सम्पादकीय

किसी भी अर्थव्यवस्था को हमेशा आगे ले जाती है शिक्षा; उसके स्वरूप में थोड़ा बदलाव जरूरी

Gulabi
2 Feb 2022 8:20 AM GMT
किसी भी अर्थव्यवस्था को हमेशा आगे ले जाती है शिक्षा; उसके स्वरूप में थोड़ा बदलाव जरूरी
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मुझे मिलने वाले विभिन्न जवाबों के बीच चंद महीनों पहले एक लड़के की बात ने चौंका दिया
एन. रघुरामन का कॉलम:
केंद्रीय बजट 2022 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शैक्षणिक संस्थानों द्वारा प्रगतिशील व समावेशी दृष्टिकोण अपनाकर शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने की जरूरत पर प्रकाश डाला। मुझे भी ऐसा ही लगता है। मैं अपने निजी अनुभवों के साथ अपनी बात रखता हूं। मुंबई में उन दिनों मैं टैक्सी में बैठते ही पूछा करता कि 'बिजनेस कैसा चल रहा है।'
जब तक मैं गंतव्य तक पहुंचता, तब तक शहर के कमजोर वर्ग के बारे में एक अनुमान लग जाता, साथ ही उस दिन काम करने के लिए स्टोरी आइडिया भी मिल जाता, जो कि मुझे रोज अखबार में देनी होती थी, जहां मैं काम कर रहा था। इन दिनों, देश के विभिन्न हिस्सों से गुजरते हुए मैं जब भी बच्चों को खेलते-घूमते देखता हूं, तो गाड़ी रोककर पूछता हूं 'पढ़ाई कैसी चल रही है?'
मुझे मिलने वाले विभिन्न जवाबों के बीच चंद महीनों पहले एक लड़के की बात ने चौंका दिया, उत्तरभारत के आंचलिक इलाके में वह कूड़े से सिगरेट बट्स इकट्ठे कर रहा था। उसने कहा, 'मैं कचरे को ऐसे उत्पाद में बदलना सीख रहा हूं, जिसे बेच सकूं।' स्कूल नहीं जाने वाले उस लड़के से हुई बातचीत ने मुझे सिगरेट बट्स की दुनिया से रूबरू कराया। अनुमान है कि दुनियाभर में एक साल में 4.5 ट्रिलियन सिगरेट बट्स कूड़े में जाते हैं।
प्राकृतिक रूप से नष्ट होने में उन्हें कम से कम 10-12 साल लगते हैं, इसलिए ये न सिर्फ भारत में बल्कि विश्व में बड़ा पर्यावरण मुद्दा है। भारत में इन बट्स को जिम्मेदारी से अलग करने का कोई तरीका या प्रक्रिया नहीं और अधिकांश समय लोग सड़क पर फेंककर भूल जाते हैं। हालांकि नोएडा के एक स्टार्टअप के पास इसका समाधान है ताकि सिगरेट बट्स अच्छे इस्तेमाल में आएंं।
2016 में शुरू हुए और 2018 में कामकाज बढ़ाने के साथ परिवर्तित नाम 'कोड एफर्ट प्राइवेट लिमिटेड' के पीछे दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातक नमन गुप्ता का दिमाग है, जो कि सिगरेट के इस्तेमाल के बाद बच गई हर चीज़ को उपयोग के लायक उत्पादों जैसे सॉफ्ट टॉयज़, कुशन और यहां तक कि मच्छर मारक में बदल देते हैं। जाहिर तौर पर दोस्तों के साथ पूरी रात पार्टी करने के बाद नमन ने देखा कि कमरे में कई बट्स जमा हो गए हैं और वह जानने को उत्सुक था कि रेगुलर डस्टबिन में उनका क्या होता है।
उसने महसूस किया कि सिगरेट फिल्टर्स पॉलीमर, सेल्युलोस एसीटेट से बने हैं, जो बिल्कुल प्लास्टिक जैसे हैं, इसलिए पर्यावरण के लिए घातक हैं। बाद में नमन ने एक बिल्कुल अलग रासायनिक संरचना के साथ इनके निपटान का तरीका खोजा, ताकि उन्हें रोजमर्रा के उत्पाद की उपयोगी सामग्री में बदल सके। उन्होंने ऐसे बट्स इकट्ठा करने के लिए सड़क किनारे के दुकानदार, पान गुमठी के बाहर और कई कॉर्पोरेट जगहों पर डस्टबिन लगाना शुरू की, जो सिगरेट वेस्ट इकट्‌ठा करके उन्हें भेजते हैं।
देश के कई जिलों में काम कर रही कंपनी 250 रु. किलो में बट्स खरीदती है। पता चला कि बार-बार फैक्ट्री जाने से उसमें कचरे से बिजनेस करने के दूसरे तरीकों की उत्सुकता बढ़ा दी। वह स्पष्ट था कि कच्चे माल पर निवेश नहीं करेगा और कचरे से ही बिजनेस आइडिया निकालेगा। यही वजह रही कि पांच साल में दो बार फेल होने के बावजूद वह पढ़ाई जारी रखना चाहता था क्योंकि उसके शिक्षक उसका पूरा समर्थन कर रहे थे।
जैसे किसी का तापमान बार-बार जांचने से ही बुखार ठीक नहीं हो जाता, इसी तरह इन जैसे छात्रों को साल दर साल सिर्फ अकादमिक स्तर पर टेस्ट करने से वह जिंदगी सफल बनाने वाले कौशल नहीं सीखते। फंडा यह है शिक्षा निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था का इंजिन है, पर उस क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए शायद शिक्षा को अपने स्वरूप में थोड़ा बदलाव लाना होगा।
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