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- महंगाई की मार
Written by जनसत्ता: लंबे समय से महंगाई की मार झेल रहे आम आदमी को फिर झटका लगा है। अब कुछ कंपनियों ने दूध के दाम दो रुपए प्रति लीटर बढ़ा दिए हैं। इसके अलावा तेल कंपनियों ने व्यावसायिक गैस सिलेंडर के दामों में एक सौ पांच रुपए का भारी इजाफा कर दिया है। ऐसे में इस बात की संभावना से कैसे इनकार किया जा सकता है कि अब जल्द ही घरेलू गैस सिलेंडरों और पाइप लाइन के जरिए दी जाने वाली गैस के दाम नहीं बढ़ेंगे! खाद्य तेलों के दाम भी बढ़ते ही जा रहे हैं। पिछले एक हफ्ते में सरसों और सोयाबीन का तेल पंद्रह से बीस रुपए तक महंगा हो गया।
यानी आम आदमी के इस्तेमाल की हर चीज महंगी होती जा रही है। तेल कंपनियों ने पिछले तीन महीने से पेट्रोल और डीजल के दाम नहीं बढ़ाए हैं। अघोषित तौर पर इसका कारण पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव ही रहा है। हालांकि अब चुनाव खत्म होने को हैं। इसलिए अब तेल कंपनियां पिछले तीन महीने की भरपाई करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा सकती हैं। वैसे भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल एक सौ बीस डालर प्रति बैरल के आसपास चल रहा है। ऐसे में तेल कंपनियों को दाम बढ़ाने का बड़ा तार्किक कारण भी मिल जाएगा।
श्रम मंत्रालय ने हाल में जनवरी के दौरान खुदरा महंगाई के आंकड़े जारी किए। इसके मुताबिक जनवरी में मुद्रास्फीति 5.84 फीसद रही, जो दिंसबर 2021 में 5.56 फीसद थी और जनवरी 2021 यानी ठीक एक साल पहले 3.15 फीसद। आंकड़ों से साफ है कि पिछले एक साल में खुदरा महंगाई में 2.69 फीसद की बढ़ोतरी हो गई, जो कि आम आदमी के लिए कोई मामूली नहीं है। ये आंकड़े भी वही तस्वीर पेश कर रहे हैं जो पिछले महीने सांख्यिकी विभाग के खुदरा महंगाई के आंकड़ों में देखने को मिली थी।
गौरतलब है कि एक पखवाड़े पहले सांख्यिकी विभाग ने खुदरा महंगाई आंकड़े जारी किए थे। इस साल जनवरी में खुदरा महंगाई छह दशमलव एक पर पहुंच गई थी, जो पिछले सात महीने में सबसे ज्यादा थी। यह चिंता की बात ज्यादा इसलिए भी है कि महंगाई रिजर्व बैंक के निर्धारित दो से छह फीसद के दायरे से ऊपर बनी हुई है। वैसे तो रिजर्व बैंक का मानना रहा है कि महंगाई से राहत के फिलहाल आसार हैं नहीं। इसीलिए मौद्रिक नीति समिति ने नीतिगत दरों में कोई बदलाव भी नहीं किया था, वरना महंगाई और बढ़ती। थोक महंगाई की दर भी पिछले दस महीने से दो अंकों में बनी हुई है। वैसे भी अभी जिस तरह के घरेलू और वैश्विक हालात बने हुए हैं, उसमें इस साल महंगाई दर ऊंची ही बनी रहने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
हकीकत यह है कि महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ कर रख दी है। आबादी का बड़ा हिस्सा इस मार को झेलने को मजबूर है। और अब संकट इसलिए भी गहराता जा रहा है क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध का असर दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था पर भी साफ दिखने लगा है। भारत से कई तरह का सामान यूरोप के देशों को निर्यात होता है। लेकिन अब निर्यात पर असर पड़ने से कई उद्योग प्रभावित हो रहे हैं और लोगों के रोजगार पर संकट आने लगा है। उद्योगों में जो कामकाजी और मजदूर तबका है, वही महंगाई का सबसे ज्यादा शिकार भी होता है। मध्यवर्ग के हालात भी कम चिंताजनक नहीं हैं। आमद या तो है नहीं, और है भी तो इतनी कम कि एक औसत परिवार आसानी से गुजारा नहीं चला पा रहा। बेरोजगारी के आंकड़े रिकार्ड तोड़ रहे हैं। ऐसे में तो महंगाई और रुलाएगी ही।