सम्पादकीय

चुनाव में शिक्षा

Rani Sahu
19 May 2022 7:09 PM GMT
चुनाव में शिक्षा
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हिमाचल से राजनीतिक संवाद करती आम आदमी पार्टी अपने मरहले में नए रोशनदान लगा रही है

हिमाचल से राजनीतिक संवाद करती आम आदमी पार्टी अपने मरहले में नए रोशनदान लगा रही है। इसी परिप्रेक्ष्य में शिमला आए दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया 'चुनाव में शिक्षा पर चर्चा' का रुख मोड़ देते हैं। जाहिर है 'आप' के पास दिल्ली का मॉडल है और उसी को आधार बना कर वह तुलनात्मक दृष्टि से हिमाचल की शिकायतें सुनने का माहौल बनाना चाहती है। यह नई राजनीति की अपनी शक्ति है कि सामने वाले को कमजोर और दरिद्र बता दो। अभी दिल्ली बनाम हिमाचल की शुरुआत हुई है, आगे चलकर हिमाचल बनाम पंजाब करने का सियासी जवाब भी तैयार मिलेगा। राज्यों के मॉडल या मॉडल बनाम मॉडल की राजनीति दरअसल एक भ्रम है, जो मतदाता को सपनों के काल्पनिक संसार में ले जाता है। इससे पहले गुजरात मॉडल ने पूरे देश में तहलका मचा दिया था, लेकिन यथार्थ की पलकें आज भी इस सपने को देखने के लिए बोझिल हैं। प्रदेश को अगर देश की राजधानी के करीब खड़ा करना है, तो आय-व्यय के शब्दकोश से वे तमाम संभावनाएं जोड़नी होंगी जो दिल्ली को प्राथमिक बना देती हैं।

दिल्ली अपने पद और कद के मुताबिक चंद किलोमीटर के दायरे का सियासी टापू है, जहां देश दिखाई देता है, लेकिन पर्वतीय क्षमता का मूल्यांकन राष्ट्रीय संसाधनों में आज तक हुआ ही नहीं। बेशक शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर हिमाचल में श्रेष्ठ प्रयास चाहिएं, लेकिन वर्तमान ढांचे को खड़ा करने में इस प्रदेश की आज तक की तमाम सरकारों का योगदान रहा है। अगर प्रति व्यक्ति शिक्षा का ढांचा हिमाचल में अव्वल हुआ, तो यह इतना भी आसान नहीं था कि प्रदेश हर दो से पांच किलोमीटर दूरी तक सरकारी स्कूलों की इतनी तादाद खड़ी कर देता। किसी भी अन्य राज्य के अनुपात में हिमाचल में औसतन सबसे अधिक स्कूल, कालेज, इंजीनियरिंग व मेडिकल कालेज तथा अब तो विश्वविद्यालय भी स्थापित हो चुके हैं। यह दीगर है कि शिक्षा में गुणवत्ता भरने के लिए बहुत काम बाकी है और मात्रात्मक विकास ने छात्रों के करियर के साथ खिलवाड़ करना शुरू किया है। जाहिर तौर पर शिक्षा के स्तर पर हिमाचली युवा को जो दिशा चाहिए, उस पर लंबी बहस व समाधानों के नए विकल्प चाहिएं। बावजूद इसके अगर आम आदमी पार्टी यह साबित करना चाहे कि हिमाचल शिक्षा में अति पिछड़ा है, तो यह तथ्य आधारित नहीं होगा। नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमृत्य सेन ने प्राथमिक शिक्षा में हिमाचल की सफलता को अनुकरणीय मानते हुए राष्ट्र से बार-बार ताकीद की है कि इस दिशा में सभी राज्य आगे बढ़ें। बहरहाल हम 'आप' के 'शिक्षा संवाद' को नकार नहीं सकते, लेकिन इसका राजनीतिक संदर्भ वर्तमान सरकार के 'जनमंच' कार्यक्रम के सामने दिखाई दे रहा है। चुनावी बहस के सामने अगर ऐसे विषय पेश किए जाते हैं, तो आम जनता की प्रतिक्रिया सामने आएगी, लेकिन सवाल यही कि राजनीतिक मंच क्या निष्पक्षता से प्रदेश की जनता का प्रतिनिधित्व कर पाएंगे।
जाहिर है 'आप' की संगोष्ठी दो कार्य कर रही है। पहले यह कि इस बहाने शिक्षा से जुड़े लोगों को अपना मंच प्रदान करके उनके वर्षों से रुके गुस्से को स्थान दिया जा रहा है और दूसरे शिक्षा को मुद्दा बना कर वर्तमान सत्ता पर प्रहार हो रहा है। राजनीतिक रूप से समाज के भीतर घुसने का यह प्रयोग अपना चमत्कार लेकर आया है और बदलते दौर की यही कहानी अब चुनाव की जिरह और जमीन बदल सकती है। सामान्य राजनीति से परे राजनीतिक उद्गार बदलने का ऐसा सबब अगर 'आप' ढूंढ रही है, तो यह चुनौती कांग्रेस की भी है कि वह अपने मंथन में माथा टेकने के बजाय विपक्ष की जमीन पर प्रासंगिक दिखाई दे। सरकार विरोधी गुस्से को अगर 'आप' भांप रही है, तो इन राहों पर चुनाव जीतने की इच्छा शक्ति भी दिखाई देती है। आम आदमी पार्टी खुद को मुकाबले के काबिल करने के प्रयास में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की दो रैलियां करने के पश्चात अब उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के मार्फत जनता से संवाद की श्रृंखला शुरू करके, कुछ तो अलग कर रही है और अगर जनता भी अतीत की पारंपरिक राजनीति से हटकर अलग चलने की कोशिश करे, तो कांग्रेस को ही भारी हानि होगी।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली

Rani Sahu

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