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जब किसी मां की बांहों में उसके नवजात को दिया जाता है तो उसकी खुशी का पारावार नहीं रहता
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
जब किसी मां की बांहों में उसके नवजात को दिया जाता है तो उसकी खुशी का पारावार नहीं रहता। हर मां को इस खुशी को पाने का अधिकार है। लेकिन देश में कई गर्भवती महिलाओं के जीवन में यह पल कभी नहीं आता। प्रसव का क्षण उनके लिए प्राय: भयावह होता है। मातृ मृत्यु को एक प्रमुख स्वास्थ्य संकेतक माना जाता है। दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने के बाद भी स्वास्थ्य मानकों जैसे मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर के मामले में भारत का रिकार्ड अच्छा नहीं है। मां और बच्चे दोनों की खराब सेहत के लिए पोषण की कमी, संक्रमण, पिछली डिलीवरी और असुरक्षित गर्भपात में जटिलताएं होना शामिल है।
भारत में जिला स्तर पर मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) के पहले अध्ययन में पता चला है कि भारत के 640 जिलों में से 448 में मातृ मृत्यु दर संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के तहत निर्धारित लक्ष्य से अधिक है। सर्वाधिक एमएमआर अरुणाचल प्रदेश (284) और सबसे कम महाराष्ट्र (40) में है। मातृ मृत्यु के मामले में विश्व में 15 प्रतिशत माताओं की मौत भारत में हुई। सतत विकास लक्ष्यों के तहत 2030 के लिए एमएमआर 70 निर्धारित किया गया है। भारत का एमएमआर अभी 113 है। मातृ मृत्यु दर प्रति एक लाख जन्म पर प्रजनन या गर्भावस्था की जटिलताओं के चलते होने वाली माताओं की मृत्यु को कहा जाता है। मातृ मृत्यु के कारणों की जानकारी सबको है और काफी हद तक इनकी रोकथाम और उपचार किया जा सकता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार सभी महिलाओं को गर्भावस्था में प्रसव पूर्व देखभाल, प्रसव के दौरान कुशल देखभाल और प्रसव के बाद के कई सप्ताह तक देखभाल और सहायता तक पहुंच की आवश्यकता होती है। सभी प्रसवों में कुशल स्वास्थ्य पेशेवरों द्वारा सहायता मिलनी चाहिए, क्योंकि समय पर प्रबंधन और उपचार मिलना मां और बच्चे, दोनों के लिए जीवन-मृत्यु का अंतर हो सकता है। कई शोध में सामने आ चुका है कि जल्दी-जल्दी बच्चे पैदा करने से मां के स्वास्थ्य पर बुरा असर होता है। इसके चलते पैदा होने वाली जटिलताएं मां और शिशु, दोनों की मौत का कारण बनती हैं।
एक ओर भारत में हर साल अनुमानित 2.6 करोड़ बच्चों का जन्म होता है, वहीं हर एक मिनट में एक बच्चे की मौत भी हो जाती है। जानकारी का अभाव, नीतियों और संसाधनों की उपलब्धता न होने के कारण भी मां और शिशु की मृत्यु हो जाती है। मातृ स्वास्थ्य में सुधार लाने और महिलाओं का जीवन बचाने का वैश्विक लक्ष्य प्राप्त करने के लिए हमें उन लोगों तक पहुंचने के लिए और अधिक प्रयास करना होगा, जिन्हें अधिक जोखिम है। ग्रामीण क्षेत्रों, शहरी झुग्गी-झोपड़ियों और गरीब घरों की महिलाएं, किशोर माताएं और अल्पसंख्यक, आदिवासी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समूहों की महिलाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करना होगा। प्रसवपूर्व और प्रसव के दौरान देखभाल की गुणवत्ता में सुधार करने और यह सुनिश्चित करने पर ध्यान होना चाहिए कि प्रत्येक महिला, सुरक्षित हाथों से, सम्मान और गरिमा के साथ एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सके।
Rani Sahu
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