सम्पादकीय

Editorial: शिक्षा से वंचित शरणार्थी बच्चे

Gulabi Jagat
24 Dec 2024 10:07 AM GMT
Editorial: शिक्षा से वंचित शरणार्थी बच्चे
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Vijay Garg: हाल में जारी 'इंटरनेशनल रेस्क्यू कमेटी की एक रपट के मुताबिक फरवरी, 2022 से यूक्रेन - रूस युद्ध शुरू होने के बाद से यूक्रेन के लगभग दो- तिहाई बच्चों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है। एक अनुमान के अनुसार, चालीस लाख बच्चों को मानवीय सहायता की आवश्यकता है। तेरह सौ से अधिक स्कूल नष्ट हो गए हैं। इसी तरह के हालात रूस के कुछ क्षेत्रों में भी दिखाई देते हैं, जो इस बात की तस्दीक करते हैं कि युद्ध के बाद दोनों देशों में बचपन संकट में है। एक अनुमान के अनुसार, संकटों से प्रभावित दुनिया में करीब 22 करोड़ 40 लाख बच्चों को शैक्षिक सहायता की आवश्यकता है। जो लोग सीखना जारी रख सकते हैं, उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। दुनिया के आधे से अधिक शरणार्थी बच्चे 18 साल हैं और बहुत मुश्किल हालात में जी रहे हैं। इनमें से अधिकतर के घर लौटने की उम्मीद कम है। । कई संकटों से जूझ रही दुनिया में शरणार्थी बच्चों की शिक्षा का मुद्दा बहुत बड़ा है।
इसी तरह, 2023 6 में जारी एक वैश्विक अध्ययन पाया गया कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित बच्चों की संख्या बढ़ रही है। अध्ययन यह भी बताता है कि समस्या केवल पहुंच की नहीं, बल्कि गुणवत्ता की भी है। आधे से अधिक प्रभावित बच्चे शिक्षा में न्यूनतम दक्षता भी हासिल नहीं कर पा रहे हैं। इस अध्ययन में सभी के लिए समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात कही गई है। अध्ययन में इस बात पर प्रक डाला गया है कि संकट में बेहतर सीखने के परिणामों को सुनिश्चित करने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा महत्त्वपूर्ण है।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजंसी (यूएनएचसीआर) की एक रपट में कहा गया है कि स्कूल जाने योग्य करीब सत्तर लाख शरणार्थी बच्चों में से तीस लाख सत्तर हजार बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। 'स्टेपिंग अपः रिफ्यूजी एजुकेशन इन क्राइसिस' नामक रपट से पता चलता है कि जैसे-जैसे शरणार्थी बच्चे बड़े होते हैं, उन्हें शिक्षा तक पहुंचने से रोकने वाली बाधाओं को दूर करना कठिन होता जाता है। केवल 63 फीसद शरणार्थी बच्चे प्राथमिक विद्यालय जाते हैं। दुनिया भर में फीसद किशोरों को माध्यमिक शिक्षा मिलती है, जबकि केवल 24 फीसद शरणार्थियों को यह अवसर मिलता है। एजेंसी का कहना है कि वह जगह है, 6, जहां शरणार्थियों को दूसरा अवसर मिलता है। शरणार्थियों को उनके भविष्य में के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान विकसित करने का अवसर न देकर उन्हें विफल किया जा है। भले शरणार्थी किशोर बाधाओं पार करके माध्यमिक विद्यालय तक पहुंच जाते हैं, लेकिन केवल तीन फीसद को किसी प्रकार की उच्च शिक्षा मिल पाती है। यह वैश्विक आंकड़ा 37 फीसद के मुकाबले बहुत कम है। दुनिया भर के शरणार्थी बच्चों की शिक्षा का मुद्दा चिंता का विषय है।
वहीं संयुक्त राष्ट्र की एक नई रपट में चौंकाने वाले आंकड़े दर्शाते हैं कि संकट प्रभावित स्कूली उम्र के ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ रही है, जिन्हें
