सम्पादकीय

संपादकीय: जम्मू-कश्मीर पर विमर्श

Gulabi
22 Jun 2021 4:27 PM GMT
संपादकीय: जम्मू-कश्मीर पर विमर्श
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संपादकीय

अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 व 35-ए की समाप्ति और राज्य का दर्जा खत्म किए जाने के बाद से ही जम्मू-कश्मीर के भविष्य को लेकर सबकी नजर केंद्र सरकार के अगले बड़े कदम पर टिकी थी। ऐसे में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जम्मू-कश्मीर के मसले पर गुरुवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक एक बड़ी पहल है। यह बैठक इस केंद्र शासित क्षेत्र की सांविधानिक स्थिति तय करने और वहां पूर्ण राजनीतिक प्रक्रिया बहाल करने के लिहाज से काफी अहमियत रखती है। जब अनुच्छेद 370 हटा, तब काफी आशंकाएं जताई गई थीं कि आतंकी बडे़ पैमाने पर उत्पात मचाएंगे और पाकिस्तान इस मसले पर भारत के खिलाफ नए सिरे से देशों की गोलबंदी की कोशिश करेगा, लेकिन भारत सरकार की दूरदर्शी कूटनीति की बदौलत न सिर्फ पाकिस्तान, बल्कि उसके सदाबहार मित्र चीन को भी एक से अधिक बार संयुक्त राष्ट्र में मुंह की खानी पड़ी। जहां तक, आतंकी वारदात का सवाल है, तो वे भले ही पूरी तरह बंद न हो सकी हों, लेकिन सुरक्षा बलों की सख्ती और चौकसी ने दहशतगर्दों को किसी बड़ी घटना को अंजाम नहीं देने दिया।

जम्मू-कश्मीर के मामले में सरकार को लगा वक्त इसकी संवेदनशीलता को खुद-ब-खुद उजागर कर देता है। हालांकि, वहां हालात को सामान्य बनाने की दिशा में चरणबद्ध तरीके से लगातार रियायतें दी जाती रहीं, और उनका असर भी देखने को मिला। पिछले साल दिसंबर में पहली बार हुए जिला विकास परिषद (डीडीसी) के सफल चुनाव इसकी तस्दीक करते हैं। 20 जिलों में हुए उन चुनावों में अच्छी तादाद में लोगों ने भाग लिया था। नेशनल कॉन्फ्रेंस व पीडीपी समेत सात दलों के गुपकार गठबंधन ने 13 जिलों में और भाजपा ने छह में जीत दर्ज की थी। इस तरह, राजनीतिक प्रक्रिया का आगाज तो वहां पहले ही हो चुका है। पिछले अगस्त में परिपक्व राजनेता मनोज सिन्हा को उप-राज्यपाल बनाए जाने के साथ ही स्पष्ट हो गया था कि केंद्र अब वहां के लोगों को राजनीतिक खुदमुख्तारी सौंपने को लेकर गंभीर हो चला है। और यदि महामारी ने देश को हलकान न किया होता, तो जम्मू-कश्मीर को लेकर तस्वीर अब तक काफी साफ हो चुकी होती।
इस बीच कांग्रेस नेता व पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा लौटाने की मांग की है। वैसे, गृह मंत्री अमित शाह लोकसभा में पहले ही यह आश्वासन दे चुके हैं कि सही वक्त आने पर जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा लौटा दिया जाएगा। इसलिए इस मामले में सरकार और विपक्ष में नीतिगत मतभेद नहीं है। अब जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियों का रुख क्या है, इसके लिए गुरुवार की बैठक पर सबकी नजर होगी। हालांकि, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी समेत तमाम पार्टियों को यह एहसास हो गया होगा कि अब व्यावहारिक सियासत के सहारे ही वे आगे बढ़ सकती हैं। जम्मू-कश्मीर के लोगों को तरक्की की मुख्यधारा में शामिल होने का उतना ही हक है, जितना देश के किसी अन्य प्रदेश के नागरिक का। उन्हें राजनीतिक गतिरोध का बंधक बनाना उचित नहीं होगा। केंद्र सरकार के लिए यह एक बड़ी चुनौती तो है ही कि वहां पूर्ण राजनीतिक प्रक्रिया जल्द से जल्द बहाल हो और लोग अपनी जिम्मेदार लोकप्रिय सरकार चुन सकें। पर इसके लिए क्षेत्रीय पार्टियों को भी लोगों को भरोसे में लेकर अमन-चैन कायम रखना होगा।
क्रेडिट बाय लाइव हिंदुस्तान
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