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Editorial: फ्रांस की राजधानी पेरिस में 53वें ओलंपिक खेलों का आगाज हो गया। ‘प्रेम की नगरी’ में ये खेल 11 अगस्त तक खेले जाएंगे और समन्वय, सौहार्द और स्नेह के असंख्य उदाहरण पेश किए जा सकते हैं। दुनिया के 206 देशों के 10,714 खिलाड़ी ओलंपिक में शिरकत करेंगे। उनमें से भारत के 117 खिलाड़ी 16 खेलों और 69 इवेंट्स में पदक और राष्ट्र के सम्मान के लिए जूझेंगे। करीब 100 साल पहले 1924 में भी पेरिस में ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया था, जिसमें पहली बार भारतीय दल ने अधिकृत तौर पर भाग लिया था। भारत की पहली महिला खिलाड़ी ने भी उसी ओलंपिक में हिस्सा लिया था। इतिहास उसी को दोहरा रहा है, लेकिन आज भारत एक स्वतंत्र और संप्रभु देश है। विश्व की 5वीं बड़ी अर्थव्यवस्था है। खिलाडिय़ों के हुनर को तराशने और विश्वस्तरीय बनाने के मद्देनजर भारत ने खिलाडिय़ों पर 470 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। सबसे ज्यादा 96 करोड़ रुपए एथलेटिक्स पर खर्च किए गए हैं, लिहाजा पदकों की उम्मीदें भी देश कर रहा है। बैडमिंटन में दो बार ओलंपिक पदकवीर पीवी सिंधु और 5वीं बार ओलंपिक खेल रहे, 42 वर्षीय, टेबल टेनिस के दिग्गज खिलाड़ी शरथ कमल भारतीय खिलाड़ी दल के ध्वजवाहक बने। यह भी राष्ट्रीय सम्मान है। इस बार सबसे अधिक खिलाडिय़ों ने ओलंपिक की पात्रता हासिल की है, लिहाजा सबसे अधिक खिलाड़ी भेजे गए हैं। भारतीय दल में कई विश्व चैम्पियन खिलाड़ी हैं-नीरज चोपड़ा (भाला फेंक), निकहत जरीन (मुक्केबाजी), अंतिम पंघाल (कुश्ती) और मनु भाकर (निशानेबाजी) आदि। कुछ ऐसे खिलाड़ी भी हैं, जिन्होंने विश्व स्तर पर कीर्तिमान स्थापित किए हैं-सात्विक चिराग की जोड़ी, लक्ष्य सेन, सिंधु (सभी बैडमिंटन खिलाड़ी), विनेश फोगाट (कुश्ती), मीराबाई चानू (भारोत्तोलन) और पुरुष हॉकी टीम। काश! शतरंज और क्रिकेट भी ओलंपिक खेलों में शामिल होते, तो उनके खिलाड़ी भी विश्वस्तरीय श्रेणी में गिने जाते! भारत में खेल मंत्रालय का बजट 3442 करोड़ रुपए तय किया गया है।
यह देश के जीडीपी का मात्र 0.01 फीसदी से भी कम है। पश्चिम में कई विकसित देश खेलों पर 0.2 फीसदी से 0.6 फीसदी तक खर्च करते हैं। भारत में प्रति नागरिक औसतन 25 रुपए खेल पर खर्च किए जा रहे हैं। इसके बावजूद भारत की उम्मीद है कि इस बार उसके खिलाड़ी पदकों की दहाई पार करेंगे। 2004 में ब्राजील ने 10 पदक जीत कर अपना लक्ष्य हासिल किया था। भारत ने टोक्यो ओलंपिक में एक स्वर्ण पदक समेत 6 पदक जीते थे। देश के लिए वह महान उपलब्धि थी, क्योंकि अधिकतर खेल मुकाबलों में भारत पदकहीन ही रहता आया है। इस बार एथलेटिक्स, हॉकी, बैडमिंटन, कुश्ती, भारोत्तोलन, मुक्केबाजी, निशानेबाजी आदि खेलों में पदकीय जीत की उम्मीदें कर सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन खेलों के खिलाडिय़ों ने विश्व चैम्पियन टीमों और खिलाडिय़ों को भी मात दी है। दुर्भाग्य और विडंबना है कि टोक्यो ओलंपिक में हॉकी की जिस महिला टीम ने चौथा स्थान हासिल किया था, वह पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर पाई। यह खेल और प्रशिक्षण के हरेक स्तर की अयोग्यता है। भारोत्तोलन में कोई भी पुरुष खिलाड़ी ओलंपिक का पात्र नहीं समझा गया। महिला वर्ग में भी मीराबाई चानू अकेली ही दायित्व उठा रही है। उनके बाद कोई भी दूसरी महिला खिलाड़ी ओलंपिक के स्तर की नहीं है। जिम्नास्टिक्स में भारत का प्रतिनिधित्व शून्य है। तलवारबाजी में भवानी देवी का कोई भी उत्तराधिकारी नहीं है और पुरुष पहलवान भी एक रह गया है। यदि हमारे पास विश्वस्तरीय खिलाड़ी हैं, तो इन खेलों पर भी चिंतन-मनन करना पड़ेगा, जिनका ओलंपिक स्तर का एक भी खिलाड़ी 143 करोड़ की आबादी वाले देश में नहीं है। आज निशानेबाजी में 21 खिलाडिय़ों ने ओलंपिक की पात्रता हासिल की है। तीरंदाजी में भारत की पुरुष और महिला टीमें सीधा क्वार्टर फाइनल के लिए क्वालीफाई कर गई हैं। बेशक यह महत्वपूर्ण जीत है, लेकिन लक्ष्य अभी दूर है। सरकार को खेलों की विपन्नता वाले क्षेत्रों में प्रयास करने चाहिए। कई खेल ऐसे हैं, जो भारत में पारंपरिक नहीं रहे, ठोस विरासत भी नहीं है, लेकिन खिलाड़ी विश्वस्तरीय पैदा हो रहे हैं।
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Gulabi Jagat
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