शैक्षणिक सहयोग की आवश्यकता है। इस रपट के अनुसार, जरूरतमंद बच्चों की संख्या वर्ष 2016 में साढ़े सात करोड़ से बढ़ कर अब 22 करोड़ 20 लाख तक पहुंच गई है। रपट के मुताबिक, आपात स्थिति और लंबे समय से चले आ रहे संकट प्रभावित इलाकों में शिक्षा के लिए इन 22 करोड़ से अधिक लड़के-लड़कियों में सात करोड़ 82 लाख बच्चे विद्यालय से बाहर हैं। लगभग 12 करोड़ बच्चे विद्यालय में उपस्थित होने पर भी पढ़ने में न्यूनतम कौशल हासिल नहीं कर पा रहे हैं। संकटों से जूझ रहे हर दस में से केवल एक बच्चा प्राथमिक या माध्यमिक स्तर पर वास्तव में निपुणता मानकों पर खरा उतर पा रहा है।
रपट अनुसार, स्कूल से वंचित होने वाले 84 फीसद बच्चे लंबे समय से जारी संकट प्रभावित इलाकों में रह रहे हैं। इनमें अफगानिस्तान, काँगो, इथियोपिया, माली, नाइजीरिया, पाकिस्तान, सोमालिया, दक्षिण सूडान और यमन समेत अन्य देश हैं। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि जरूरतें कभी भी इतनी बड़ी और इतनी तात्कालिक नहीं रही हैं। कोविड कारण निर्धनतम परिवारों में शिक्षा का नुकसान अधिक हुआ है। साथ ही वे समुदाय भी प्रभावित हुए हैं, जो पहले से ही शिक्षा में पिछड़ रहे थे। इन दोनों श्रेणियों में आमतौर पर संकट प्रभावित इलाकों में रहने वाले बच्चे आते हैं। संकट प्रभावित बच्चों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा हर हाल में करनी होगी। इनमें न्यायोचित, समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अधिकार शामिल है।
'एजुकेशन कैन नाट वेट' (ईसीडब्लू) की रपट कहती है कि संकटग्रस्त देशों में केवल ढाई करोड़ बच्चे स्कूल जा रहे हैं और न्यूनतम् दक्षता स्तर प्राप्त कर रहे हैं। इन देशों में जबरन विस्थापित आबादी में स्कूल न जाने वाले बच्चों की दर चिंताजनक रूप से उच्च बनी हुई हैं, जो स्कूली आयु वर्ग के बच्चों के लिए लगभग 58 फीसद है। लगभग डेढ़ करोड़ बच्चों को कार्यात्मक कठिनाइयां हैं और वे स्कूल नहीं जा रहे हैं। इनमें से लगभग एक करोड़ दस लाख तो । उच्च तीव्रता वाले संकटों में केंद्रित हैं। इन । इन क्षेत्रों माध्यमिक शिक्षा तक तक पहुंच अपर्याप्त है, निम्न माध्यमिक विद्यालय आयु वर्ग के लगभग एक तिहाई बच्चे स्कूल से बाहर हैं। उच्च माध्यमिक विद्यालय आयु वर्ग के लगभग आधे बच्चे शिक्षा तक पहुंच पाने में असमर्थ हैं। एक एक अनुमान नुमान के अनुसार, तीन वर्ष की आयु लेकर उच्चतर माध्यमिक शिक्षा पूरी करने की अपेक्षित अवधि के तक कम से कम ढाई करोड़ संकटग्रस्त बच्चे अंतर-एजेंसी योजनाओं से बाहर रह हैं, जो कुल वैश्विक संख्या का लगभग 9.4 फीसद है। उप- सहारा अफ्रीका के संकटग्रस्त देशों तुलनात्मक विश्लेषण से चलता है कि सात से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए सीखने की गति बार-बार होने वाली प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित देशों की तुलना में औसतन लगभग छह गुना धीमी हो सकती है।
असल में, संकट के समय बच्चों की शिक्षा को सबसे ज्यादा प्रभावित किया जाता सबसे आखिर में बहाल किया जाता है। ऐसे समय में बच्चों की शिक्षा और उनका कल्याण बेहद जरूरी है। प्रभावित बच्चों को शिक्षा सहायता देनी होगी। शिक्षा प्रणालियों को ज्यादा संसाधनों की जरूरत होती है, लेकिन उन्हें मानवीय सहायता का तीन फीसद से भी कम हिस्सा मिलता है। इसे बढ़ाना होगा। शिक्षा प्रणालियों में शिक्षण और कर्मचारियों की कमी को पूरा करना होगा। संकट के समय बच्चों को स्कूल से सुरक्षा मिलती ही उन्हें जीवनरक्षक भोजन, पानी, स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छता की सुविधा भी मिलती है। इस दौरान बच्चों को मनोवैज्ञानिक सहायता भी देनी होगी। हमें इन पहलुओं पर गंभीरता से काम करना होगा। किसी भी बच्चे का बचपन संकट में आने पर उसे बाहर निकालना ही होगा, तभी बचपन बचेगा।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
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