सम्पादकीय

संपादकीय: प्रदूषण की आग

Neha Dani
26 Nov 2020 2:53 AM GMT
संपादकीय: प्रदूषण की आग
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दिल्ली में किसी छोटे पहाड़ की तरह दिखते कचरे के बड़े ढेर कोई नई समस्या नहीं हैं।

दिल्ली में किसी छोटे पहाड़ की तरह दिखते कचरे के बड़े ढेर कोई नई समस्या नहीं हैं। बदलते मौसम में अलग-अलग वजहों से ये कचरे के ढेर आसपास के इलाकों में प्रदूषण फैलाते हैं। साल-दर-साल यह समस्या गहराती गई है, लेकिन इसे लेकर अब तक कोई ठोस समाधान सामने नहीं आ सका है। हालांकि कई बार इन कचरे के ढेरों में आग लगने से लेकर ढह जाने की वजह से बड़े हादसे भी हो चुके हैं।

तब सरकार की ओर से इस पर चिंता जताई जाती है, समस्या का समाधान करने के आश्वासन दिए जाते हैं, लेकिन फिर कुछ दिन बाद हालात पहले की तरह ही सहज भाव से चलने लगते हैं। मसलन, मंगलवार की रात पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर में लैंडफिल साइट यानी कूड़े के ढेर में एक बार फिर आग लग गई और उससे न केवल आसपास के इलाकों के सामने एक बड़े हादसे का खतरा पैदा हुआ, बल्कि लगातार बढ़ते धुएं से समूचा वातावरण प्रदूषित हो गया। आग की तीव्रता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उसे बुझाने पहुंची दमकल की कई गाड़ियां एक जगह बुझा रही थीं और आग दूसरी जगहों पर फैल जा रही थी।

गौरतलब है कि दिल्ली में गाजीपुर, ओखला और भलस्वा सहित कुछ जगहों पर शहर का अवशिष्ट डालने की जगहें निर्धारित की गई है। किसी भी कचरे के ढेर से प्रदूषण होना आम बात है। सवाल है कि अगर सरकार ने अवशिष्ट डालने की जगहें निर्धारित की हैं, तो उसके प्रदूषित होने या आग लगने जैसी स्थितियों का सामना करने के लिए क्या उपाय किए गए हैं! निश्चित रूप से दस्तावेजों में इससे संबंधित नियम-कायदे तय किए गए होंगे।

लेकिन इस पर कितना अमल होता है, यह ऐसी जगहों पर अक्सर होने वाली दुर्घटनाओं से पता चलता है। गाजीपुर में कचरे के जिस ढेर में आग लगी, उसमें तीन साल पहले भी ऐसा ही हुआ था, जिस पर काबू पाने में दमकल विभाग को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। उस साल उस ढेर में अचानक ही एक बड़ा धमाका भी हुआ था, जिससे हजारों टन कचरा व्यस्त सड़क की तरफ ढह गया। उसकी चपेट में सड़क पर वहां से गुजर रही पांच कारें नहर में गिर गई और दो लोगों की मौत हो गई। तब कचरे के इस पहाड़ को कम करने या इस निर्धारित जगह को किसी अन्य जगह पर स्थानांतरित करने की भी मांग उठी थी।

किसी ऐसी घटना से सबक लेकर उससे बचाव के इंतजाम करना सरकार की प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए। लेकिन गाजीपुर में तीन साल पहले आग लगने, विस्फोट से पहाड़ ढह जाने से हुए हादसे के बावजूद इससे बचने के उपाय सुनिश्चित करना जरूरी नहीं समझा गया। राजधानी दिल्ली में अमूमन हर साल इस मौसम में प्रदूषण से निपटना एक बड़ी चुनौती होती है।

प्रदूषित हवा और धुएं के गुबार से जब हालात बेलगाम होने लगते हैं तब सरकार और संबंधित महकमे अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने के लिए कभी पड़ोसी राज्यों में पराली जलाए जाने तो कभी कोई अन्य वजह बता कर समस्या को भ्रमित करने की कोशिश करती हैं। लेकिन शायद ही कभी ऐसा होता है जब ऐसा लगे कि सरकार वास्तव में प्रदूषण की समस्या को खत्म करने या इस पर काबू पाने की ईमानदारी से कोशिश कर रही है।

खासतौर पर मौजूदा महामारी के दौर में जब प्रदूषण से हर हाल में बचना सभी स्तर पर एक अनिवार्य काम बन गया है, उसमें कचरे के ढेरों में आग लगना क्या दर्शाता है? क्या केवल प्रदूषण के विरुद्ध युद्ध के नारे से इस समस्या से निजात पाई जा सकती है?

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