सम्पादकीय

संपादकीय: GST राहत और आम आदमी

Gulabi
14 Jun 2021 6:30 AM GMT
संपादकीय: GST राहत और आम आदमी
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संपादकीय

वस्तु व सेवा कर परिषद (जीएसटी कौंसिल) ने कोरोना संक्रमण से लड़ने वाली दवाओं व चिकित्सा उपकरणों पर उत्पाद शुल्क कम करने का जो फैसला किया है उसका सशर्त समर्थन इसलिए किया जाना चाहिए आगामी अक्तूबर महीने में कोरोना की संभावित तीसरी लहर का मुकाबला करने के लिए कौंसिल इस कमी में और ज्यादा कमी करने के विकल्प खुले रखे। कौंसिल ने छह महीने से भी ज्यादा समय बाद विगत 28 मई को अपनी बैठक बुला कर कोरोना के उपचार में काम आने वाली दवाओं व उपकरणों पर चालू उत्पाद शुल्क दरों में परिवर्तन करने के लिए मेघालय के मुख्यमन्त्री श्री कोनार्ड संगमा के नेतृत्व में राज्यों के वित्त मन्त्रियों का एक सात सदस्यीय मन्त्रिमंडलीय समूह गठित किया था जिसने अपनी रिपोर्ट विगत 7 जून को वित्त मन्त्री निर्मला सीतारमन को कौंसिल की अध्यक्ष होने के नाते पेश कर दी थी। इस समूह ने जो भी सिफारिशें कीं उन्हें आंख मीच कर परिषद की कल हुई बैठक में स्वीकार कर लिया गया। बैठक में कांग्रेस व अन्य विराेधी दलों द्वारा शासित राज्यों के वित्त मंत्रियों ने इसका विरोध इसलिए किया क्योंकि वे सभी प्रकार की दवाओं व उपकरणों पर उत्पाद शुल्क पूरी तरह समाप्त किये जाने या इसे नाम मात्र का .1 प्रतिशत किये जाने की मांग कर रहे थे। उनकी यह मांग भी थी कि कोरोना वैक्सीन को पूरी तरह शुल्क मुक्त किया जाये।


परिषद ने विभिन्न दवाओं पर लागू उत्पाद व सेवा शुल्क को पांच प्रतिशत के स्तर पर लाने का फैसला किया है जिनमें हैंड सेनेटाइजर भी शामिल है। कोरोना काल में इसका सर्वाधिक उपयोग होता है। बैठक को लेकर सबसे पहले पंजाब के वित्त मन्त्री श्री मनप्रीत सिंह बादल ने आवाज उठाते हुए अप्रैल में कहा कि कौंसिल के विधान के अनुसार इसकी बैठक अधिकतम तीन महीने बाद बुला ली जानी चाहिए परन्तु छह माह बीत जाने पर भी बैठक नहीं बुलाई जा रही है। इसके बाद पुनः मई महीने के मध्य में उन्होंने मांग दोहराई, तब जाकर परिषद विगत 28 मई को बैठी और उसने उत्पाद शुल्क से सम्बन्धित मांगों पर मन्त्रिमंडलीय समूह गठित कर दिया। उत्पाद शुल्क का विषय कोई आर्थिक क्षेत्र का पेचीदा सवाल नहीं है बल्कि आम जनता से सीधा जुड़ा हुआ मुद्दा है। अतः फैसला किया गया कि एम्बुलेंस पर सेवा कर की सीमा 28 प्रतिशत से घटा कर 12 प्रतिशत की जायेगी। पूरे देश ने अपनी आंखों से कोरोना के भीषण काल में वह नंगा नाच देखा है कि एम्बुलेंसों के मालिक गंभीर मरीजों को अस्पताल तक ले जाने और शवों को अन्तिम स्थल तक ले जाने के लिए किस प्रकार संवेदनहीनता की हदें पार करते हुए हजारों रुपए की मनमानी फीस वसूल रहे थे। चर्चा यही थी कि उस दौरान एक नया एम्बुलेंस माफिया खड़ा हो गया था जो लोगों के गम को मुनाफे में भुना रहा था।

इसी प्रकार रेमडेसिविर इंजैक्शन की काला बाजारी जम कर हो रही थी और तीन हजार रुपए की चीज पचास-पचास हजार रुपए तक में बिक रही थी। राजधानी दिल्ली के बाजार से कोरोना उपचार की प्राथमिक दवाएं तक गायब हो गई थीं। परिषद की भूमिका एेसे समय में बहुत महत्वपूर्ण थी। खैर 'देर आयद-दुरुस्त आयद' की कहावत पर अब इसने जो संशोधन सेवा व वस्तु कर में किये हैं उनका स्वागत किया जाना चाहिए। मगर इसके साथ यह भी सोचा जाना चाहिए कि आक्सीमीटर या थर्मामीटर अथवा आक्सीजन कंसंट्रेटर पर पांच प्रतिशत से भी कम कर लगा कर क्या हम और ज्यादा राहत लोगों को दे सकते हैं। ये सब वस्तुएं अब विलासिता की नहीं रह गई है बल्कि आवश्यक हो गई हैं। जहां तक वैक्सीन पर उत्पाद शुल्क पांच प्रतिशत जारी रखने का सवाल है तो वह उचित ही जान पड़ता है क्योंकि अब 18 वर्ष से ऊपर के सभी नागरिकों के केन्द्र सरकार इसे मुफ्त लगायेगी। यानि केन्द्र ही खरीदार होगा और केन्द्र ही उपभोक्ता होगा तो आम आदमी पर इसका कोई आर्थिक असर नहीं पड़ेेगा।

वैक्सीनों के कुल उत्पादन का 75 प्रतिशत तो केन्द्र सरकार ही खरीदेगी। इसके साथ यह भी ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि 2016-17 से भारत की अर्थव्यवस्था लगातार नीचे की तरफ लुढ़क रही है। इस वर्ष वार्षिक वृद्धि दर 8 प्रतिशत थी। 2017-18 में यह 6.6 प्रतिशत रही। 2018-19 में 6 प्रतिशत हो गई और 2019-20 में 4 प्रतिशत हो गई तथा समाप्त वित्त वर्ष 2020-21 में नकारात्मक 7.3 प्रतिशत पर गिर पड़ी। ये आंकड़े मेरे नहीं बल्कि विश्व बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री व भारत के पूर्व आर्थिक सलाहकार श्री कौशिक बसु के हैं। स्वतन्त्रता के बाद से आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ अतः अति उत्साह में हमें शुल्क प्रणाली को जमीन पर नहीं लिटाना बल्कि इसे तार्किक बनाये रखना है। अब देखना केवल यह होगा कि आगामी सितम्बर महीने के बाद कोरोना क्या रंग बिखेरता है। इसकी तैयारी में परिषद को एक आपातकालिक शुल्क खाका तैयार करने में जुट जाना चाहिए।

आदित्य नारायण चोपड़ा
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