सम्पादकीय

ईडी 'एक्शन मोड' में

Subhi
1 Aug 2022 2:43 AM GMT
ईडी एक्शन मोड में
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मां माटी और मानुष के नाम पर सत्ता में आई ममता बनर्जी की सरकार के मंत्री रहे पार्थ चटर्जी की करीबी अर्पिता मुखर्जी के घरों से बरामद करोड़ों के नोटों की खेप और स्वर्ण आभूषण देख कर आम लोगों को हैरत जरूर हो रही है। आम जनता का सवाल है कि वर्ष 2021-22 में भारत की प्रति व्यक्ति की औसत कमाई वार्षिक 91 हजार 491 रुपए है

आदित्य चोपड़ा: मां माटी और मानुष के नाम पर सत्ता में आई ममता बनर्जी की सरकार के मंत्री रहे पार्थ चटर्जी की करीबी अर्पिता मुखर्जी के घरों से बरामद करोड़ों के नोटों की खेप और स्वर्ण आभूषण देख कर आम लोगों को हैरत जरूर हो रही है। आम जनता का सवाल है कि वर्ष 2021-22 में भारत की प्रति व्यक्ति की औसत कमाई वार्षिक 91 हजार 491 रुपए है यानि हर माह 8 हजार से कम लेकिन राजनीतिज्ञों और उनके करीबियों के घरों से करोड़ों के नोटों के बंडल मिल रहे हैं। ममता बनर्जी से लेकर शिवसेना के संजय राउत तक ईडी को मोदी सरकार का हथियार बना कर निशाना साध रहे हैं लेकिन ईडी ने एक बार फिर राजनीतिज्ञों के भ्रष्टाचार की पोल खोल कर रख दी है। आम लोग तो यही कह रहे हैं कि ईडी पर विपक्ष जितना मर्जी शोर मचा ले लेकिन चोर नहीं बचेंगे। ईडी पर आरोप लगायेंगे लेकिन करोड़ों-करोड़ों कैसे छुपायेंगे?राजनीतिज्ञों के भ्रष्टाचार के कारनामे कोई नए नहीं हैं, यह देश अनेक बड़े घोटालों का चश्मदीद रह चुका है। पश्चिम बंगाल के उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी और शिक्षा राज्य मंत्री परेश चन्द्र अधिकारी की गिरफ्तारी बता रही है कि ममता बनर्जी भ्रष्टाचार मुक्त शासन के कितने ही दावे क्यों न करे लेकिन उनके वरिष्ठ मंत्री भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के घेरे में हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि भ्रष्टाचार हमारे देश में दीमक की तरह फैल चुका है, जिसे खत्म करना असंभव तो है ही लेकिन आसान भी नहीं है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए ईडी इस समय एक्शन मोड में है। पिछले 17 वर्षों में ईडी ने 5400 से ज्यादा मनी लांड्रिंग के केस दर्ज किए। इसमें करीब एक लाख 4 हजार 702 करोड़ की संपत्तियां जब्त की गई। हालांकि अभी तक 23 मामलों में ही सजा हो पाई है। जब भी जांच एजैंसियां राजनीतिज्ञों के खिलाफ मामले दर्ज करती हैं तो वे विकिटम कार्ड खेलना शुरू कर देते हैं। विपक्ष बवाल मचाने लगता है लेकिन यह भी सच है कि ईडी की तेज कार्रवाई ने विपक्ष की नींद उड़ा कर रख दी है। फर्क इतना है कि यूपीए शासन काल में सरकार से जुड़े मामले उजागर हुए थे जबकि अब मोदी सरकार पर एक भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा है। महाराष्ट्र की राजनीति में तो ईडी की जांच को लेकर भूचाल आया हुआ है। अपने ही बोझ तले दब चुकी उद्धव सरकार में मंत्री रहे राकांपा नेता अनिल देशमुख से लेकर नवाब मलिक तक जेल में हैं। करोड़ों की रिश्वत लेने के आरोप में ईडी ने शिवसेना नेता और पूर्व मंत्री अनिल परब को घेर रखा है। अब संजय राउत और उनके करीबियों पर ईडी की छापेमारी जारी है।पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री के रिश्तेदार के घर से करोड़ों की नकदी मिली थी। इस नकदी का ताल्लुक अवैध खनन से था। पंजाब के पूर्व मंत्री और मौजूदा 'आप' सरकार के मंत्री भी रिश्वत मामले में फंसते जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पूर्व भी राजनीतिज्ञों के करीबी लोगों से करोड़ों के नोट मिले थे। भारत के कई बड़े नेता भी भ्रष्टाचार के मामले में फंसे हुए हैं। पूर्ववर्ती सरकारों के शासनकाल में भी सीबीआई, ईडी और अन्य जांच एजैंसियां थी लेकिन इन जांच एजैंसियों के अधिकारों का हनन किया जाता था, इन्हें दबाव में रखा जाता था। सत्ता द्वारा इन एजैंसियों का इस्तेमाल देश के कुछ गिने-चुने भ्रष्टाचार और घोटाले करने वाले लोगों पर किया जाता था फिर इनका इस्तेमाल राजनीतिक द्वेष के ​िलए किया जाता था। आज विपक्ष बौखलाया हुआ है, उसे डर है कि कहीं गाज उन पर न गिर जाये। भ्रष्टाचार के काले कारनामों ने विपक्षी नेताओं के सफेद कुर्ते पर दाग लगा दिये हैं। जिन पर अभी कोई कार्रवाई नहीं हुई, उन्हें भी डर सता रहा है कि कहीं उन पर छापे न पड़ जायें। यह डर होना अच्छी बात है।आज भी भारत में ​शिक्षा, सड़क, जल, बिजली, स्वास्थ्य के स्तर पर बहुत सुधार की जरूरत है तो इसका मुख्य कारण है भ्रष्टाचार और घोटाले। देश में ​िजतने घोटाले हुए हैं, उनको लेकर एक महाग्रंथ की रचना की जा सकती है। अगर सरकारों में ईमानदारी से काम हो रहा है तो फिर बेहिसाब दौलत कहां से आ रही है। यह तो तब है जब मामले ईडी और सीबीआई या राज्यों की भ्रष्टाचार निरोधक एजैंसियों की पकड़ में आते हैं और इनका खुलासा हो जाता है वरना किस-किस ने करोड़ों के वारे-न्यारे किए होंगे कोई नहीं जानता। देश में कई बड़ी परियोजनाओं में अरबों रुपए के घोटाले हुए हैं जिनकी जांच अब तक चल रही है। अब तो देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में ही कार्रवाई को कानूनी रूप से सही करार देकर उसे और मजबूत कर ​िदया। पिछले कुछ वर्षों में मोदी सरकार ने सीबीआई और ईडी को मजबूत बनाने का काम ही किया। अब जबकि ईडी ऐसे कई मामलों की जांच कर रही है जो राजनीतिक तौर पर संवेदनशील हैं विपक्ष के कई नेता कठघरे में हैं तो इसे केवल राजनीतिक मामला मानकर आंखें नहीं मूंदी जा सकती। ईडी को लेकर मोदी सरकार पर आरोप लगाने वाले इस समय हताशा में है। दूध का दूध और पानी का पानी होना ही चाहिए, जिस दिन हम भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति करने में सफल हो गए तो इससे ही लोकतंत्र मजबूत होगा।

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