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- शिक्षा सर्कस नहीं
बाय दिव्यहिमांचल। कोरोना काल के मसौदे जिंदा रहेंगे, जब तक लड़ाई सरीखा इम्तिहान जारी है। बरसात में महामारी के बादल फिर अपने आंकड़ों के सत्य को उस मोड़ पर ले आए कि हिमाचल मंत्रिमंडल लगातार बंदिशों के तसमे कस रहा है। कुछ विराम फिर चुने जा रहे हैं और 22 तक स्कूलों में ताले लटका कर संदेश गहरा होता जा रहा है। हैरानी यह कि सरकार की कठोरता का पैगाम हमेशा स्कूलों पर चस्पां होता है, तो सवाल यह उठता है कि क्या कोरोना की लौटती लहरों में सबसे कसूरवार लम्हे शिक्षा की व्यवस्था में छिपे हैं। हमारा मानना है कि छात्रों के साथ, मनोवैज्ञानिक तौर पर ऐसे फैसलों का प्रतिकूल असर होता है और यह भी कि शिक्षा विभाग एक सर्कस की तरह काम कर रहा है। कोरोना की लहरों को स्कूलों पर चस्पां करने की बजाय यह देखा जाए कि कौन सा समुदाय या समूह अधिक बिगड़ा है। राजनीतिक समारोहों की घोषणाएं, आमंत्रण पत्र तथा लहजा अपने आप में भयावह है। शादी समारोहों की रौनकें अपने निरंकुश अंदाज में बेपरवाह हैं, तो अंतिम संस्कार में रिश्तों की पड़ताल फिर से लंबी हो गई है। राजनीतिक ताजपोशियों का जोश अगर धाम में परोसा जाएगा, तो फिर इसे मानवीय भूल कौन कहेगा।