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![संरचनात्मक सुधारों की प्रतीक्षा में शिक्षा, केंद्रीय शिक्षा मंत्री को तय करनी होंगी प्राथमिकताएं संरचनात्मक सुधारों की प्रतीक्षा में शिक्षा, केंद्रीय शिक्षा मंत्री को तय करनी होंगी प्राथमिकताएं](https://jantaserishta.com/h-upload/2021/07/30/1207073--.webp)
ध्यानेन्द्र सिंह चौहान| नई शिक्षा नीति को लागू हुए एक वर्ष पूरा हो गया। यह संतोष का विषय है कि लगभग तीन दशकों के बाद भारत ने अपने लिए शिक्षा व्यवस्था की पड़ताल की और नई शिक्षा नीति के रूप में उसका एक महत्वाकांक्षी मसौदा तैयार किया। भारतीय शिक्षा के इतिहास में यह घटना इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसका आयोजन खुले मन से शिक्षा से जुड़े सभी पहलुओं पर गौर करते हुए किया गया। ऐसा करना इसलिए जरूरी हो गया था, क्योंकि शिक्षा जगत की समस्याएं लगातार इकट्ठी होती रहीं और सरकारी उदासीनता के चलते कुछ नया करने की गुंजाइश नहीं हो सकी। परिणाम यह हुआ कि आकार में विश्व की एक प्रमुख वृहदाकार शिक्षा व्यवस्था तदर्थ रूप में चलती रही। हम लोग पुराने ढांचे में छिटपुट बदलाव और थोड़ी बहुत काट-छांट से काम चलाते रहे। परिणाम यह हुआ कि खराब गुणवत्ता वाली संस्थाओं का अंबार लग गया, लेकिन उनके समुद्र में श्रेष्ठ संस्थाओं के कुछ टापू नजर आते रहे, जिनमें पढ़-लिखकर युवा विदेश जाने को तत्पर रहे।