- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- ईडी जांच और कांग्रेस

x
हम न तो सत्यापित कर रहे हैं और न ही पुष्टि कर सकते हैं। ‘नेशनल हेराल्ड’ की संस्थापक कंपनी ‘एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड’ (एजेएल) का सच आज क्या
By: divyahimachal
हम न तो सत्यापित कर रहे हैं और न ही पुष्टि कर सकते हैं। 'नेशनल हेराल्ड' की संस्थापक कंपनी 'एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड' (एजेएल) का सच आज क्या है, उसकी जांच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) कर रहा है। ईडी ही अदालत के सामने आरोप-पत्र दाखिल करेगा। इस मुद्दे पर कांग्रेस ने पहले 'सत्याग्रह' की घोषणा की थी, वह एक परिवार तक ही सीमित रहा। अब कांग्रेस ने 'रण', यानी युद्ध, का ऐलान किया है, तो देश जानना चाहेगा कि पार्टी किसके खिलाफ और क्यों युद्ध लडऩा चाहती है? ईडी अथवा उसके आला प्रशासक, प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ युद्ध के प्रयोजन क्या हैं? यह द्वन्द्व तो संवैधानिक अधिकारों और जांच का है, जिसका अंतिम निष्कर्ष सर्वोच्च अदालत ही दे सकती है। संसद के भीतर और बाहर चीखना-चिल्लाना और संसदीय कार्यवाही को बाधित करना देशहित में नहीं है। कांग्रेस-हित में भी नहीं है। यदि कांग्रेस महसूस करती है कि उसके 'राजवंश' को प्रताडि़त किया जा रहा है, तो अदालत के दरवाजे आधी रात में भी खुले हैं।
कांग्रेस यह अनुभव कर चुकी है। तो अदालत में याचिकाओं की बौछार क्यों नहीं कर देती? लेकिन याचिकाएं तार्किक होनी चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी के कथित 'तानाशाही रवैये' पर ही न्याय नहीं मांगा जा सकता, क्योंकि अदालत के लिए वह बेमानी और कुतर्क है। दरअसल 'नेशनल हेराल्ड' से जुड़े कई सवाल सोनिया-राहुल गांधी से ईडी की लंबी पूछताछ के बाद भी अनुत्तरित हैं, तो अब ईडी राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े से सवाल-जवाब कर रहा है। इसी दौरान कुछ ऐसे तथ्य सार्वजनिक हुए हैं, जिन्हें झुठलाया नहीं जा सकता। बेशक 'नेशनल हेराल्ड' और 'नवजीवन' के दिल्ली संस्करण की कुछ प्रतियां छपती हैं। वेबसाइट और पोर्टल भी हैं, लेकिन मुंबई, लखनऊ, भोपाल, पंचकूला आदि राजधानी-शहरों में 'एजेएल' के भवन स्थापित हैं, अलबत्ता अख़बार नहीं छपते। लखनऊ संस्करण का प्रकाशन तो 1999 से बंद है। 'एजेएल' के ये भवन कई करोड़ों की संपत्तियां हैं। दरअसल ज़मीनें तब दी गई थीं, जब कांग्रेस सत्ता में थी। मुंबई में जिस ज़मीन पर बच्चों का हॉस्टल बनना था, बांद्रा की उस बेशकीमती ज़मीन पर कई मंजिला 'एजेएल हाउस' बना है। तत्कालीन मुख्यमंत्री एके अंतुले ने यह ज़मीन 'नेशनल हेराल्ड' के नाम आवंटित कर दी थी। आज 'एजेएल' की दो मंजि़लें 'जिंदल स्टील वक्र्स' कंपनी ने किराए पर ले रखी हैं। औसतन किराया 5000 रुपए प्रति वर्ग फुट है। टीवी चैनलों ने खुलासा किया है और जिसमें संबद्ध महिला की आवाज़ सुनाई दे रही है कि भुगतान का चेक 'एजेएल' के नाम से बनेगा।
भोपाल में तो भवन बनाकर संपत्तियां बेच दी गई हैं, लिहाजा मप्र सरकार ने 'एजेएल' की लीज को सवालिया कर दिया है। लखनऊ वाले भवन में भी दुकानें बेची गई हैं और कुछ किराए पर भी हैं। सभी ने चैनलों को बताया कि चेक 'एजेएल' के नाम से दिए जाते हैं। सवाल यह जांचा जा रहा है कि ज़मीनें अख़बार छापने और उसके दफ्तर चलाने को दी गई थीं या किरायाखोर कंपनी बनाने के लिए…? कानूनन ज़मीनें मीडिया घरानों को दी जाती हैं अथवा बहुत सस्ती लीज पर आवंटित की जाती हैं, लेकिन बुनियादी शर्त तो निभाई जानी चाहिए कि अख़बार का प्रकाशन हो। कुछ दफ्तर मीडिया हाउस किराए पर भी दे सकते हैं, ताकि उन्हें कुछ मुनाफा भी होता रहे। ऐसे उदाहरण दिल्ली में टाइम्स ऑफ इंडिया, हिन्दुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस सरीखे बड़े अख़बारों के संदर्भ में देखे जा सकते हैं, लेकिन 'एजेएल' तो मानो रियल एस्टेट कंपनी बन गई हो। जांच यह भी की जा रही है कि जो पैसा 'एजेएल' में आता है, क्या उसे 'यंग इंडियन कंपनी' में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
दरअसल 'एजेएल' के तमाम शेयर और स्वामित्व 'यंग इंडियन' के नाम हैं और उस कंपनी में गांधी परिवार 76 फीसदी शेयरों का मालिक है। सोनिया-राहुल गांधी के नाम 38-38 फीसदी शेयर हैं। क्या परोक्ष रूप से 'एजेएल' का पैसा गांधी परिवार के कब्जे में जा रहा है? फिलहाल ईडी के सामने यह सच भी नहीं आ सका है कि कांग्रेस ने 'एजेएल' को 90 करोड़ रुपए से ज्यादा का कजऱ् क्यों दिया? क्या एक राजनीतिक दल ऐसा कर सकता है? गांधी परिवार ने ईडी के सामने इसका सम्यक खुलासा नहीं किया है। अब यह विवाद राजनीतिक रण में भी तबदील हो गया है। कांग्रेस की रणनीति है कि चौतरफा दबाव से ईडी जांच की गति को धीमा कर दे, लेकिन मोदी सरकार इसमें 'प्रथमद्रष्ट्या' नहीं बनना चाहती। देखते हैं कि इस अति महत्त्वपूर्ण विवाद का अंतिम निष्कर्ष क्या होगा?

Rani Sahu
Next Story