सम्पादकीय

संपादकीय: एक और अग्नि परीक्षा

Gulabi
17 Jun 2021 2:56 PM GMT
संपादकीय: एक और अग्नि परीक्षा
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संपादकीय

कोरोना की दूूसरी लहर के विकराल प्रकोप के चलते सरकारी अस्पतालों में जनरल ओपीडी को बंद कर दिया गया था। सामान्य स्थितियों में लगने वाले अरोग्य मेले, स्वास्थ्य जांच शिविर स्थगित कर दिए गए थे। सभी बड़े अस्पताल कोरोना केयर सैंटर में तब्दील कर दिए गए थे। ऐसी स्थिति में कोरोना बीमारी के अलावा कई अन्य गम्भीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों की परेशानियां काफी बढ़ गईं। देश में दिल और फेफड़ों की बीमारियों से लाखों लोग पीड़ित हैं, लाखों लोग कैंसर से पीड़ित हैं। भारत में हर वर्ष 24.9 फीसदी लोग हृदय रोगों से, फेफड़ों की बीमारी से 10.8 फीसदी, स्ट्रोक से 9 फीसदी समय पूर्व प्रसव जटिलताओं के चलते 3.9 फीसदी और तपेदिक से 2.7 फीसदी लोग मृत्यु का ग्रास बनते हैं। सांस की बीमारियों से भी लोग मरते हैं। इनमें कुछ बीमारियों का उपचार शुरूआती स्तर पर ही किया जा सकता है, जबकि कैंसर जैसी बीमारियों का उपचार केवल विशेषज्ञों द्वारा ही किया जा सकता है। कोरोना की पहली लहर को लेकर अब तक देश की स्वास्थ्य सेवाओं पर कोरोना ग्रस्त रो​िगयों का काफी बोझ रहा। ऐसी स्तिथि में अन्य बीमारियों से पीड़ित लोगों की सुध कौन लेता। लॉकडाउन की पाबंदियों के चलते ऐसे लोगों को घरों में बंद रहना पड़ा। कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए इनका घरों में ही रहना ठीक था। अब जबकि कोरोना के नए मामले रोजाना घट रहे हैं। राजधानी दिल्ली में तो कोरोना की दूसरी लहर दम तोड़ती दिखाई दे रही है। कोेरोना रोगियो का बोझ कम होते ही अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान और कुछ अन्य सरकारी अस्पतालों में ओपीडी खोली जा रही है। अन्य राज्यों में भी सरकारी अस्पतालों की ओपीडी खोली जा रही है। अब लोग वहां जाकर डाक्टरों से परामर्श ले सकते हैं। लगभग दो माह से ओपीडी खुलने का इंतजार कर रहे लोगों को इससे राहत ​मिलेगी।


कोरोना महामारी ने इंसानों को कई तरह का आइना ​िदखाया है। एक तरफ इंसानों की जिंदगियां बचाने की जंग लड़ी जा रही थी तो दूसरी तरफ आपदा में लूट-खसोट करने वाले लोग थे। दूसरी लहर में लाॅकडाउन के दौरान 73 प्रतिशत बुजुर्ग लोग दुर्व्यवहार का शिकार हुए। एक अध्ययन के अनुुसार इनमें से 35 प्रतिशत वरिष्ठ नागरिकों को तो घरेलू हिंसा सहनी पड़ी। इनमें भी महिलाओं की संख्या अधिक है। पिछले वर्ष के मुकाबले घरेलू हिंसा के मामलों में दस साल का रिकार्ड टूटा है। इस बार घरेलू हिंसा की काफी अधिक शिकायतें आईं जो इस कालखंड की भयानक तस्वीर पेश कर रही हैं। संक्रमण का डर, कमाई की चिंता, महानगरों के छोटे दड़बेनुमा घरों में सिमटे लोगों की जिन्दगी ऐसी हो गई जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। ऐसे में हालात के शिकार बीमारियों से जूझ रहे लोगों और उनके परिवारों में उत्पन्न तनाव एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया। अब समाज में पारिवारिक मूल्य तो रहे नहीं। कभी संयुक्त परिवारों में बुजुर्गों और बीमार लोगों को साजिंदगी से सहेजा जाना था लेकिन आज अधिकांश लोग एकाकीपन से जूझ रहे हैं। कभी भावनाओं की साझेदारी से कई शिकवे-शिकायतें अपने आप दूर हो जाते थे लेकिन अब एकल परिवारों का चलन हो गया। महामारी ने ऐसे परिवारों के सदस्यों के तनाव को बहुत ज्यादा गहरा कर दिया है। पिछले दो महीने अग्निपरीक्षा से गुजरे हैं। बीमारियों से जूझ रहे लोगों ने बहुत संयम के साथ अपने को सहेज कर रखा है। वैसे तो पूरे देश ने मौके की नजाकत को समझा और लाॅकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के अनुशासन में पूरा सहयोग दिया। कोरोना वायरस अभी गया नहीं है परन्तु इसका प्रकोप कम हुआ है। अब एक और अग्नि परीक्षा हमारे सामने आ खड़ी हुई है, वह है कोरोना के अलावा अन्य बीमारियों से जूझ रहे लोगों का उपचार बेहतर ढंग से हो। हो सकता है लाॅकडाउन के दौरान उनकी बीमारी और बढ़ गई है। अब सरकारी अस्पतालों में ओपीडी व्यवस्था पर पूरा ध्यान देना होगा। समाज और परिवारों का दायित्व है कि ऐसे लोगों की तिमारदारी की जाए। कैंसर रोगियों का उपचार हो, किसी की किडनी ट्रांसप्लांट होनी है, वे जो सर्जरी का डेढ़-दो साल से इंतजार कर रहे हैं, उनकी सर्जरी हो, लोगों को डायलिसिस करना पड़ता है, उन्हें आसानी से आ​र्थिक रूप से कमजोर सामान्य मरीजों का भी उपचार हो। अमीर आदमी तो अपना इलाज निजी अस्पतालों में करवा सकते हैं लेकिन गरीबों का सहारा तो सरकारी अस्पताल ही हैं। इतनी बड़ी संख्या में लोगाें के लिए उपचार उपलब्ध कराना अग्नि परीक्षा तो है ही समाज में अपेक्षित, अवसाद या एकाकीपन का शिकार लोगों के जीवन को सहज कैसे बनाया जाए, उनकी हताशा को आशा में कैसे बदला जाए यह भी समाज के ​लिए चुनौती है।

आदित्य नारायण चोपड़ा


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