सम्पादकीय

शिक्षा की उड़ान

Neha Dani
21 April 2022 1:49 AM GMT
शिक्षा की उड़ान
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फिर उच्च शिक्षण संस्थानों के सामने जो विशेषज्ञों की कमी है, उसमें विदेशी विशेषज्ञों की मदद भी मिल सकेगी।

काफी समय से उच्च शिक्षण संस्थानों में बेहतरी और कौशल विकास संबंधी नए पाठ्यक्रमों को जोड़ने की सिफारिश की जाती रही है। मगर धन की कमी आदि के चलते इसके लिए संसाधन जुटाना संस्थानों के सामने एक बड़ी चुनौती रही है। हालांकि इस समस्या से पार पाने के लिए विश्वविद्यालयों और सरकारी शैक्षणिक संस्थानों ने अपने शुल्क आदि में बढ़ोतरी की, स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रमों की शुरुआत की, मगर पढ़ाई-लिखाई के लिए अपेक्षित संसाधन जुटाना फिर भी मुश्किल बना हुआ है।

इसके अलावा संस्थानों का निरंतर मूल्यांकन करने की प्रणाली विकसित की गई, ताकि उनमें परस्पर प्रतियोगिता का वातावरण बने और वे अपने यहां शैक्षणिक स्तर में सुधार का प्रयास कर सकें। पर यह तरीका भी बहुत कारगर साबित नहीं हो रहा। ऐसे में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने विदेशी विद्यालयों के सहयोग से संयुक्त या दोहरी डिग्री हासिल करने की मान्यता देकर इस दिशा में एक सकारात्मक कदम उठाया है। यानी अब विद्यार्थी एक साथ दो डिग्रियां हासिल कर सकेंगे। नैक यानी राष्ट्रीय मूल्यांकन प्रत्यायन परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त कोई भी भारतीय शिक्षण संस्थान 3.01 न्यूनतम अंक के साथ एक हजार संस्थानों में से किसी भी विदेशी संस्थान का सहयोग कर या प्राप्त कर सकता है। इसके लिए उन्हें यूजीसी से इजाजत भी नहीं लेनी होगी।
इस फैसले का लाभ यह होगा कि भारतीय शिक्षण संस्थान विदेशी संस्थानों के साथ तालमेल करके कौशल विकास संबंधी नए पाठ्यक्रम शुरू कर सकेंगे। इस तरह विद्यार्थी किसी विदेशी संस्थान में दाखिला लेने के बाद भी भारतीय संस्थान में शिक्षण का लाभ ले सकता है। इससे उनके धन की काफी बचत होगी। भविष्य में अगर रूस-यूक्रेन युद्ध जैसी कहीं कोई समस्या पैदा होती है, जिससे दूसरे देशों में पढ़ रहे विद्यार्थियों के सामने बीच में पढ़ाई छूटने का संकट पैदा होता है, तो वह इससे दूर हो सकता है, क्योंकि वह अपने देश के संबद्ध शिक्षण संस्थान से उसे पूरा कर सकता है। फिर उच्च शिक्षण संस्थानों के सामने जो विशेषज्ञों की कमी है, उसमें विदेशी विशेषज्ञों की मदद भी मिल सकेगी।

सोर्स: जनसत्ता

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