सम्पादकीय

संपादकीय: यह तो नाइंसाफी है!

Gulabi
25 Aug 2021 12:13 PM GMT
संपादकीय: यह तो नाइंसाफी है!
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सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका पर सुनवाई के क्रम में उत्तर प्रदेश की अदालतों में लंबित पड़े मामलों की जो तस्वीर उभरी है

सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका पर सुनवाई के क्रम में उत्तर प्रदेश की अदालतों में लंबित पड़े मामलों की जो तस्वीर उभरी है, उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। इससे पता चलता है कि यूपी में किसी निचली अदालत द्वारा किसी आपराधिक मामले में दोषी करार दिया गया कोई व्यक्ति अगर हाईकोर्ट में अपील करता है, तो उसे इंसाफ के लिए औसतन 35 साल इंतजार करना पड़ता है। यानी अगर किसी पर गंभीर धाराओं के अपराध दर्ज हैं, जिनमें जमानत मिलना मुश्किल होता है तो बहुत संभव है उसे फैसला आने से पहले बरसों बरस जेल में ही बिताना पड़ जाए।

यह मामला दरअसल सुप्रीम कोर्ट पास कई याचिकाओं के रूप में आया, जिनमें अदालत से गुहार लगाई गई थी कि वह दखल देकर बरसों से (कई मामलों में तो 14 बरस से भी ज्यादा) जेल में पड़े सुनवाई का इंतजार कर रहे कैदियों को जमानत देने की राह खोले। सुप्रीम कोर्ट के सामने रखे गए तथ्यों से साफ होता है कि हाईकोर्ट की इलाहाबाद और लखनऊ बेंचों के पास इस समय 1,83000 आपराधिक अपीलें लंबित हैं। पिछले पांच वर्षों में कोर्ट ने 16,279 आपराधिक अपीलें निपटाई हैं, लेकिन इसी अवधि में 41,151 नए अपीलीय मामले आ गए हैं।
आपराधिक अपीलीय मामले निपटाने की कोर्ट की रफ्तार 18 फीसदी बताई जाती है। इस मामले में भले बात सिर्फ उत्तर प्रदेश की अदालतों की हो रही हो, देश के अन्य राज्यों में भी कोई बेहतर हालात नहीं हैं। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक देश भर की जिला अदालतों और निचली अदालतों में 3.9 करोड़ मामले लंबित हैं। हाईकोर्टों में 58.5 लाख और सुप्रीम कोर्ट में 69000 मामले लंबित हैं। इसकी एक बड़ी वजह जजों की कमी भी है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की ही बात करें तो वहां जजों के कुल 67 पद खाली पड़े हुए हैं। ऐसा ही अन्य कोर्टों में भी है।
इन पदों को जल्द से जल्द भरने का इंतजाम भी होना चाहिए, शीघ्र सुनवाई और जल्द फैसले सुनिश्चित करने से जुड़ी अन्य सिफारिशों पर अमल के प्रयास भी साथ-साथ चलने चाहिए, लेकिन इन सबसे पहले जेलों में अपनी सुनवाई का इंतजार कर रहे कैदियों को तत्काल राहत देने की व्यवस्था होनी चाहिए। यूपी सरकार की ओर से इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में कहा गया है कि जघन्य अपराध और आदतन अपराध से जुड़े मामलों को छोड़कर आजीवन कैद के मामले में दस साल और अन्य मामलों में तय सजा की आधी अवधि जेल में गुजार चुके कैदियों को जमानत दी जा सकती है। इस सुझाव पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। यह भी जरूरी है कि राहत देने का ऐसा कोई फॉर्म्युला सिर्फ यूपी तक सीमित न रहे। चूंकि समस्या पूरे देश की है, इसलिए इलाज के दायरे में भी पूरे देश को शामिल किया जाना चाहिए।
क्रेडिट बाय NBT
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