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Editorial: पराली का निस्तारण एक गंभीर समस्या है। पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन विडंबना यह है कि आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। इस बारे में दावे भले बराबर किए जाएं, लेकिन हकीकत में यह समस्या हर साल और विकराल होती जा रही है। दुखदई बात यह है कि सरकारें इस बाबत तब होश में आती हैं, जब इस समस्या के चलते वायु प्रदूषण में बेतहाशा बढ़ोतरी से लोगों का संस लेना दूभर हो जाता है। देखा जाए तो पराली जलाने से हर साल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, उत्तर प्रदेश का पश्चिमी हिस्सा, हरियाणा और पंजाब अक्टूबर से लेकर दिसंबर तक भयावह वायु प्रदूषण की चपेट में रहता है। ये महीने यहां के लोगों के लिए मुसीबत बनकर आते हैं, क्योंकि इन राज्यों की सरकारों द्वारा इसे रोकने की दिशा में किए गए सारे प्रयास, अभियान और किसानों को जागरूक करने के सभी कदम बेमानी साबित हो जाते हैं। दुष्परिणामस्वरूप वायु प्रदूषण की गंभीरता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है और सरकारें इसके समने बेबस नजर आती हैं। यह सब तब होता है, जब पराली जलाने पर पाबंद है।
सुप्रीम कोर्ट भी इस बाबत गंभीर चिंता जाहिर कर चुका हैं कि यह कैसा प्रबंधन है कि प्रतिबंध के बावजूद पराली जलाई जा रही है। इससे यह भी साबित होता है कि प्रदूषण की रोकथाम के वे हवा-हवाई हैं। जहरीली हवा में सांस राजधानी में बढ़ते वायु प्रदूषण के चलते यहाँ के लोग जहरीली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर हैं। दिल्ली में इस कारण बड़ी संख्या में लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। नतीजन पहले से ही अस्थमा से परेशान लोगों के लिए बढ़ता वायु प्रदूषण जानलेवा बन जाता है। ऐसे हालात में अस्थमा के रोगियों का बढ़ना खतरनाक संकेत है। वैसे भी मौसम में आ रहे बदलाव के चलते प्रदूषण बढ़ रहा है। पंजाब में अभी तक पराली जलाने की घटनाओं में नौ गुना बढ़ोतरी दर्ज की गई है। माना जा रहा है कि पंजाब में इस बार धान की कटाई के बाद 200 लाख टन पराली बचेगी, जबकि राज्य का लक्ष्य लगभग 20 लाख टन पराली के प्रबंधन का ही है। जाहिर है, शेष पराली प्रबंधन के अभाव में जलाई हो जाएगी। वैसे पराली निस्तारण के लिए पंजाब सरकार ने 58 कंप्रैस्ड बायें गैस प्लांट लगाने की मंजूरी तो दे दी है, लेकिन उसके पास पराली का भंडारण करने के लिए जमीन ही नहीं है।
पर्यावरण स्वच्छता पर्यावरण को स्वच्छ रखना हम सबका दायित्व है। स्वच्छ पर्यावरण सुनिश्चित करना केंद्र, राज्य समाज और लोगों की संयुक्त जिम्मेदारी है। इसे सभी को ईमानदारी से निबाहना चाहिए। लेकिन इसमें हम विफल रहे हैं। आवश्यकता इस बात की है कि खास तौर पर जब सर्दियों में आसमान धुंध और विषाक्त गैस से घिरा होता है, केवल उस समय ही नहीं, बल्कि पूरे साल के लिए वायु प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए एक समन्वित कार्य योजना बनाई जाए। पूरे देश में वायु प्रदूषण की स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। बीते बरस दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया था कि पड़ोसी राज्यों के किसानों द्वारा पराली जलाए जाने से हर साल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में इस दौरान वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। इस पर लगाम लगाई जानी चाहिए और पराली से कंपोस्ट खाद बनाए जाने पर जोर दिया जाना चाहिए। ऐसा करने से दोहरा लाभ होगा। खाद बनाने से बढ़ते प्रदूषण पर लगाम लगेगी और दूसरी और किसान इस खाद का उपयोग कर बेहतर और रसायन विहीन पैदावार हासिल कर सकेंगे।
अन्य कारकों की भूमिका वायु प्रदूषण में पराली की अहम भूमिका है, लेकिन सड़कों की धूल एवं वहां फैले कूड़े व बायोमास का भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान है। इससे वातावरण में जहर के काकटेल का निर्माण होता है। वातावरण में सबसे अधिक घातक अजैविक एयरोसेल का निर्माण, बिजलीघरों, उद्योगों, ट्रैफिक से निकलने वाली सल्फ्यूरिक एसिड और नाइट्रोजन आक्साइड तथा कृषि कार्य से पैदा होने वाले अमोनिया के मेल से होता है। लगभग 23 प्रतिशत वायु प्रदूषण की वजह यह काकटेल ही है। दिल्ली में बाय प्रदूषण का जायजा लें तो पता चलता है कि धुंध का 20 प्रतिशत उत्सर्जन दिल्ली के वाहनों से, 60 प्रतिशत दिल्ली के बाहर के वाहनों से तथा 20 प्रतिशत के आसपास बायेमास जलाने से होता है। इस संदर्भ में किए गए अनेक हालिया शोध अध्ययनों में यह दर्शाने का प्रयास किया गया है कि वायु प्रदूषण की समस्या किसी युद्ध की विभीषिका की आशंका से कम नहीं है इसलिए विकास का दावा उसी स्थिति में कारगर हो सकता है, जब वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान हम अपने देश की वर्तमान परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए निकालने का प्रयास करें।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
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Gulabi Jagat
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