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- सम्पादकीय: कश्मीर का...
जम्मू-कश्मीर समस्या पर गतिरोध तोड़ने के लिए पिछले सप्ताह केन्द्र सरकार और राज्य के प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच जो बैठक हुई थी उसमें अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद राजनीतिक प्रक्रिया के पुनः शुरू होने का रास्ता खुलता नजर आया था। इस रास्ते को अब और अधिक अवरोध मुक्त इस तरह बनाये जाने की सख्त जरूरत है जिससे सूबे की अवाम की सत्ता में सीधी भागीदारी का सिलसिला जोरदार तरीके से शुरू हो। राज्य की नेशनल कान्फ्रेंस से लेकर पीपुल्स कान्फ्रेंस व पीडीपी पार्टी तक इस प्रक्रिया से सहमत हैं हालांकि मोहतरमा महबूबा मुफ्ती ने बैठक से बाहर आकर कुछ तल्खी लाने की कोशिश की थी मगर पूरा मुल्क जानता है कि महबूबा की पीडीपी पार्टी का यह काम सिर्फ रियासत की सियासत में खुद को मौजूं बनाये रखने के अलावा कुछ नहीं था क्योंकि 370 का मसला अब सीधे मुल्क की सबसे बड़ी अदालत के पेशे नजर है। इस बैठक में ही यह तय हुआ था कि सूबे में चुनाव परिसीमन का काम पूरा होने के बाद विधानसभा के चुनाव कराये जायेंगे। मौजूदा हालात में रियासत का खास रुतबा 370 के साथ चले जाने के बाद इसकी हैसियत दिल्ली जैसी विधानसभा वाले राज्य की है। फिलहाल जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 114 सीटें हैं जिनमें 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर के लोंगों के लिए आरक्षित हैं। इस तरह मौजूदा विधानसभा की प्रभावी क्षमता 90 सीटों की है। इनमें जम्मू व कश्मीर के अलावा लद्दाख क्षेत्र की सीटें भी शामिल थीं।