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Editorial: देश में तेज आर्थिक विकास के साथ जैसे-जैसे असंगठित और अनुबंध आधारित रोजगार का विस्तार हो रहा है, वैसे-वैसे सामाजिक आर्थिक सुरक्षा की चिंताएं तेजी से बढ़ रही हैं। सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा का संबंध ऐसी कानूनी व्यवस्था से है, जिसके तहत व्यक्ति या परिवार की आय के कुछ या सभी स्रोत बाधित हो जाएं, तब संबंधित व्यक्ति या परिवार का उपयुक्त रूप से ध्यान रखा जा सके। सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा के तहत जीवन चक्र में सामना किए जाने वाले बेरोजगारी भत्ता, विकलांगता लाभ, छंटनी लाभ, स्वास्थ्य बीमा, चिकित्सा लाभ, मातृत्व अवकाश आदि लाभ प्रदान किए जाते हैं। निश्चित रूप से सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा मानव पूंजी निर्माण में या तो सीधे भोजन, कौशल और सेवाएं प्रदान करके योगदान देती है, या परोक्ष रूप से नकदी पहुंच प्रदान करके परिवारों को उनके विकास में सक्षम बनाती है। भारत सरकार द्वारा नागरिकों की सामाजिक भलाई सुनिश्चित करने और उन्हें विविध माध्यमों से आवश्यक सुरक्षा प्रदान करने के मद्देनजर निशुल्क आवास, खाद्य सुरक्षा, सबसिडी वाली रसोई गैस, जन-धन योजना के माध्यम से गरीबों और किसानों को निर्धारित धनराशियां देकर करोड़ों लोगों की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है।