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COVID-19 की दूसरी लहर
संजय श्रीवास्तव। अगर महामारी के आंकड़े असत्य होंगे तो निस्संदेह हमारी योजनाएं, रणनीतियां, बजट आवंटन से लेकर तमाम तरह की तैयारियां उतनी ही खोखली होंगी, उनके बेअसर और नाकाम होने की आशंका उतनी ही ज्यादा होगी। पता नहीं कोरोना कमजोर पड़ा है या सरकार और उसकी व्यवस्थाएं मजबूत, पर महामारी से संबंधित अद्यतन आकड़ों की सुनें तो वे यह कहते हैं कि कोरोना की कहर वाली दूसरी लहर अब उतार की तरफ है। मुंबई जो कल सबसे बुरे दौर से गुजर रहा था, अब उबर रहा है। दिल्ली और लखनऊ में नए संक्रमित मिलने कम हुए हैं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी पिछले कुछ दिनों से रोजाना संक्रमण के मामलों में कुछ कमी आई है।
हालांकि बहुत से विज्ञानी और विशेषज्ञ कोरोना के गणितीय मॉडलों का समर्थन करने के बावजूद इस बात की आधिकारिक संपुष्टि नहीं करते कि महामारी ने अपने देश में पीक हासिल कर लिया है। उन्हें इन आंकड़ों पर पूरी तरह से भरोसा नहीं है। खबरों में कोरोना के गिरते आंकड़े पढ़कर बहुत से लोगों की प्रतिक्रिया है कि जांच ही कम हो रही होगी। उनके संदेहों की पुष्टि कई स्रोतों से हो रही है, इसलिए इस तरह की आशंकाओं के लिए जनता के पास पर्याप्त कारण हैं। हमें चिंता तो इस बात की होनी चाहिए कि हम इतने बड़े पैमाने पर आंकड़े छिपाकर अपने ही देश, समाज उसके स्वास्थ्य और भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। देश में संक्रमितों, मरीजों, मौतों, सबकी संख्या संदिग्ध है।
ऐसा मानने की वाजिब वजहें हैं। जितना बताया जा रहा है उससे बड़ी संख्या में संक्रमण के मामलों के होने की आशंका गलत नहीं है, क्योंकि जितनों की जांच हो रही है, उसके कई गुना बिना जांच के घूम रहे हैं। जांच की गलत प्रक्रिया और अधूरी तकनीक से बहुत से संक्रमित बच जा रहे हैं। कई महीनों से विशेषज्ञ देश में रैपिड जांच में निगेटिव पाए जाने वालों की आरटीपीसीआर जांच से पुष्टि नहीं करने को लेकर चिंता जता रहे हैं। मौत के आंकड़ों में तो सबसे बड़ा घपला है। यह भी विचारणीय है कि वर्ष 2019 में जब महामारी नहीं थी, तब देश भर में रोजाना औसतन लगभग 27 हजार लोगों की मौत हो रही थी। कोई अफरा तफरी नहीं थी, लेकिन चार हजार मौतों का इजाफा होने से चिताएं चौबीसों घंटे जलने लगीं और चारों ओर हाहाकार मच गया।
फिलहाल मौजूदा आंकड़ों के आइने में देखें तो लगता है कि कई तरह के पूर्वानुमान सही होने वाले हैं जिनके अनुसार जून के अंत तक हमें रोजाना 20 हजार मामले देखने को मिलेंगे और कोरोना की दूसरी लहर से हमें जुलाई मध्य तक उसी स्तर तक की निजात मिल जाएगी जैसी फरवरी में थी। यह एक राहत भरी बात है, लेकिन इस आशंका के साथ कि क्या ये सभी आकलन वाकई सच साबित होने वाले हैं। असल में कोरोना के संदर्भ में गणितीय मॉडल तथा अनुमान बहुधा एक्जिट पोल के अनुमानों से भी बहुत ज्यादा बुरी तरह से फेल हुए हैं। मैथमेटिकल मॉडल दूसरी लहर देश में कब आएगी यह बताने में नितांत विफल रहा। गणितीय मॉडल का विज्ञानी आकलन किसी कोरोना जैसी महामारी के बारे में इस कदर नाकाम क्यों हो जाता है, तब जबकि यह विज्ञान की कई शाखाओं में सफलतापूर्वक काम करती है।
दरअसल उन विज्ञान शाखाओं और गणितज्ञों का पाला सरकार, प्रशासन जैसे अविज्ञानी प्रणाली और उसके द्वारा बनाए गए आंकड़ों से नहीं पड़ता। किसी भी गणितीय मॉडल में सारा अंतर और खेल आंकड़ों का ही है क्योंकि सूत्र, सिद्धांत बहुधा एक सरीखे होते हैं। भारत में गणितीय मॉडल का फेल होना यहां के गणित और विज्ञान का मजाक बनाना है और इसके लिए जिम्मेदार हैं आंकड़े। मैथमेटिकल मॉडल के लिए आवश्यक आंकड़े सीधे विज्ञानियों या गणितज्ञों की देखरेख में नहीं जुटाये जाते, बाहर से लिए जाते हैं। अधिकतर इनका स्रोत सरकारी एजेंसियां होती हैं। जब आंकड़े ही अविश्वसनीय हों तो उनसे निकले नतीजे सही कैसे हो सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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