतरी का अंदाजा लगाया जा सकता है। शायद ही कोई वस्तु हो, जिसके मूल्य न बढ़े हों। मगर सबसे अधिक बढ़ोतरी खाद्य तेलों और ईंधन में हुई है। यह तब है, जब कोरोना महामारी के कारण लोगों की कमाई कम हुई है और उन्होंने खर्च को लेकर अपने हाथ रोक रखे हैं। यानी मांग में उछाल नहीं आ रहा। फिर रिजर्व बैंक ने अपनी ब्याज दरें सबसे निचले स्तर पर स्थिर कर दी हैं। महंगाई बढ़ने के दो मुख्य कारण बताए जा रहे हैं। एक, कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और दूसरा विनिर्माण यानी मैन्युफैक्चरिंग में लागत बढ़ना। डीजल-पेट्रोल और रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोतरी का असर अनेक स्तरों पर पड़ता है। उपभोक्ता वस्तुओं की उत्पादन लागत और ढुलाई का खर्च बढ़ जाता है, जिससे स्वाभाविक ही उनकी कीमतें बढ़ती हैं। मगर ईंधन की कीमतों पर अंकुश लगाने की कोशिशें विफल ही साबित हुई हैं।

लोगों पर महंगाई की सबसे बड़ी मार दैनिक इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं की कीमतें बढ़ने की वजह से पड़ रही है। सब्जी, दालें, दूध, अंडे, खाद्य तेल और अनाज की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। जबकि इनके उत्पादन के मामले में कोई कमी नहीं देखी गई है। किसान परेशान हैं कि उनकी फसलें बाजार तक नहीं पहुंच पा रहीं। इसके चलते बहुत सारे किसान अपनी कच्ची फसलें, जैसे टमाटर, सड़कों के किनारे फेंकने पर मजबूर हुए। इसी तरह दालों का उत्पादन बेहतर रहा। अंडा उत्पादक आंदोलन तक कर चुके हैं कि उनकी आपूर्ति बेहतर की जाए। फिर भी कीमतें काबू में नहीं आ पा रहीं, तो साफ है कि यह समस्या चीजों के अभाव की वजह से पैदा नहीं हुई हैं। कोरोना की दूसरी लहर में उस तरह पूर्णबंदी भी नहीं हुई, जैसे पहली लहर में हुई थी, जिससे आपूर्ति शृंखला बड़े पैमाने पर प्रभावित हुई हो। फिर भी महंगाई बढ़ रही है, तो इसका प्रमुख कारण यही है कि इसे रोकने के लिए जो व्यावहारिक कदम उठाए जाने चाहिए थे, वे नहीं उठाए गए हैं।
लाखों लोगों के वेतन कम हो गए हैं। बड़े पैमाने पर कल-कारखाने बंद हुए हैं। बहुत सारे लोग अपने गांव लौटने पर मजबूर हुए हैं। ऐसे में पहले ही उन्हें अपने बच्चों की फीस, दैनिक जरूरतों की पूर्ति के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। तिस पर महांगाई की मार ने उन्हें और बेहाल कर दिया है। जिन छोटे-मोटे, रेहड़ी-पटरी के कारोबार, मिस्त्रीगीरी और दिहाड़ी करने वालों ने जैसे-तैसे फिर से जिंदगी को पटरी पर लौटाने का साहस जुटाया है, उन्हें भी बेहतरी की कोई सूरत नजर नहीं आती। उनके कारोबार में लागत बढ़ रही है, यातायात और दैनिक खर्च बढ़ गया है। बचत काफी घट गई है। सरकार अगर कम से कम खाने-पीने की चीजों की कीमतें काबू में रखने में कामयाब हो जाती, तो भी लोगों को इतनी परेशानियों का सामना न करना पड़ता। महंगाई के मोर्चे पर चुनौतियों को दूर करने के गंभीरता से प्रयास नहीं किए जाएंगे, तो आर्थिक मोर्चे पर बेहतरी के सपने भी शायद ही पूरे हों।

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