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- शिक्षा सुधार है रोजगार...

केंद्र सरकार का कहना है 2018 में प्रोविडेंट फंड की सदस्यता लेने वाले श्रमिकों में 70 लाख की वृद्धि हुई है। लेकिन प्रोविडेंट फंड की सदस्यता में वृद्धि और रोजगार में वृद्धि दो अलग-अलग बाते हैं। 2018 का समय नोटबंदी और जीएसटी का था। इन नीतियों के कारण छोटे उद्योग कम हुए थे और बड़े उद्योग बढ़े थे। छोटे उद्योग ही ज्यादा रोजगार बनाते थे। इसलिए यदि छोटे उद्योगों में 100 कर्मी बेरोजगार हुए तो हम मान सकते हैं कि बड़े उद्योगों में 50 रोजगार बने होंगे। कुल रोजगार में 50 की गिरावट आई। लेकिन जिन 50 को रोजगार मिला, वे प्रोविडेंट फंड के सदस्य बने, चूंकि वे बड़े उद्योगों में कार्यरत थे। इसलिए प्रोविडेंट फंड की सदस्यता में 50 सदस्यों की वृद्धि हुई, जबकि साथ-साथ कुल रोजगार में 50 श्रमिकों की गिरावट आई। इसीलिए केंद्र सरकार द्वारा किए गए सामयिक श्रम सर्वे में कहा गया कि 2012 एवं 2018 के बीच अपने देश में शहरी बेरोजगारी में तीन गुना वृद्धि हुई है। और गंभीर विषय यह है कि यदि मान भी लें कि 2018 में 70 लाख नए रोजगार बने तो भी बेरोजगारी की समस्या का निदान नहीं होता है क्योंकि अपने देश में हर वर्ष 120 लाख नए युवा श्रम बाजार में प्रवेश कर रहे हैं। इनमें से यदि 70 लाख को रोजगार मिल भी गए तो भी 50 लाख युवा बेरोजगार ही रह जाएंगे। समस्या के गंभीर होने के दूसरे संकेत उपलब्ध हैं।
